
सदानंद इंगिली की रिपोर्ट
सिरोंचा बाढ़ से खेत बने जलमग्न
सिरोंचा बाढ़ इस समय किसानों के लिए बड़ी आपदा बन गई है। श्रीपदा येल्लमपल्ली परियोजना से 7.33 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने के बाद नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ गया।
इसके अलावा, प्राणहिता, वर्धा और गोदावरी नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में हुई लगातार भारी बारिश ने हालात और गंभीर कर दिए। विशेषज्ञों का अनुमान है कि मेदिगड्डा लक्ष्मी बैराज में अगले 10 से 12 घंटों में 12 से 13 लाख क्यूसेक पानी की आमद होगी।
इस अचानक आई बाढ़ ने सिरोंचा तालुका के कई गांवों को प्रभावित किया है। खेतों में खड़ी मिरची, कपास और धान की फसलें पूरी तरह जलमग्न हो चुकी हैं। किसान अब सरकार से त्वरित सहायता की मांग कर रहे हैं।
सिरोंचा बाढ़ का सबसे ज्यादा असर किसानों पर
सिरोंचा बाढ़ का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव कृषि क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। करसपल्ली, अमरावती, मेडाराम, सुरय्यापल्ली और रंगय्यापल्ली जैसे गांवों के किसान पूरी तरह संकट में हैं। जहां कभी मिरची की हरी-भरी फसलें लहलहा रही थीं, वहां अब केवल पानी का अथाह सैलाब नजर आ रहा है।
धान और कपास जैसी नकदी फसलें भी पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं। किसानों का कहना है कि वे कर्ज लेकर बुवाई करते हैं और अब बाढ़ ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है।
सिरोंचा बाढ़ से मिरची की फसल पर करारा प्रहार
सिरोंचा बाढ़ का सबसे ज्यादा असर मिरची की खेती पर हुआ है। इस क्षेत्र में मिरची को नकदी फसल माना जाता है और किसान इसकी बिक्री से पूरे साल का खर्च निकालते हैं। लेकिन तेज बहाव वाले पानी ने खेतों को न केवल डुबो दिया, बल्कि मिरची के पौधों को भी सड़ा दिया है।
किसानों का कहना है कि मिरची की फसल से ही उन्हें मंडियों में अच्छा दाम मिलता था, मगर अब नुकसान इतना ज्यादा है कि आने वाले सीजन तक उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है।
सिरोंचा बाढ़ और कपास-धान की तबाही
धान और कपास की फसलें भी सिरोंचा बाढ़ की चपेट में आकर पूरी तरह बर्बाद हो गईं। धान, जो इस इलाके की प्रमुख खाद्य फसल है, पानी में डूबने से सड़ने लगी है। वहीं कपास की बगिया, जो किसानों की नकदी कमाई का बड़ा जरिया थी, अब बर्बादी की तस्वीर बन चुकी है।
इससे साफ है कि सिरोंचा बाढ़ ने केवल प्राकृतिक आपदा ही नहीं, बल्कि किसानों के जीवन पर भी गहरा संकट लाद दिया है।
सिरोंचा बाढ़ : किसानों की मांग – त्वरित पंचनामा और मुआवजा
सिरोंचा बाढ़ से प्रभावित किसान सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन जल्द से जल्द सर्वेक्षण (पंचनामा) करे और उन्हें उचित मुआवजा दिया जाए।
गांवों के किसानों ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर भरपाई नहीं हुई तो उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। कई किसान पहले से ही बैंकों और साहूकारों के कर्ज तले दबे हैं, और इस बाढ़ ने उन्हें आर्थिक रूप से और तोड़ दिया है।
सिरोंचा बाढ़ : प्रशासन की जिम्मेदारी बढ़ी
सिरोंचा बाढ़ के हालात को देखते हुए प्रशासन पर जिम्मेदारी और बढ़ गई है। एक तरफ राहत और बचाव कार्य चलाना है, वहीं दूसरी तरफ प्रभावित किसानों को आर्थिक सहायता देना भी उतना ही जरूरी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसानों को समय पर मुआवजा नहीं मिला तो अगले सीजन में वे खेती करने की स्थिति में नहीं होंगे। इससे क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों प्रभावित होंगी।
सिरोंचा बाढ़ का भविष्य पर असर
यह भी चिंता का विषय है कि सिरोंचा बाढ़ का असर केवल वर्तमान सीजन तक सीमित नहीं रहेगा। मिरची, कपास और धान की फसलें बर्बाद होने के बाद किसान ऋणग्रस्त हो जाएंगे। अगले सीजन के लिए उन्हें फिर से बीज, खाद और कीटनाशक खरीदने होंगे।

अगर सरकार ने तुरंत राहत पैकेज की घोषणा नहीं की, तो किसान आत्मनिर्भर होने की बजाय और ज्यादा संकट में फंस सकते हैं।
सिरोंचा बाढ़ इस बार केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि किसानों के जीवन का संकट बनकर आई है। श्रीपदा येल्लमपल्ली परियोजना से छोड़ा गया पानी और लगातार बारिश ने खेतों को तबाह कर दिया। मिरची, कपास और धान की फसलें पूरी तरह डूब चुकी हैं।
इस हालात में किसानों की एक ही मांग है – त्वरित पंचनामा और नुकसान की भरपाई। अगर प्रशासन और सरकार ने समय पर कदम उठाए, तो सिरोंचा के किसान इस आपदा से उबर सकते हैं।