तो क्या बीजेपी को नई महिला प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएंगी❓

अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश बीजेपी में नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी को लेकर
दिल्ली से लखनऊ तक सियासी तापमान लगातार बढ़ रहा है
जिलाध्यक्षों की नई तैनातियों के बाद अब पूरी पार्टी की निगाहें सिर्फ एक बड़े फैसले पर टिक चुकी हैं—प्रदेश की कमान आखिर किसके हाथ में जाएगी?

खास बात यह है कि इस बार चर्चा सिर्फ नामों तक सीमित नहीं है, बल्कि
इस संभावना पर भी जोर है कि बीजेपी पहली बार उत्तर प्रदेश में किसी महिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर
एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संदेश दे सकती है। पार्टी की अंदरूनी बैठकों से लेकर राजनीतिक गलियारों की चर्चाओं तक,
हर जगह यही सवाल गूंज रहा है कि क्या यूपी बीजेपी अब ‘महिला कार्ड’ खेलने जा रही है?

दिल्ली से लखनऊ तक मंथन: नया चेहरा कौन होगा?

बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने कई राज्यों में संगठन की नई सूरत गढ़ने की कवायद तेज कर दी है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष
जैसे शीर्ष नेता प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर लगातार मंथन में जुटे हैं।

कुछ महीने पहले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं—
सीएम योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम, प्रदेश पदाधिकारियों, मंत्रियों और संगठन के वरिष्ठ चेहरों से अलग-अलग मुलाकात करके राय ली थी।
इन सभी सुझावों की विस्तृत रिपोर्ट हाईकमान तक पहुंच चुकी है और अब उसी आधार पर अंतिम निर्णय की रूपरेखा तैयार की जा रही है।

जिलाध्यक्षों की नई सूची जारी होने के बाद संगठनात्मक री-शफल का अगला स्वाभाविक कदम
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति माना जा रहा है। आगे पंचायत चुनाव और फिर 2027 के विधानसभा चुनाव की चुनौती को देखते हुए
पार्टी किसी तरह की ढिलाई नहीं दिखाना चाहती।

क्या चलेगा ‘महिला कार्ड’? पहली बार महिला प्रदेश अध्यक्ष की चर्चा तेज

बीजेपी पहले ही 33 फीसदी महिला आरक्षण की घोषणा कर चुकी है और पिछले कई चुनावों में
महिलाओं का वोट बैंक पार्टी के लिए निर्णायक साबित हुआ है। बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक,
महिला मतदाता बीजेपी की जीत के बड़े आधार के रूप में सामने आए हैं। ऐसे में यूपी में
महिला प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी को राजनीतिक विश्लेषक पार्टी का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इस दौड़ में जिन महिला नेताओं के नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं,
वे सभी पिछड़े या दलित वर्ग से आती हैं। इससे पार्टी को दोहरा संदेश देने का मौका मिल सकता है—
एक ओर महिला सशक्तिकरण, तो दूसरी ओर सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व का संतुलन।

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रेस में सबसे आगे 3 महिला चेहरे: कौन कितनी मजबूत?

राजनीतिक हलकों में इस समय तीन महिला नेताओं के नाम सबसे ज्यादा उछल रहे हैं—रेखा वर्मा, साध्वी निरंजन ज्योति और प्रियंका रावत।
तीनों ही अपने-अपने क्षेत्र में मजबूत पहचान रखती हैं और संगठन के भीतर भी उनकी पकड़ मानी जाती है।

1. रेखा वर्मा: दो बार की सांसद, संगठन और सत्ता दोनों में अनुभव

रेखा वर्मा बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और उत्तराखंड की सह-प्रभारी भी।
वह धौरहरा लोकसभा सीट से दो बार सांसद रह चुकी हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार समिति
और रसायन एवं उर्वरक संबंधी समिति में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है।

पिछड़े वर्ग से आने वाली रेखा वर्मा संगठन और सत्ता, दोनों स्तरों का संतुलित अनुभव रखती हैं।
यही वजह है कि जातीय समीकरण के साथ-साथ संगठनात्मक मजबूती के नजरिए से भी उनके नाम को बेहद मजबूत माना जा रहा है।

2. साध्वी निरंजन ज्योति: फायरब्रांड छवि और केंद्रीय मंत्री का अनुभव

फतेहपुर लोकसभा सीट से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति बीजेपी के फायरब्रांड चेहरों में गिनी जाती हैं।
2014 में उन्हें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री और 2019 में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री का दायित्व दिया गया।
इससे पहले वह 2012 में हमीरपुर से विधायक भी रह चुकी हैं।

धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों में उनकी मजबूत पकड़ है। महिला और ओबीसी दोनों पहचान होने के कारण
पार्टी यदि संघर्षशील, आक्रामक और जनधार वाला चेहरा सामने लाना चाहती है, तो साध्वी निरंजन ज्योति का नाम स्वाभाविक विकल्प बन जाता है।

3. प्रियंका रावत: युवा दलित चेहरा, 2014 की बड़ी जीत से पहचान

प्रियंका रावत 2014 में बाराबंकी से लोकसभा चुनाव जीतकर सुर्खियों में आईं। शुरुआत से ही वह
महिला एवं बाल विकास और उपभोक्ता मामलों से जुड़ी विभिन्न संसदीय समितियों में सक्रिय रही हैं।
दलित समाज से आने के कारण उनका नाम भी गंभीरता से चर्चा में है।

बीजेपी अगर युवा और दलित महिला नेतृत्व को आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाती है,
तो प्रियंका रावत एक ताजा, ऊर्जावान और प्रतीकात्मक रूप से बेहद महत्वपूर्ण विकल्प मानी जा रही हैं।

अगर महिला अध्यक्ष नहीं बनीं तो? पुरुष नेताओं की लंबी कतार

हालांकि पार्टी की रणनीति अंतिम समय तक बदल सकती है। अगर बीजेपी इस बार महिला अध्यक्ष की राह नहीं चुनती,
तो फिर पिछड़े, सामान्य और दलित वर्ग से कई दिग्गज पुरुष नेताओं के नाम भी रेस में बताए जा रहे हैं।

पिछड़े वर्ग से चर्चा में रहने वाले प्रमुख नामों में

केशव प्रसाद मौर्य,
भूपेंद्र सिंह चौधरी,
बी.एल. वर्मा,
पंकज चौधरी,
स्वतंत्र देव सिंह
और
अमरपाल मौर्य

शामिल हैं।

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वहीं सामान्य वर्ग से जिन नेताओं के नाम उभर रहे हैं, उनमें

ब्रजेश पाठक,
दिनेश शर्मा,
हरीश द्विवेदी,
श्रीकांत शर्मा,
महेश शर्मा
और
सतीश गौतम

जैसे चेहरे हैं।

दलित वर्ग से विद्यासागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया और बेबी रानी मौर्य जैसे नाम भी चर्चा में बने हुए हैं।
यानी अगर पार्टी महिला विकल्प से हटकर परंपरागत ढांचे में जाती है, तो उसके पास भी विकल्पों की कोई कमी नहीं है।

यूपी ही नहीं, पड़ोसी राज्यों के समीकरण भी दांव पर

बीजेपी जब भी किसी बड़े राज्य में प्रदेश अध्यक्ष चुनती है, तो उसका असर सिर्फ उसी राज्य तक सीमित नहीं रहता।
राजस्थान में तेली समाज, हरियाणा में ब्राह्मण, मध्यप्रदेश में वैश्य, बिहार में कलवार समाज और उत्तराखंड में ब्राह्मण समाज
को प्रतिनिधित्व देकर पार्टी पहले ही सामाजिक संदेश देने की कोशिश कर चुकी है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश में नया अध्यक्ष चुनते समय
यूपी के साथ-साथ हरियाणा और बिहार जैसे पड़ोसी राज्यों के जातीय और चुनावी समीकरणों पर भी नजर रखना स्वाभाविक है।
यही कारण है कि ओबीसी और दलित समाज से जुड़े नेताओं की लंबी सूची तैयार की गई है और हर नाम पर बारीकी से विचार हो रहा है।

खरमास और शुभ मुहूर्त: फैसला कब तक?

पार्टी के एक पदाधिकारी के मुताबिक, बीजेपी आमतौर पर बड़े फैसलों में
शुभ मुहूर्त और धार्मिक तिथियों का भी ध्यान रखती है।
15 दिसंबर से 14 जनवरी तक खरमास का समय माना जाता है, जिसमें मांगलिक कार्यों से परहेज किया जाता है।

ऐसे में माना जा रहा है कि अगर 14 दिसंबर तक निर्णय नहीं हुआ,
तो फिर नया प्रदेश अध्यक्ष 15 जनवरी के बाद ही भाजपा परिवार को मिल पाएगा।
यही टाइमलाइन अब नेताओं, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों के बीच चर्चा का मुख्य आधार बन गई है।

14 नए जिलाध्यक्ष और जातीय संतुलन का संकेत

हाल ही में जारी सूची में पार्टी ने 14 नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की है।
इनमें 7 सामान्य वर्ग, 6 पिछड़े वर्ग और 1 अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। कई जिलों में पार्टी ने
पुराने और अनुभवी चेहरों पर भी भरोसा बरकरार रखा है।

