उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में एक बार फिर से माफियाओं की सक्रियता तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। खनन, नशे का अवैध व्यापार, कमीशनखोरी और जमीन पर कब्जे जैसे अपराधों ने एक बार फिर से अपना तंत्र मजबूत बना लिया है। सवाल उठने लगा है कि मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, मुन्ना बजरंगी और विजय मिश्रा</strong जैसे बड़े आपराधिक नेटवर्क के निष्प्रभावी होने के बाद भी अपराध की जड़ें फिर से कैसे फैलने लगीं? क्या अपराधी तंत्र अब नई शक्लों और नए चेहरों के साथ लौट रहा है?
सरकार की बुलडोजर नीति और कठोर कार्रवाइयों के बावजूद कई ऐसे मामले सामने आए जहां पुलिस की खामोशी ने माफियाओं के हौसले बढ़ाए। क्या यह खामोशी मजबूरी है, या संरक्षण? पूर्वी प्रदेश में उठते ये सवाल अब सियासत और कानून-व्यवस्था के केंद्र में आ चुके हैं।
कोडीन कफ सिरप कांड — पूर्वांचल में नशे के नए साम्राज्य की कहानी
वाराणसी में सामने आया कोडीन कफ सिरप कांड फिलहाल सबसे बड़ी बहस का विषय बना हुआ है। इस मामले का किंगपिन शुभम जायसवाल दुबई भाग चुका है जबकि उसके कई साथी गिरफ्तार हो चुके हैं। आलोक प्रताप सिंह, अमित सिंह और विकास नरवे</strong इस नेटवर्क के मुख्य चेहरे बताए जा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर इन सभी की तस्वीरें जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह</strong के साथ वायरल होने के बाद सवाल और तेज हो गए हैं। हालांकि अब तक दर्ज किसी भी एफआईआर में धनंजय सिंह का नाम नहीं है और पुलिस ने उनसे पूछताछ भी नहीं की है। लेकिन तस्वीरों में निकटता और अपराधियों की गतिविधियों ने कई राजनीतिक और अपराध-सम्बंधी कड़ियों को हवा दी है।
जांच के अनुसार, सहारनपुर में दवा माफिया के रूप में सक्रिय विभोर राणा</strong के संपर्क में आने के बाद शुभम जायसवाल को अवैध दवा तस्करी का पूरा खेल समझ में आया। इसके बाद उसने पूर्वी यूपी से लेकर झारखंड, नेपाल और बांग्लादेश</strong तक एक नेटवर्क खड़ा कर लिया। असली मेडिकल फर्म और स्टोरों के नाम पर दवाएं खरीदी जाती थीं और फिर उन्हें मेडिकल बाजार में बेचने की बजाय नशे के कारोबारियों तक डाइवर्ट कर दिया जाता था।
कोडीन सिरप की तस्करी सीमा पार पहुंची तो कमाई कई गुना बढ़ गई, और सुरक्षा के लिए शुभम जायसवाल ने माफियाओं से संपर्क बढ़ाया। यहीं से आलोक प्रताप सिंह</strong (जिन्हें धनंजय सिंह का राइट-हैंड कहा जाता है) इस धंधे में कूद पड़े और दवाओं की खरीद-फरोख्त के ठोस चैनल तैयार किए।
128 एफआईआर, 40 जिले, लेकिन किंगपिन फरार — नेटवर्क कितना बड़ा?
अब तक 40 जिलों में 128 एफआईआर दर्ज</strong हो चुकी हैं और 35 से अधिक गिरफ्तारियां</strong भी। लेकिन जाल इतना गहरा है कि किंगपिन शुभम अभी भी 경찰 की पकड़ से बाहर है। उसका पिता भोला जायसवाल जरूर कोलकाता से गिरफ्तार</strong किया जा चुका है।
वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, आजमगढ़, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र जैसे जिलों में यह नेटवर्क सबसे अधिक सक्रिय रहा। यहां मेडिकल स्टोर मालिकों और फार्मा कंपनियों को कवर इंटरफ़ेस</strong के रूप में इस्तेमाल किया गया। केवल जौनपुर में 57 करोड़ का कोडीन कनेक्शन पकड़ा गया</strong और 12 मेडिकल स्टोरों पर मुकदमे दर्ज हुए।
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव</strong ने इसे तंज भरे अंदाज में “एक जिला एक माफिया योजना”</strong तक कह दिया और पूछा — “बुलडोजर की चाबी कहां गुम हो गई?”
