हिमांशु मोदी की रिपोर्ट
किसी नगर का नाम केवल एक शब्द या औपचारिक पहचान नहीं होता, बल्कि वह अपने भीतर इतिहास, संस्कृति, परंपरा और स्मृतियों का पूरा संसार समेटे होता है। जब किसी नगर के नाम में परिवर्तन होता है, तो केवल अक्षर नहीं बदलते — बल्कि लोगों की भावनाएँ, सांस्कृतिक अस्मिता और ऐतिहासिक गौरव भी प्रभावित होता है। आज ऐसा ही सवाल ब्रज मंडल की सांस्कृतिक नगरी कामां के लिए उठ खड़ा हुआ है: क्या इस नगर को उसके वास्तविक, प्राचीन और पौराणिक नाम ‘कामवन’ से वापस नहीं पुकारा जाना चाहिए?
अपभ्रंश से मूल नाम की ओर — समय की मांग
धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार यह नगर ब्रज के प्राचीन बारह वनों में से एक — ‘कामवन’ के रूप में जाना जाता रहा है। शास्त्रों व अभिलेखों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि यह वही भूमि है जो भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, रास और क्रीड़ाओं का जीवंत केंद्र रही है। समय के साथ प्रशासनिक प्रक्रियाओं और बोलचाल में परिवर्तन के कारण ‘कामवन’ धीरे–धीरे अपभ्रंश होकर ‘कामां’ में बदल गया, परंतु यथार्थ के स्तर पर इसका मूल स्वरूप कभी बदला नहीं। इसीलिए वर्तमान मांग को कोई नया नाम देने की कोशिश नहीं, बल्कि नाम शुद्धिकरण की पहल माना जाना चाहिए, जिसका उद्देश्य नगर को उसकी वास्तविक ऐतिहासिक और पौराणिक पहचान लौटाना है। नाम का यह शुद्धिकरण केवल शब्दों का सुधार नहीं, बल्कि उस गौरव का पुनर्जीवन है जो सदियों से इस भूमि की आत्मा में बसता आया है।सामाजिक प्रयासों की पहल — ज्ञापन से आंदोलन तक
कामवन नाम की इस तार्किक और ऐतिहासिक मांग को अब सामाजिक संगठनों ने संगठित तरीके से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। अपना घर सेवा समिति कामवन की ओर से कामां को पुनः ‘कामवन’ बनाने के लिए ज्ञापन सौंपा जाएगा। समिति के अध्यक्ष प्रमोद पुजारी ने बताया कि सोमवार को उपखंड अधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार को आधिकारिक ज्ञापन दिया जाएगा, जिसमें नगर के नाम को उसके प्राचीन स्वरूप ‘कामवन’ के रूप में पुनर्स्थापित करने की मांग की जाएगी।इसे भी पढें कामां निवासी देवांश खोसला ने किया कामां का नाम रोशन | RAS परीक्षा 2025 में 86वीं रैंक
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‘कामवन’ नाम लौटाने के पीछे तर्क — धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार
कामवन नाम की मांग केवल भावनात्मक आग्रह नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तीनों स्तरों पर ठोस और मजबूत आधार मौजूद हैं। सबसे पहले धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से देखें तो कामवन ब्रज के उन पावन स्थलों में गिना जाता है जहां श्रीकृष्ण की विविध लीलाएँ वर्णित हैं। तीर्थाटन की दृष्टि से भी यह स्थान विशिष्ट महत्व रखता है। ऐसे में ‘कामवन’ नाम लौटाने से इस नगर की आध्यात्मिक महत्ता और भी प्रबल होगी और ब्रज लीला स्थलों की श्रृंखला में इसकी पहचान और स्पष्ट हो जाएगी।इसे भी पढें बृज के विख्यात तीर्थराज विमल कुंड पर 1.25 लाख दीपों से दीपदान, इंद्रधनुषी छटा ने भक्तों को किया भावविभोर
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धार्मिक पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव
आज पूरा ब्रज क्षेत्र धार्मिक पर्यटन के बड़े केंद्र के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है। देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु वृंदावन, मथुरा, गोवर्धन, नंदगांव, बरसाना इत्यादि लीलास्थलों की यात्रा के लिए आते हैं। ऐसे में यदि कामां को उसके मूल नाम कामवन के रूप में स्थापित किया जाता है, तो यह नगर ब्रज पर्यटन मानचित्र पर और अधिक सशक्त रूप से उभर सकता है। कामवन नाम की पुनर्स्थापना के बाद तीर्थ–पर्यटन, धार्मिक मेलों, उत्सवों और यात्रा मार्ग में इसकी पहचान और मजबूत होगी, जिसका सीधा लाभ स्थानीय स्तर पर मिलने की संभावना है। इससे होटल, धर्मशाला, परिवहन, भोजनालय, प्रसाद, पूजा सामग्री और हस्तशिल्प से जुड़े व्यवसायों में वृद्धि हो सकती है। इस प्रकार नाम का शुद्धिकरण केवल भावनात्मक या सांस्कृतिक मुद्दा नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी संभावनाओं का द्वार खोल सकता है।इसे भी पढें दबंगों की दबंगई सिर चढकर बोला चित्रकूट में : महिला को सड़क पर पटक-पटककर पीटा, मिशन नारी शक्ति पर सवाल
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