6000 वर्गफीट का वो प्लॉट, जिसने अमिताभ ठाकुर को पंहुचा दिया हवालात के अंदर

संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

देवरिया। शहर से लगे औद्योगिक क्षेत्र का वह 6000 वर्गफीट का प्लॉट अब समाचार का विषय बन चुका है — न सिर्फ इसलिए कि यह जमीन कभी देवरिया के एसपी रहते हुए अमिताभ ठाकुर के परिवार के नाम आवंटित हुई थी, बल्कि इसलिए कि उसी प्लॉट से जुड़ी कड़ियों ने एक लंबी और जटिल कहानी गढ़ी, जो अंततः ठाकुर को हवालात तक ले आई।

यह रिपोर्ट वर्षों के दस्तावेजी रिकॉर्ड, स्थानीय सूत्रों, औद्योगिक क्षेत्र के निरीक्षण और कानूनी धारों के परिप्रेक्ष्य में तैयार की गयी है ताकि पाठक समझ सकें कि कैसे एक सामान्य दिखने वाली ज़मीन राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक हितों के चक्रव्यूह में उलझकर जनहित से दूर हो सकती है।

आवंटन से लेकर ट्रांसफर तक—घटनाक्रम

साल 1999 में देवरिया औद्योगिक क्षेत्र में नूतन इंडस्ट्रीज (नूतन ठाकुर के नाम पर) के नाम एक प्लॉट आवंटित किया गया था। यह प्लॉट B-2 श्रेणी का था और तकनीक व निर्माण से जुड़े किसी औद्योगिक उपयोग के लिए माना गया था। परंतु आवंटन के तीन वर्षों तक उस प्लॉट पर कोई औद्योगिक गतिविधि शुरू नहीं हुई—यह वह समय था जब नियमों के अनुसार लीजधारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे सीमित समय में निर्माण व उत्पादन प्रारम्भ करें।

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सितंबर 2002 में प्लॉट की लीज डीड का ट्रांसफर संजय प्रताप सिंह को कर दिया गया। यह ट्रांसफर औपचारिक रूप से अनुमति के साथ दर्ज हुआ, पर विशेषज्ञ और स्थानीय सूत्र इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या पहले की शर्तें और औपचारिकताएँ सही ढंग से पूरी की गई थीं।

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प्लॉट की वर्तमान हालत—ऑफिस बनाम उद्योग

आज उस 6000 वर्गफीट के प्लॉट में एक पक्का दफ्तर बना है—जिस पर ‘श्रीनेत शांडिल्य कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड’ का बोर्ड लगा हुआ है। स्थानीय दफ्तर में लोहे के बीम बनाने और कुछ कंस्ट्रक्शन-संबंधी गतिविधियाँ दिखाई पड़ती हैं, पर किसी व्यापक, निरंतर और विनिर्माण आधारित उद्योग के संकेत नहीं मिलते। यानी मूल आबंटन का उद्देश्य—जिसमें रोजगार सृजन और उत्पादन प्रमुख थे—काफी सीमित रूप में ही पूरा हुआ दिखता है।

स्थानीय व्यापारियों और पड़ोसियों के बयान साफ़ बताते हैं कि यह प्लॉट औद्योगिक उपयोग से अधिक कंस्ट्रक्शन-कारोबार और शराब-व्यवसाय से जुड़े बैठकों और ऑफिस के रूप में उपयोग में आ रहा है।

स्थानीय अभिव्यक्ति—किसने क्या कहा?

एक पुराने औद्योगिक इकाई संचालक ने नाम छुपाने की शर्त पर कहा—”भूखंड आवंटन में रसूख और कनेक्शन का बहुत बड़ा रोल होता है। जिनके पास संपर्क होते हैं, वह प्लॉट आसानी से ले लेते हैं, और जो सच्चे उद्योगपति हैं, उन्हें पंक्ति में खड़ा होना पड़ता है।”

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दूसरी ओर, देवरिया के कुछ नागरिकों ने इस मामले को प्रशासनिक पक्षपात और राज्य संसाधनों के गलत उपयोग से जोड़ा है। उनका कहना है कि औद्योगिक क्षेत्र का मकसद तब भी रोजगार और उत्पादन था, पर जमीन का वास्तविक उपयोग किसी और दिशा में चला गया।

कानूनी फ्रेमवर्क और प्रक्रियात्मक प्रश्न

औद्योगिक आवंटन की नीतियाँ स्पष्ट हैं—लीज पर दी गयी ज़मीन पर यदि समय के भीतर उद्योग नहीं लगाया गया तो विभाग के पास उसे रद्द करने और पुनः आवंटित करने का अधिकार होता है। ट्रांसफर तब संभव है जब विभाग को भरोसा हो कि नया लीजधारी वास्तविक उद्योग लगाएगा और नियमों का पालन करेगा।

इस मामले में दस्तावेज़ों की पड़ताल यह दर्शाती है कि ट्रांसफर रेकॉर्ड पर दर्ज है, पर स्थानीय निरीक्षणों और फील्ड वेरिफिकेशन की अनुपस्थिति ने कई सवाल जिंदा छोड़े हैं—क्या विभाग ने उचित निरीक्षण किया? क्या नियमों का पालन सुनिश्चित किया गया? और अगर नहीं, तो जिम्मेदारियों का निर्धारण किसने किया?

राजनीतिक-प्रशासनिक जटिलताएँ और परिणाम

यह मामला केवल भूमि और व्यवसाय का नहीं बल्कि सत्ता के दायरे और प्रभाव का भी है। जब किसी अधिकारी का परिवार किसी प्लॉट का लाभ उठाता है, तो पारदर्शिता और जवाबदेही के सवाल उठते हैं। ग्राउंड रिपोर्टरों व कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थितियाँ प्रणालीगत कमजोरियों को उजागर करती हैं—जिनका लाभ तात्कालिक रूप से कुछ प्रभावशाली लोग उठा पाते हैं।

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मामला जब सार्वजनिक ध्यान में आया, तब जांच के दायरे और प्रक्रियाओं पर भी बहस हुई—क्या मामले की सुनवाई स्वतंत्र तरीके से होगी? क्या प्रभावित जनता को न्याय मिलेगा? इन सवालों के जवाब पर भविष्य की कार्यवाही निर्भर करेगी।

नागरिकों की उम्मीदें और आगे का रास्ता

देवरिया के नागरिक चाहते हैं कि औद्योगिक आवंटन पारदर्शी हो और असल उपयोग के अनुपालन पर कड़ी कार्रवाई हो। स्थानीय उद्योगपतियों और युवा वर्ग का कहना है कि यदि सरकारी नीतियाँ सख्ती से लागू हों और नियमानुसार जांच-पड़ताल की जाए तो वही प्लॉट रोजगार और उत्पादन के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

अंततः यह मामला न केवल एक प्लॉट का, बल्कि छोटे व्यापारियों, नौकरी तलाश रहे युवाओं और एक क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास का मसला है। अगर प्रशासन ने निदान कर उपाय किए, तो यह कहानी परिवर्तन की उम्मीद भी दिखा सकती है—अन्यथा यह और अधिक चिंता और अविश्वास को जन्म देगी।

यह रिपोर्ट सार्वजनिक अभिलेखों, स्थानीय साक्ष्यों और विशेषज्ञ टिप्पणियों पर आधारित है। संबंधित पक्षों से प्रतिक्रिया के लिए पत्र भेजे जा चुके हैं; उनकी टिप्पणियाँ प्राप्त होते ही रिपोर्ट में अपडेट कर दी जाएंगी।

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