
चित्रकूट। घने जंगलों, आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति से आच्छादित महर्षि वाल्मीकि आश्रम पर्वत पर बड़ा धार्मिक बदलाव होने जा रहा है। जिस तरह कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा चित्रकूट की पहचान है, उसी प्रकार अब श्रद्धालु महर्षि वाल्मीकि पर्वत की भी परिक्रमा कर सकेंगे। पर्यटन विभाग पर्वत के चारों ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा परिक्रमा पथ बनाने की तैयारी कर चुका है। योजना पूरी होते ही यह स्थान बुंदेलखंड का सबसे प्रतिष्ठित तीर्थ केंद्र बनकर उभरेगा।
महर्षि वाल्मीकि आश्रम का इतिहास — रामायण काल की जीवित स्मृतियों का केंद्र
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान प्रयाग से चित्रकूट आए, तब महर्षि वाल्मीकि ने ही उन्हें इस पर्वतीय क्षेत्र में निवास की सलाह दी थी। इसी भूमि पर बाद में रामायण की रचना हुई और यहीं से धर्म, कर्तव्य, आदर्श और मर्यादा के मूल सिद्धांत विश्व में स्थापित हुए।
पहाड़ी के शिखर पर स्थापित महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा और मंदिर आज भी वही सौम्यता और आध्यात्मिकता महसूस कराते हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा की गुफा में प्राचीन मूर्तियाँ और शिल्प मौजूद हैं, जिन्हें पुरातत्व और संस्कृति के भावनात्मक साक्ष्य के रूप में देखा जाता है। पहाड़ी के नीचे बहने वाली ओहन नदी इस स्थान के आध्यात्मिक वातावरण को और अधिक पवित्र बनाती है।
पर्यटन विभाग की विकास योजनाएँ — पर्वत को संवारने की क्रमिक पहल
पिछले तीन वर्षों में पर्यटन विभाग द्वारा आश्रम क्षेत्र को विकसित करने के तहत महर्षि वाल्मीकि की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई, स्वागत द्वार का निर्माण किया गया और पर्वत तक पहुंचने के लिए मजबूत सीढ़ियाँ बनाई गईं। परिसर का सौंदर्यीकरण और लाइटिंग भी की गई है, जिससे श्रद्धालुओं के लिए दर्शन सुगम हो सके।
अब योजना के अगले चरण में पर्वत की पूरी परिक्रमा हेतु सुरक्षित और व्यवस्थित मार्ग बनाया जाना प्रस्तावित है, जिस पर दो श्रद्धालु आसानी से साथ-साथ चल सकेंगे। वन विभाग की भूमि मांगी जा चुकी है और मंजूरी मिलते ही काम शुरू होने की संभावना है। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आर.के. रावत के अनुसार — “पर्वत के चारों ओर परिक्रमा पथ निर्माण के लिए प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जा रहा है।”
परिक्रमा पथ बनने के बाद धार्मिक आस्था और स्थानीय अर्थव्यवस्था में बड़ा परिवर्तन
परिक्रमा पथ निर्माण से श्रद्धालुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है। इससे स्थानीय दुकानदारों, होटल एवं लॉज व्यवसाय, फूल-प्रसाद विक्रेताओं और ऑटो-टैक्सी चालकों को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। धार्मिक आयोजन, रामायण पाठ, कथा-सत्संग और आध्यात्मिक यात्राओं की आवृत्ति भी बढ़ेगी। इससे चित्रकूट न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक पर्यटन नक्शे पर और अधिक मजबूती से दर्ज हो सकता है।
वर्तमान सुविधाएँ और शेष चुनौतियाँ
सीढ़ियों और प्रकाश व्यवस्था की वजह से मंदिर तक पहुंचना पहले के मुकाबले काफी आसान हुआ है। फोटो प्वाइंट, बैठने के स्थान और आरती दर्शन श्रद्धालुओं के अनुभव को यादगार बनाते हैं। लेकिन अभी भी पेयजल, शौचालय, रेन सेफ वे, प्राथमिक चिकित्सा, पार्किंग और दिशासूचक बोर्डों की व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की जाती है। स्थानीय दुकानदार और यात्रियों का मानना है कि इन सुविधाओं के जुड़ने से यह स्थान कामदगिरि के बराबर धार्मिक प्रभाव स्थापित कर सकता है।

प्रकृति, अध्यात्म और कथा का संगम — पर्वत का आध्यात्मिक अनुभव
सुबह के समय पहाड़ी पर चढ़ते हुए पेड़ों की सरसराहट, पक्षियों की मधुर आवाज़ और मंदिर से आती घंटियों की गूंज मन को देवत्व की अनुभूति कराती है। प्रतिमा के सामने खड़े श्रद्धालु के लिए यह अनुभव केवल दर्शन नहीं, बल्कि समय के पार रामायण काल की अनुभूति जैसा होता है। प्रस्तावित परिक्रमा पथ पूरा होने के बाद श्रद्धालु प्राकृतिक सौंदर्य, शांति, तप और आध्यात्मिकता के बीच पर्वत की परिक्रमा कर सकेंगे।
निष्कर्ष — बदल जाएगा चित्रकूट का धार्मिक नक्शा
यदि प्रस्तावित परिक्रमा पथ समय पर बनकर पूरा हो जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि महर्षि वाल्मीकि आश्रम पर्वत आने वाले वर्षों में चित्रकूट की धार्मिक पहचान को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह स्थल आस्था, पर्यटन और संस्कृति के केंद्र के रूप में बुंदेलखंड का प्रमुख तीर्थ बन सकता है। हालांकि विकास के साथ यह भी आवश्यक है कि प्राकृतिक संतुलन, शांति और तपस्थली की आध्यात्मिक गरिमा पूर्ण रूप से सुरक्षित रहे।
रिपोर्ट – संजय सिंह राणा






