किराए के कमरों में बंद ज़िंदगी; प्रवासियों से बिजली बिल के नाम पर लूट, अपमान और बेबसी की दास्तान

प्रशांत पुजारी की रिपोर्ट
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पंजाब के संकरे औद्योगिक इलाकों में शाम उतरते ही मजदूरों और फैक्ट्री कर्मचारियों के कदम लड़खड़ाते से घर लौटते दिखाई देते हैं। इन्हें घर कहना शायद शब्दों का भ्रम होगा—क्योंकि इन इलाकों में रहने वाले 90 फ़ीसद प्रवासी ऐसे किराए के कमरों में रहते हैं जो न तो स्वास्थ्य मानकों पर खरे उतरते हैं, न ही बुनियादी जीवन सुविधाओं के करीब होते हैं। फिर भी इन्हीं चार कमजोर दीवारों के भीतर वे अपने परिवारों का भविष्य बुनने की कोशिश करते हैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, मध्यप्रदेश और राजस्थान से पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में रोज़गार की तलाश में आने वाले मजदूरों की संख्या हर साल बढ़ती है। मजदूर संगठन के 2024 के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ पंजाब और हरियाणा में लगभग 42 लाख प्रवासी मजदूर विभिन्न उद्योगों, कृषि कार्य, फ़ैक्टरियों और निर्माण कार्यों में कार्यरत हैं। लेकिन इनकी ज़िंदगी में संघर्ष सिर्फ रोज़गार तक सीमित नहीं। असल संघर्ष शुरू होता है घर लौटने के बाद—किराए के मकान के भीतर, जहाँ किराया, बिजली बिल और मकान मालिक का डर एक स्थायी तनाव बन चुका है।

किराएदार, पर अधिकार शून्य—शोषण की जड़ें गहरी

लुधियाना के बाहरी क्षेत्र जमालपुर में रहने वाले एक प्रवासी परिवार से जब पूछा गया कि सबसे बड़ी समस्या क्या है, तो उत्तर बिना एक पल की देरी के आया—“बिजली बिल और मकान मालिक का डर।” यह जवाब केवल एक घर की पीड़ा नहीं, बल्कि हज़ारों प्रवासी किराएदारों की सामूहिक हकीकत है।

“सरकार ने घरेलू बिजली दर 6 रुपये यूनिट तय की है, लेकिन हमसे 10 रुपये यूनिट तक वसूले जाते हैं। कमरे में सिर्फ एक पंखा, एक बल्ब, मोबाइल चार्ज और कभी-कभी चूल्हे के लिए इंडक्शन। फिर भी महीने के आखिर में बिजली का बिल 2,000 से 2,500 रुपये लिखा मिलता है। बोलो तो कहते हैं—पसंद नहीं तो कमरा छोड़ दो।” — रंजीत कुमार, प्रवासी मजदूर, मूल निवासी दरभंगा (बिहार)

ऐसी कहानी कोई अनोखी नहीं। अमृतसर, मोहाली, पठानकोट, सिरसा, यमुनानगर, ऊना और जम्मू तक हर जगह हाल कमोबेश एक ही है। मकान मालिक मीटर की रीडिंग दिखाते नहीं, बिल की कॉपी देते नहीं और वसूली नकद में होती है। किसी सरकारी रसीद या पारदर्शी हिसाब का नाम तक नहीं। प्रवासी मजदूरों के लिए बिजली बिल और किराया एक असंगठित, अनियंत्रित और शोषणकारी व्यवस्था का हिस्सा बन चुका है।

सीमित आय, लेकिन खर्चों की मार सबसे भारी

एक बड़ी विडंबना यह है कि जो मजदूर उद्योगों की रीढ़ हैं, वही जीवन की बुनियादी सुरक्षा के बिना हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले अधिकतर प्रवासी मजदूर अस्थायी रोजगार, ओवरटाइम और ठेका प्रथा पर टिके हुए हैं। 2024 के अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि इनकी मासिक आमदनी और किराए की स्थिति कुछ इस प्रकार है:

राज्यवार औसत मासिक आमदनी (प्रवासी मजदूर)

  • पंजाब: ₹11,500 – ₹15,000
  • हरियाणा: ₹12,000 – ₹16,500
  • हिमाचल: ₹10,000 – ₹14,000
  • जम्मू: ₹9,000 – ₹13,500

किराया और बिजली बिल की स्थिति

सिंगल रूम: औसत किराया ₹2,500 – ₹3,500 (बिजली अलग, जो प्रायः वास्तविक से कहीं अधिक वसूली जाती है)

