
देवरिया सदियों से इतिहास, अध्यात्म और सनातन संस्कृति की पोषक भूमि रहा है। यहाँ के प्राचीन मठ, तीर्थ, परंपराएँ और लोकचेतना यह प्रमाणित करते हैं कि
शिक्षा और ज्ञान का अनुशासन इस क्षेत्र के सामाजिक ढाँचे में हमेशा केंद्रीय रहा है। युग बदले, व्यवस्थाएँ बदलीं, लेकिन सीखने और सिखाने की परंपरा कभी थमी नहीं।
बीते कुछ दशकों में शिक्षा की दिशा और प्रकृति दोनों बदली हैं तथा इसी बदलाव में ग्रामीण इलाकों में स्थापित
प्राइवेट स्कूलों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण रूप से उभरा है।
आज देवरिया का ग्रामीण समाज यह मानने लगा है कि शिक्षा सिर्फ विद्यालय नहीं, बल्कि भविष्य का निवेश है। माता-पिता, आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद,
अपनी सामर्थ्य से अधिक खर्च कर अपने बच्चों को ऐसे विद्यालय भेजने लगे हैं जहाँ पढ़ाई-लिखाई, अनुशासन, व्यवहार और भविष्य की तैयारी एक समग्र प्रक्रिया के रूप में हो।
यह बदलाव न केवल सामाजिक चेतना की उन्नति का प्रमाण है, बल्कि यह भी बताता है कि
निजी विद्यालयों ने ग्रामीण शिक्षा को कितनी गहराई से प्रभावित किया है।
ग्रामीण प्राइवेट स्कूल : पहुँच से गुणवत्ता की ओर
कुछ समय पहले तक गाँवों में शिक्षा की चर्चा केवल इस बात तक सीमित रहती थी कि स्कूल है या नहीं। लेकिन आज प्रश्न बदल चुका है— स्कूल है, पर उसमें गुणवत्ता कैसी है?
इसी प्रश्न ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों के लिए जगह बनाई। शुरुआत में यह सोच प्रबल थी कि निजी विद्यालय केवल शहरों में ही हो सकते हैं, लेकिन परिस्थितियाँ बदलीं
और शिक्षित युवाओं, समाजसेवियों तथा प्रगतिशील ग्रामीणों ने शिक्षा क्षेत्र में पहल की। नतीजा यह हुआ कि आज देवरिया के गाँवों में दर्जनों
प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जो— स्मार्ट कक्षाएँ, इंग्लिश मीडियम शिक्षण पद्धति, प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रारंभिक समझ, कंप्यूटर और खेल सुविधाएँ तथा सह-शैक्षणिक गतिविधियाँ जैसे
अवसर उपलब्ध करा रहे हैं।
इन स्कूलों ने शिक्षा को “पहुंच” से निकालकर “गुणवत्ता” की दिशा में आगे बढ़ाया। भले ही हर विद्यालय समान स्तर पर नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर
ग्रामीण शिक्षा की धुरी बदल चुकी है।
सकारात्मक प्रभाव जो अनदेखे नहीं किए जा सकते
देवरिया के ग्रामीण इलाकों में निजी विद्यालयों के बढ़ने से कई बदलाव दर्ज हुए हैं,
- बच्चों में प्रतियोगिता की भावना बढ़ी। अब छात्रों का लक्ष्य सिर्फ पास होना नहीं, बल्कि बेहतर प्रदर्शन करना है।
- अभिभावकों की भागीदारी बढ़ी। स्कूल और अभिभावक के बीच संवाद की संस्कृति बनी है।
- शिक्षकों को रोजगार मिला। स्थानीय प्रतिभाशाली युवाओं और प्रशिक्षित शिक्षकों को अपने ही क्षेत्र में नौकरी के अवसर मिले।
- छात्रों की भाषा व व्यवहारिक दक्षता मजबूत हुई। आत्मविश्वास, प्रस्तुति, और सामाजिक व्यवहार में स्पष्ट परिवर्तन देखने को मिला।
इन सबके कारण ग्रामीण समाज में शिक्षा की धारणा बदली है। अब पढ़ाई केवल सरकारी नौकरी की उम्मीद के लिए नहीं, बल्कि
जीवन निर्माण के लिए की जाने लगी है।
फीस और आर्थिक दबाव भी एक वास्तविकता
यह तथ्य भी उतना ही सच है कि कई परिवार अपनी सीमा से अधिक खर्च उठाकर बच्चों को पढ़ाते हैं। अक्सर खेतिहर मजदूर, छोटी दुकान चलाने वाले लोग और कम आमदनी वाले परिवार भी
मन मसोसकर सही फीस जमा करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि सरकारी विकल्पों में शैक्षणिक माहौल कभी-कभी अपेक्षा के अनुरूप नहीं मिल पाता।
इसलिए ग्रामीण प्राइवेट स्कूलों के विकास को गलत साबित करना समाधान नहीं है। बल्कि चिंता का विषय यह है कि क्या
सरकार और प्रशासन इन स्कूलों को सही मार्गदर्शन और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ने का अवसर दे रहे हैं?
