📝 चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
संभल से सामने आया चौंकाने वाला मामला; पत्नी और कथित प्रेमी पर साजिश का आरोप, 12 बीघा जमीन हड़पने की कोशिश का दावा
उत्तर प्रदेश के संभल जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली, दस्तावेज़ी सत्यापन और ज़मीनी हकीकत—तीनों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां एक युवक इन दिनों सड़कों पर हाथ में पोस्टर लेकर यह साबित करता घूम रहा है कि वह जिंदा है, जबकि सरकारी अभिलेखों में उसे मृत घोषित कर दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि कथित तौर पर सरकारी विभाग की ओर से उसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी हो चुका है।
यह मामला संभल जिले के कुढ़ फतेहगढ़ थाना क्षेत्र अंतर्गत जहांगीरपुर गांव का है। गांव का रहने वाला तेजपाल—जो स्वयं को चार बच्चों का पिता बताता है—इन दिनों न्याय की तलाश में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है। हाथ में ‘मैं जिंदा हूं साहब’ लिखा पोस्टर लिए तेजपाल जब सड़क पर निकलता है, तो राहगीर ठिठक जाते हैं। हर किसी के मन में एक ही सवाल उठता है—क्या कोई जिंदा इंसान सरकारी काग़ज़ों में मृत हो सकता है?
सरकारी काग़ज़ों में मौत, हक़ीक़त में संघर्ष
तेजपाल का दावा है कि उसे साजिश के तहत मृत घोषित कराया गया है। उसके मुताबिक, इस कथित साजिश के पीछे उसकी पत्नी और उसके कथित प्रेमी का हाथ है। तेजपाल का कहना है कि वर्षों से पारिवारिक विवाद के कारण वह पत्नी से अलग रह रहा है। इसी का फायदा उठाकर पत्नी ने कथित प्रेमी के साथ मिलकर उसके नाम की 12 बीघा जमीन हड़पने की योजना बनाई और विकासखंड में कार्यरत कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से उसे मृत दिखवा दिया।
तेजपाल बताता है कि बीते छह वर्षों से वह पत्नी के पास नहीं गया। इसी दौरान पत्नी की कथित गलत संगत और लालच ने पूरे घटनाक्रम को जन्म दिया। तेजपाल के अनुसार, उसकी जमीन की कीमत करोड़ों में है, और उसी लालच में यह पूरा खेल रचा गया। सरकारी रिकॉर्ड में नाम से मौत दर्ज होते ही, जमीन के लेन-देन का रास्ता साफ करने की कोशिश की गई।
मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बना?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि किसी व्यक्ति के जीवित रहते हुए मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे जारी हो सकता है? तेजपाल का आरोप है कि स्थानीय स्तर पर काग़ज़ी खानापूर्ति कराई गई। न तो शव का सत्यापन हुआ, न कोई चिकित्सकीय पुष्टि—फिर भी दस्तावेज़ तैयार हो गए। यह स्थिति प्रशासनिक तंत्र की ढिलाई और संभावित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है।
तेजपाल का कहना है कि जब उसे इस फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र की जानकारी मिली, तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। जिंदा होते हुए मृत घोषित होना न सिर्फ़ सामाजिक पहचान छीन लेता है, बल्कि बैंकिंग, जमीन, राशन कार्ड, पेंशन और अन्य सरकारी सुविधाओं पर भी सीधा असर डालता है।
डीएम से एसपी तक गुहार, लेकिन सुनवाई शून्य
पीड़ित तेजपाल ने बताया कि वह संभल के जिलाधिकारी से लेकर पुलिस अधीक्षक तक अपनी गुहार लगा चुका है। आवेदन, प्रार्थना पत्र और मौखिक शिकायत—हर संभव तरीका अपनाया गया। बावजूद इसके, अब तक किसी स्तर पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई। तेजपाल का आरोप है कि विभागीय चुप्पी ने उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
तेजपाल कहता है, “जब मैं जिंदा हूं, तो मुझे मृत कैसे घोषित कर दिया गया? अगर आज मेरे पास पोस्टर न हो, तो कौन मानेगा कि मैं जीवित हूं?” उसकी यह पीड़ा प्रशासनिक संवेदनहीनता की ओर सीधा इशारा करती है।
कानूनी जानकार क्या कहते हैं?
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में कई स्तरों पर सत्यापन अनिवार्य होता है—जैसे चिकित्सकीय प्रमाण, पंचायत या नगर निकाय की पुष्टि, और रजिस्ट्रार का अनुमोदन। यदि इन सभी चरणों को दरकिनार कर प्रमाण पत्र जारी हुआ है, तो यह गंभीर आपराधिक लापरवाही या सुनियोजित साजिश का मामला बनता है।
ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं—धोखाधड़ी, कूटरचना, षड्यंत्र—के तहत कार्रवाई संभव है। साथ ही, संबंधित कर्मचारियों की विभागीय जांच और निलंबन भी हो सकता है।
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
यह पहला मामला नहीं है जब किसी व्यक्ति को काग़ज़ों में मृत घोषित किया गया हो। देश के अलग-अलग हिस्सों से समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते रहे हैं, जहां जीवित व्यक्ति वर्षों तक ‘मृत’ साबित करने के लिए लड़ता रहा। ये घटनाएं बताती हैं कि दस्तावेज़ी शासन (पेपर गवर्नेंस) में मानवीय सत्यापन की कितनी बड़ी कमी है।
प्रशासन से क्या अपेक्षा?
इस प्रकरण में सबसे पहली ज़रूरत है—तत्काल जांच। फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र को रद्द कर तेजपाल की नागरिक पहचान बहाल की जाए। इसके साथ ही, कथित साजिश में शामिल लोगों और कर्मचारियों की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो। यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो सख्त कानूनी कार्रवाई मिसाल बनेगी।
साथ ही, भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए मृत्यु पंजीकरण प्रक्रिया को और पारदर्शी व तकनीकी रूप से सुरक्षित बनाना होगा—जैसे बायोमेट्रिक सत्यापन, डिजिटल ट्रैकिंग और बहु-स्तरीय ऑडिट।
निष्कर्ष: ‘मैं जिंदा हूं’ की चीख
तेजपाल का हाथ में पोस्टर लेकर घूमना केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों पर करारा तमाचा है। जिंदा इंसान का खुद को जिंदा साबित करना—इससे बड़ा विडंबनापूर्ण दृश्य शायद ही हो। अब देखना यह है कि प्रशासन इस चीख को कब और कैसे सुनता है।
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यह मामला किस जिले का है?
यह मामला उत्तर प्रदेश के संभल जिले का है, जहां एक युवक को सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित कर दिया गया।
युवक ने किस पर साजिश का आरोप लगाया है?
युवक ने पत्नी और उसके कथित प्रेमी पर 12 बीघा जमीन हड़पने की साजिश रचने का आरोप लगाया है।
मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे जारी हुआ?
पीड़ित का आरोप है कि विकासखंड के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से बिना सही सत्यापन के प्रमाण पत्र जारी किया गया।
पीड़ित ने प्रशासन से क्या मांग की है?
पीड़ित ने फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द करने, पहचान बहाल करने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।