खनन माफिया — सोनभद्र हादसा सब कुछ बयां करता है
पूर्वी यूपी में अपराध का दूसरा बड़ा चेहरा अवैध खनन</strong है। रेत और बालू के इस धंधे से हर महीने करोड़ों की काली कमाई</strong होती है। सोनभद्र में बिरसा मुंडा जयंती के दिन खनन गड्ढे धंसने से 6 से ज्यादा मजदूरों की मौत</strong हुई। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कुछ मजदूर पकड़ लिए गए और कुछ अफसरों के तबादले कर दिए गए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अधिकारी और खनन माफिया की सांठगांठ</strong इतनी मजबूत है कि पुलिस सख्ती करने से पहले 10 बार सोचती है। हाल के महीनों में पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह</strong की सक्रियता इस क्षेत्र में बढ़ने की चर्चाओं में है। वहीं चुलबुल सिंह</strong के परिवार का दबदबा पहले से रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का दावा है कि धनंजय सिंह, अभय सिंह, बृजेश सिंह और सुशील सिंह</strong जैसे माफिया आज भी जमीन, कमीशनखोरी और खनन से लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं।
माफियाओं की आपसी जंग — राजनीति की जमीन पर अपराध की रणनीति!
कोडीन कांड में धनंजय सिंह का नाम तूल पकड़ रहा है। अखिलेश यादव ने भले बिना नाम लिए निशाना साधा हो, पर सीधा प्रभाव साफ दिख रहा है। बताया जा रहा है कि वाराणसी के एक बड़े माफिया अपनी बेटी को जौनपुर से जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव लड़वाना चाहते हैं</strong। यहां फिलहाल धनंजय सिंह का दबदबा है — इसलिए उन्हें कमजोर करने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं।
सोशल मीडिया पर उन्हें “कोडीन भइया”</strong तक कहा जाने लगा है। वहीं अवध क्षेत्र में कभी मुख्तार के करीबी रहे अभय सिंह</strong ने भी धनंजय पर नाम लिए बिना हमला बोला और कहा कि “जौनपुर बदनामी में सबसे आगे इसलिए है…”
सरकार की स्थिति — सख्ती भी है, लेकिन सवाल भी बहुत हैं
प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद</strong ने कहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसी भी प्रकार के अपराध और माफियाराज के प्रति जीरो-टॉलरेंस नीति</strong अपनाई है और उसी पर कार्रवाई जारी है।
कोडीन कफ सिरप कांड की निगरानी और समन्वय के लिए आईजी रैंक के अधिकारी की अगुवाई में एसआईटी गठित</strong की जा रही है। इसके साथ एक प्रशासनिक अधिकारी और एफएसडीए का प्रतिनिधि</strong भी शामिल रहेगा।
एफएसडीए सचिव रौशन जैकब</strong का कहना है कि यूपी में ऐसी कोई मौत अभी तक नहीं हुई जो कोडीन कफ सिरप के सेवन के कारण हुई हो। यह मामला पूरी तरह अवैध तस्करी और तिजारत</strong से जुड़ा है।
आखिर सच्चाई क्या है?
पूर्वांचल एक बार फिर अपराध की नई लहर से जूझ रहा है। अपराधी बदल गए हैं, लेकिन अपराध नहीं। नेटवर्क पहले से ज्यादा तकनीकी और संगठित है। खनन हो, नशा हो या राजनीतिक दांव — माफिया फिर से अपने पैर जमा रहे हैं और कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या ये वापसी अपराधियों की ताकत का नतीजा है या सिस्टम की खामोशी का?
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क्या कोडीन कफ सिरप कांड में धनंजय सिंह आरोपी हैं?
अब तक दर्ज किसी भी एफआईआर में उनका नाम नहीं है और पुलिस पूछताछ भी नहीं हुई है। सोशल मीडिया पर तस्वीरों से विवाद बढ़ा है, लेकिन कानूनी रूप से वे आरोपी नहीं हैं।
कोडीन सिरप की तस्करी में नेटवर्क कितना बड़ा है?
40 जिलों में 128 एफआईआर दर्ज और 35 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। नेटवर्क नेपाल और बांग्लादेश तक फैला हुआ पाया गया है।
सोनभद्र खनन हादसे में कार्रवाई क्यों कम हुई?
स्थानीय लोगों के अनुसार माफिया और प्रशासन की मिलीभगत के कारण सिर्फ कुछ मजदूरों और कुछ अफसरों पर छोटी कार्रवाई की गई।
क्या पूर्वी यूपी में माफियाओं की वापसी हो रही है?
हाल के मामलों से ऐसा दिख रहा है कि नए चेहरों के साथ अपराध तंत्र फिर मजबूत हो रहा है।