दो कमरे: औसत किराया ₹4,800 – ₹7,200, जबकि अनुमानित बिजली बिल ₹3,800 – ₹7,000 तक लिखा जाता है, जो आय के अनुपात में बेहद ज्यादा है।

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यानी एक मजदूर की कुल आय का लगभग 35 से 50 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ मकान और बिजली पर खर्च हो जाता है। महीने के अंत में जब खाने, बच्चों की पढ़ाई और इलाज का सवाल उठता है, तब वे मजबूरन ओवरटाइम करते हैं, दूसरे छोटे-मोटे काम ढूंढते हैं या कर्ज़ लेते हैं। यह आर्थिक दबाव उन्हें लगातार मानसिक तनाव और असुरक्षा की स्थिति में धकेलता रहता है।

कानून मौजूद, लेकिन प्रवासी बेखबर और असुरक्षित

सवाल उठता है—किराएदारों के अधिकार आखिर कहां हैं? पंजाब सरकार के बिजली उपभोक्ता नियमों के अनुसार किराएदार से वास्तविक मीटर रीडिंग के आधार पर ही पैसे वसूले जा सकते हैं। मीटर मालिक का नाम बिजली बिल में दर्ज होना अनिवार्य है और किराएदार को बिल की प्रति देना कानूनी दायित्व है।

बाजार दर से अधिक वसूली धोखाधड़ी की श्रेणी में आती है और अवैध कमर्शियल टैरिफ के तहत ऐसे मामलों में जुर्माना और सज़ा दोनों का प्रावधान है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखाई देती है।

“कोई भी मकान मालिक बिजली को पुनर्विक्रय (Resale) नहीं कर सकता। यदि किराएदारों से अधिक शुल्क वसूला जाता है तो यह दंडनीय अपराध है; शिकायत मिलने पर कनेक्शन कट सकता है और जुर्माना लगाया जा सकता है।” — पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (PSERC), आदेश 2022

समस्या यह है कि अधिकतर प्रवासी मजदूर इन नियमों से अनभिज्ञ हैं। भाषा, जानकारी की कमी और प्रशासनिक दफ्तरों से दूरी उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखती है। ऊपर से शिकायत करने पर प्रतिशोध का डर इतना गहरा है कि वे “सिस्टम” से लड़ने की कल्पना तक नहीं कर पाते।

शिकायत करने की कीमत—अपमान, बेघर कर देना और दोगुना एडवांस

लुधियाना के न्यू जम्बूवाल रोड पर रहने वाली ममता देवी बताती हैं कि जब उन्होंने बिजली बिल का हिसाब पूछने की हिम्मत की, तो मकान मालिक ने तुरंत दबाव की भाषा में जवाब दिया।

“एक बार हमने बिजली बिल का हिसाब पूछा। अगले ही दिन मकान मालिक ने सबके सामने कहा—‘ये बहुत अक्लमंद बन रही है, कमरा खाली करो।’ दूसरे किराएदार भी डर जाते हैं कि कहीं उन्हें भी न निकाल दिया जाए।” — ममता देवी, प्रवासी किराएदार

रिपोर्ट्स के अनुसार, ऐसे मामलों में अक्सर किराएदारों का अपमान किया जाता है, उनका सामान बाहर फेंक दिया जाता है, घर में ताला लगा दिया जाता है और कई बार तो बिना किसी पूर्व सूचना के एडवांस वापस किए बिना ही बाहर निकाल दिया जाता है।

“हम रात में छोटे बच्चों के साथ सड़क पर बैठे थे क्योंकि विरोध किया था। अगली सुबह नया कमरा मिला, लेकिन दोगुना एडवांस लिया।” — फैक्ट्री कर्मचारी की पत्नी, यमुनानगर (हरियाणा)

यानी प्रवासी मजदूरों के लिए किराया सिर्फ रहने की सुविधा नहीं, बल्कि असुरक्षा का एक स्थायी कारागार बन चुका है, जहाँ सवाल उठाने की कीमत बेघर हो जाना और दोगुना आर्थिक बोझ उठाना है।

शोषण का मॉडल कैसे चलता है?