इससे साफ संकेत मिलता है कि बीजेपी संगठन में जातीय संतुलन को शीर्ष प्राथमिकता दे रही है।
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में भी यही फार्मूला आगे बढ़ाया जाएगा—ताकि बूथ स्तर तक संदेश जाए कि
संगठन में हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित है।

महिला कार्ड या सामाजिक संतुलन? कुछ ही दिनों में साफ होगी तस्वीर

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति
सिर्फ एक संगठनात्मक पोस्ट का सवाल नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक संकेत की प्रस्तावना है।
क्या पार्टी चुनाव से पहले आधी आबादी को साधने के लिए महिला चेहरा आगे करेगी,
या फिर पारंपरिक जातीय समीकरणों के अनुरूप किसी अनुभवी नेता को कमान सौंपेगी—यही बड़ा सवाल है।

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फिलहाल इतना तय माना जा रहा है कि इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है और
तीन महिला चेहरे—रेखा वर्मा, साध्वी निरंजन ज्योति और प्रियंका रावत—चर्चा के केंद्र में हैं।
अब सबकी निगाहें सिर्फ हाईकमान के अंतिम फैसले पर टिकी हैं, जो प्रदेश की आने वाली सियासत की दिशा और दशा दोनों तय कर सकता है।

क्लिक करके पढ़ें सवाल–जवाब

प्रश्न 1: क्या इस बार उत्तर प्रदेश बीजेपी को पहली महिला प्रदेश अध्यक्ष मिल सकती हैं?

हां, पार्टी के अंदरूनी मंथन और राजनीतिक चर्चाओं को देखते हुए
महिला प्रदेश अध्यक्ष की संभावना काफी मजबूत मानी जा रही है।
रेखा वर्मा, साध्वी निरंजन ज्योति और प्रियंका रावत जैसे नाम लगातार चर्चा में हैं।
हालांकि अंतिम फैसला हाईकमान को ही करना है, इसलिए अभी कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 2: नया प्रदेश अध्यक्ष चुनते समय बीजेपी किन मुख्य बातों पर ध्यान दे रही है?

पार्टी जातीय संतुलन, संगठनात्मक अनुभव, चुनावी उपयोगिता और सामाजिक संदेश
जैसे कई स्तरों पर संभावित नामों का मूल्यांकन कर रही है। यूपी के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों के समीकरण,
महिला वोट बैंक और आने वाले पंचायत एवं विधानसभा चुनाव भी फैसले के केंद्र में हैं।

प्रश्न 3: महिला नेताओं में सबसे ज्यादा चर्चा किन-किन नामों की है?

महिला नेताओं में मुख्य रूप से तीन नाम सबसे आगे बताए जा रहे हैं
रेखा वर्मा (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दो बार की सांसद), साध्वी निरंजन ज्योति (केंद्रीय मंत्री रह चुकीं फायरब्रांड नेता)
और प्रियंका रावत (युवा दलित चेहरा और पूर्व सांसद)। तीनों ही अपने-अपने सामाजिक वर्ग और संगठनात्मक काम के कारण महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं।

प्रश्न 4: अगर महिला अध्यक्ष नहीं बनीं, तो कौन-कौन से पुरुष नेता रेस में हैं?

अगर पार्टी महिला विकल्प से हटती है, तो पिछड़े वर्ग से केशव प्रसाद मौर्य, भूपेंद्र सिंह चौधरी,
बी.एल. वर्मा, पंकज चौधरी, स्वतंत्र देव सिंह और अमरपाल मौर्य
जैसे नाम चर्चा में हैं।
सामान्य वर्ग से ब्रजेश पाठक, दिनेश शर्मा, हरीश द्विवेदी, श्रीकांत शर्मा, महेश शर्मा और सतीश गौतम,
जबकि दलित वर्ग से विद्यासागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया और बेबी रानी मौर्य के नाम भी सामने आते हैं।

प्रश्न 5: नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कब तक होने की संभावना है?

पार्टी सूत्रों के अनुसार, बीजेपी बड़े फैसलों में शुभ मुहूर्त और धार्मिक तिथियों का ध्यान रखती है।
15 दिसंबर से 14 जनवरी तक खरमास रहने के कारण माना जा रहा है कि या तो 14 दिसंबर से पहले निर्णय हो जाएगा,
या फिर 15 जनवरी के बाद ही नए अध्यक्ष की औपचारिक घोषणा की जा सकती है।
हालांकि अंतिम तारीख का अधिकार पूरी तरह हाईकमान के पास है।

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