मान्यता और निबंधन की सबसे बड़ी बाधा: भ्रष्टाचार
शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्तापरक मानकों का लागू होना अनिवार्य है। यह किसी भी तरह से गलत नहीं माना जा सकता। लेकिन चिंता वहाँ शुरू होती है जहाँ
नियमों के नाम पर अवरोध खड़ा किया जाता है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ऐसे मामले सामने आए जहाँ प्राइवेट स्कूलों को कक्षा 12 तक की मान्यता दिलाने के लिए अधिकारियों द्वारा लाखों रुपये की पेशगी
मांगने की बात उजागर हुई।
यह स्थिति चिंताजनक इसलिए है क्योंकि—
- विद्यालय भवन,
- कक्षाओं की संख्या,
- शिक्षक योग्यता,
- प्रयोगशालाएँ और पुस्तकालय,
- सुरक्षा मानक
सब कुछ पूरा करने के बावजूद कई विद्यालय फाइलें आगे बढ़वाने के लिए “अनुरोध” या “चढ़ावा” देने को मजबूर होते हैं।
प्रश्न यह नहीं कि मानक क्यों हैं… प्रश्न यह है कि मानकों को पूरा करने वाले विद्यालयों को मान्यता क्यों कठिन कर दी जाती है?
जब एक स्कूल ईमानदारी से इंफ्रास्ट्रक्चर व गुणवत्ता पर खर्च करता है, तब मान्यता प्रक्रिया में उसका उत्पीड़न नीति नहीं, अन्याय है।
सरकारी तंत्र और निजी विद्यालय प्रतिस्पर्धी नहीं, सहयोगी होने चाहिए
अक्सर यह भ्रम फैलाया जाता है कि प्राइवेट स्कूल सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी हैं। वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है।
ग्रामीण क्षेत्र में यदि प्राइवेट स्कूल मजबूत हैं तो इसका सीधा लाभ सरकारी स्कूलों को भी मिलता है।
प्रतिस्पर्धा से सरकारी विद्यालयों में सुधार की प्रेरणा मिलती है, अभिभावकों की शिक्षा-जागरूकता बढ़ती है, स्थानीय युवाओं में शिक्षक बनने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
यदि सरकार इन्हें शत्रु के रूप में देखने के बजाय सहयोगी शिक्षा साझेदार के रूप में मानकर नीति बनाए तो बच्चे सर्वाधिक लाभान्वित होंगे।
रास्ता क्या है? समाधान किस दिशा में है?
देवरिया के ग्रामीण प्राइवेट स्कूलों की सच्ची प्रगति तभी संभव है जब—
- मान्यता प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन, पारदर्शी और समयबद्ध हो,
- निरीक्षण के लिए भ्रष्टाचार-मुक्त टीम गठित हो,
- इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश करने वाले विद्यालयों को कानूनी सुरक्षा मिले,
- विद्यालयों पर फीस नियंत्रण नहीं, बल्कि फीस पारदर्शिता लागू हो,
- योग्य शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सहयोग व सरकारी अनुदान उपलब्ध हो,
ऐसा होने पर न केवल स्कूल मजबूत होंगे, बल्कि शिक्षा व्यापार नहीं, समाज निर्माण का मिशन बन जाएगी।
देवरिया का भविष्य शिक्षा की रोशनी में सुरक्षित
देवरिया का गौरव सिर्फ इसकी प्राचीन आत्मा में नहीं, बल्कि इसकी आधुनिक शिक्षा यात्रा में भी है। जिस भूमि ने वेद, भजन और नैतिक मूल्यों को संभाला,
वही भूमि आज विज्ञान, टेक्नोलॉजी और आधुनिक शिक्षा के नए प्रतिमान गढ़ रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों की मौजूदगी को कमज़ोरी नहीं, अवसर के रूप में देखना चाहिए।
सही नीति, सहयोगी प्रशासन और पारदर्शी व्यवस्था के साथ ये विद्यालय आने वाले दशक में देवरिया के बच्चों को
विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा के योग्य बना सकते हैं।
सच्चे अर्थों में—
जब शिक्षा व्यवस्था निष्पक्ष और प्रेरक होगी, तभी संस्कृति और आधुनिकता दोनों समानांतर चल सकेंगी और यही देवरिया की पहचान भी है,
परंपरा کو थामे हुए, लेकिन भविष्य की ओर बढ़ता हुआ।