जांच के दौरान यह सामने आया कि कई औद्योगिक बस्तियों और किरायेदार कॉलोनियों में मकान मालिकों ने एक ही बिजली कनेक्शन पर 10 से 40 कमरों तक बिजली बांट रखी है। बिजली का मीटर सीधे कमरे तक नहीं ले जाया जाता, बल्कि फ्लोर चार्ज, हेड चार्ज या फिक्स्ड चार्ज के नाम पर एकमुश्त बिल थोप दिया जाता है।

  • वास्तविक बिजली बिल: लगभग ₹6,000–₹12,000 प्रति माह
  • किराएदारों से वसूली: कुल मिलाकर ₹40,000–₹80,000 तक
  • कई जगहों पर बिजली कमर्शियल लाइन पर चल रही है, लेकिन उसका पूरा बोझ मजदूरों की जेब पर डाला जाता है
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इसी कारण मकान मालिकों की यह “किराएदारी इंडस्ट्री” कई इलाकों में बिजली बचत से ज्यादा “बिजली कमाई” का धंधा बन चुकी है। जितने अधिक कमरे, उतना अधिक मुनाफा—और इस मुनाफे की कीमत चुकाते हैं वे लोग जो खुद शहर की अर्थव्यवस्था को अपने श्रम से जिंदा रखते हैं।

प्रवासी मजदूरों की मानवीय स्थिति: विकास के नाम पर असमानता

प्रवासी मजदूरों की स्थिति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि गहन मानवीय और सामाजिक सवाल भी खड़े करती है। एक तरफ उद्योग, मिलें, फैक्ट्रियां प्रवासी मजदूरों की मेहनत पर खड़ी हैं; दूसरी तरफ वही मजदूर अपने परिवार के साथ अमानवीय, तंग, गीले और असुरक्षित कमरों में रहने को मजबूर हैं, जहाँ न रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था है, न हवा और न ही स्वच्छ शौचालय।

सर्वे में शामिल प्रवासियों के उत्तर इस चिंता को और स्पष्ट कर देते हैं:

  • लगभग 77% प्रवासी मजदूरों ने बताया कि वे मकान मालिक के अपमान और प्रतिशोध के डर से शिकायत नहीं करते।
  • 69% ने स्वीकार किया कि बिजली बिल को लेकर हमेशा तनाव बना रहता है।
  • 34% मजदूरों ने कहा कि पूरा किराया चुकाने के बाद भी उन्हें एडवांस वापस नहीं मिला।

यह स्पष्ट संकेत है कि कानून और वास्तविकता के बीच गहरी खाई है। किराएदारी, बिजली बिल और प्रवासी जीवन की यह त्रासदी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि विकास के चमकते आंकड़ों के पीछे कितनी असमानताएँ और अन्याय छुपे हुए हैं।

सरकार के हस्तक्षेप की अत्यंत आवश्यकता: क्या हो सकते हैं समाधान?

सरकार के पास विकल्प हैं, पर वास्तविक बदलाव के लिए केवल नियम बनाना काफी नहीं, बल्कि कार्रवाई की इच्छाशक्ति, निगरानी और प्रवासी मजदूरों के प्रति संवेदना भी जरूरी है। विशेषज्ञों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की राय में कुछ ठोस कदम इस प्रकार हो सकते हैं:

  • किराएदार पंजीकरण अनिवार्य किया जाए: औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले प्रवासी किराएदारों का ऑनलाइन/ऑफलाइन पंजीकरण अनिवार्य हो ताकि डेटा के आधार पर उनकी सुरक्षा व अधिकारों पर नीति बनाई जा सके।
  • हर किराए के मकान पर अलग बिजली मीटर: एक कनेक्शन पर दर्जनों कमरों को बिजली बाँटने की प्रथा पर रोक लगाई जाए और प्रत्येक किराए के यूनिट पर अलग मीटर लगाने की बाध्यता लागू हो।
  • बिजली बिल की कॉपी देना अनिवार्य: किराएदार को हर माह बिजली बिल की फोटोकॉपी या डिजिटल कॉपी देना मकान मालिक का कानूनी दायित्व तय हो और उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई हो।
  • “प्रवासी किराएदार हेल्पलाइन” की स्थापना: राज्य स्तर पर एक विशेष हेल्पलाइन शुरू हो जहाँ प्रवासी मजदूर अपनी शिकायत दर्ज करा सकें, भाषा व तकनीकी सहायता के साथ।
  • तत्काल निरीक्षण और ऑन-स्पॉट कार्रवाई: शिकायत मिलते ही बिजली विभाग, स्थानीय प्रशासन और पुलिस की संयुक्त टीम मौके पर जाकर जांच करे, और दोषी पाए जाने पर कनेक्शन, जुर्माना या अन्य कानूनी कार्रवाई तुरंत हो।
  • अधिक वसूली पर वापसी और मुआवजा: यदि साबित हो कि मकान मालिक ने ज्यादा वसूली की है तो वह राशि सीधे किराएदार के खाते में लौटाई जाए, साथ ही अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया जाए।
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यदि प्रवासियों की सुरक्षा और गरिमा की रक्षा नहीं होगी, तो विकास का कोई भी दावा अंततः एक खोखला नारा बनकर रह जाएगा। आर्थिक प्रगति को मानवीय गरिमा के साथ जोड़ना ही किसी भी लोकतांत्रिक समाज की असली पहचान होती है।

अंतिम प्रश्न: जिनके पसीने से शहर चमके, क्या उनके घरों में अंधेरा ठीक है?

क्या यह न्याय है कि जिनके पसीने से खेत हरे हुए, फैक्ट्रियों में उत्पादन हुआ और शहर चमके—उन्हीं के घरों में अंधेरा और भय का साया बसा रहे? किसी भी समाज की प्रगति का पैमाना सिर्फ ऊँची इमारतें नहीं, बल्कि उन दीवारों के भीतर रहने वालों की सुरक्षा और सम्मान होता है।

अब समय है कि सरकार और समाज मिलकर “प्रवासी किराएदारों” को समस्या नहीं, बल्कि देश की आर्थिक धुरी मानकर नीतियां बनाए। उनकी मेहनत देश की रीढ़ है—अब देश की नीतियों में भी उनके अधिकारों की रीढ़ खड़ी होनी चाहिए, ताकि किराए के कमरों में बंद ज़िंदगी को अधिकारों की रोशनी और सम्मान की हवा मिल सके।

(यह ग्राउंड रिपोर्ट प्रवासी मजदूरों के मौजूदा हालात, जमीनी स्थिति, आंकड़ों और पंजाब सहित उत्तरी राज्यों में लागू उपभोक्ता नियमों के आधार पर तैयार की गई है।)

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

प्रश्न 1: क्या मकान मालिक बिजली का पुनर्विक्रय (Resale) कर सकता है?नहीं। पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (PSERC) के आदेशों के अनुसार कोई भी मकान मालिक बिजली का पुनर्विक्रय नहीं कर सकता। वह केवल वास्तविक मीटर रीडिंग के आधार पर ही किराएदार से वसूली कर सकता है। अधिक वसूली या अलग से “हेड चार्ज” के नाम पर रकम लेना दंडनीय है।
प्रश्न 2: प्रवासी किराएदार अपने अधिकार कैसे जान सकते हैं?प्रवासी मजदूर स्थानीय बिजली विभाग, राज्य बिजली नियामक आयोग की वेबसाइट, मजदूर संगठनों और कानूनी सहायता केंद्रों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, कई सामाजिक संगठन भी प्रवासी मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए कैम्प लगाते हैं।
प्रश्न 3: यदि मकान मालिक वास्तविक दर से अधिक बिजली बिल वसूल रहा हो तो क्या करना चाहिए?ऐसी स्थिति में किराएदार सबसे पहले वास्तविक बिजली बिल की कॉपी मांग सकता है। यदि मकान मालिक देने से मना करे या स्पष्ट धोखाधड़ी दिखाई दे रही हो, तो बिजली विभाग, स्थानीय प्रशासन या उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज की जा सकती है। सामूहिक रूप से शिकायत करना, अकेले शिकायत करने की तुलना में अधिक प्रभावी होता है।
प्रश्न 4: शिकायत करने पर मकान मालिक द्वारा कमरा खाली कराने के डर से क्या करें?यह एक गंभीर और आम समस्या है। ऐसे मामलों में मजदूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों और मानवाधिकार संगठनों से संपर्क कर सामूहिक स्तर पर कार्रवाई की जा सकती है। यदि सरकार “प्रवासी किराएदार हेल्पलाइन” और त्वरित संरक्षण तंत्र बनाए, तो ऐसे किराएदारों को अस्थायी शेल्टर, कानूनी सहायता और वैकल्पिक आवास की सुविधा भी मिल सकती है।
प्रश्न 5: क्या अधिक वसूली की रकम वापस मिल सकती है?यदि जांच में यह साबित हो जाए कि मकान मालिक ने वास्तविक बिल से अधिक वसूली की है, तो संबंधित विभाग और नियामक संस्थाएं उस रकम की वापसी का आदेश दे सकती हैं। आदर्श स्थिति में यह राशि सीधे किराएदार के खाते में लौटाई जानी चाहिए और मकान मालिक पर अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया जाना चाहिए।

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