
वृंदावन की गलियों में दिनभर गूंजती कृष्ण नाम की मधुर धुन के बीच ऐसी अनगिनत महिलाएं रहती हैं, जो जिंदगी के सबसे कठिन मोड़ों पर टूट चुकी थीं। पति, ससुराल और समाज के तानों से लड़ते-लड़ते जब उम्मीद की अंतिम डोर भी टूट गई, तब उन्होंने कृष्ण भक्ति में जीवन की नयी राह ढूंढी। पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और समझदार होने के बावजूद वे जिस हिंसा, अत्याचार और मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुईं, वह समाज की कड़वी सचाई को उजागर करती है। आज वे वृंदावन में कृष्ण प्रेम में डूबी ‘भक्त दासियों’ के रूप में एक नया जीवन जी रही हैं।
हरियाणा की ज्योति उर्फ इंदुलेखा — पीरियड्स में भी संबंध के लिए मजबूर किया, दांत तोड़ा, 9 दिन में दूसरी शादी टूटी
33 वर्षीय ज्योति, हरियाणा के रोहतक की रहने वाली हैं। नर्सिंग की पढ़ाई करने के बाद एक अस्पताल में नौकरी शुरू की थी, लेकिन शादी के बाद उनकी दुनिया नर्क में बदल गई। शादी के कुछ महीनों बाद ही पति मारपीट करने लगे, ताने सुनाने लगे और जरूरत की छोटी-छोटी चीजें तक देने से मना कर देते। यहां तक कि प्रेग्नेंसी के दौरान भी उन्होंने ज्योति का साथ नहीं दिया।
ज्योति बताती हैं— “मुझे मायके में ताऊ के लड़के की शादी में जाना था। पति नहीं चाहते थे। एक रात कमरे में आए और इतनी बेरहमी से पीटा कि दांत टूट गया, होंठ फट गए और खून से कपड़े भीग गए। पीरियड्स में भी मुझे सेक्स के लिए मजबूर किया जाता था।”
पति के लगातार अत्याचार से तंग आकर उन्होंने आत्महत्या तक की कोशिश की, लेकिन परिवार वालों ने बचा लिया। बाद में नर्सिंग की नौकरी शुरू की और 2016 में पहली शादी का तलाक हुआ। इसके बाद परिवार के दबाव में 2020 में दूसरी शादी की, लेकिन यह रिश्ता भी केवल 9 दिन चला। दूसरा पति दहेज के लिए ताने मारता था और अननेचुरल सेक्स के लिए मजबूर करता था। पुलिस में शिकायत हुई, लेकिन न्याय नहीं मिला।
सबसे कठिन क्षणों में ज्योति ने कृष्ण भक्ति को अपनाया और वृंदावन आकर ‘इंदुलेखा’ नाम से नई पहचान बनाई। आज पूरा मकान कृष्ण प्रेम से भरा है। वह कहती हैं — “अब कृष्ण ही मेरे पति, बेटा और मां-बाप सब हैं।”
देवरिया की ममता मिश्रा — पढ़ी-लिखी और डॉक्टर, पर शादी और दहेज की मजबूरी ने भक्ति की राह पर ला खड़ा किया
30 वर्षीय ममता मिश्रा एलोपैथी में बैचलर्स की शिक्षा लेकर एक प्राइवेट क्लिनिक में प्रैक्टिस कर रही थीं। लेकिन समाज की सोच और विवाह को लेकर दबाव ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया। ममता शादी नहीं करना चाहती थीं, लेकिन परिवार के भय और भविष्य की चिंता ने उन्हें मजबूर कर दिया।
फरवरी 2024 में सगाई हुई। लड़के के शिक्षित और नौकरीशुदा होने का दावा किया गया, लेकिन बाद में पता चला कि वह पढ़ा-लिखा नहीं है। ममता ने निर्णय लिया कि धोखे में शादी नहीं करेंगी। रिश्तेदारों ने ताने मारे — “बहुत पढ़ाई करा दी, यही नतीजा हुआ।”
इसके बाद जितने भी रिश्ते आए, सबकी पहली शर्त — दहेज। दूसरी शर्त — नौकरी नहीं करेगी, केवल घर संभालेगी। तब ममता ने तय किया कि अब वे कृष्ण की सेवा में जीवन बिताएंगी। लोग ताने मारते, अफवाह फैलाते, लेकिन ममता कहती हैं — “कृष्ण मेरे सच हैं, वनों की आपत्ति मेरे सौभाग्य की भूमिका बन गई।”
कुरुक्षेत्र की निशा चौहान उर्फ नित्या मंजरी — नौकरी में शोषण और छेड़छाड़, जीवन में भटकाव, अंततः कृष्ण प्रेम में समाधान
मॉडर्न आर्किटेक्चर में इंजीनियरिंग करने के बाद निशा ने 2011 में नौकरी शुरू की। शुरुआत में सब ठीक था, लेकिन काम में आगे बढ़ते ही सहकर्मी उन्हें नीचे धकेलने लगे। देर रात तक काम, कठिन प्रोजेक्ट और मानसिक दबाव — यह सब उन्हें थकाने लगा।
एक सीनियर बिना वजह शरीर छूने की कोशिश करता था। निशा कहती हैं — “कई बार डर लगा, कई बार रोई भी, लेकिन रिश्ते तोड़ने का डर और नौकरी खोने की चिंता बहुत भारी थी।”
कोविड में घर लौटीं तो कृष्ण भक्ति में शांति मिलने लगी। वृंदावन के दर्शन ने मन में स्थिरता और प्रेम भर दिया। और एक दिन उन्होंने निर्णय लिया — “अब मेरा पति केवल कृष्ण हैं।” आज वृंदावन में निशा का नाम ‘नित्या मंजरी’ रखा गया है।
🌸 ऐसे दर्द को न देख पाने की जगह, वृंदावन ने दिया आंचल 🌸
इन तीनों महिलाओं की कहानियां अलग-अलग हैं, लेकिन दर्द एक जैसा — विवाह संस्था में आत्मसम्मान की अवहेलना, दहेज की मजबूरी, घरेलू हिंसा, यौन शोषण, सामाजिक ताने और टूटते आत्मविश्वास की त्रासदी। वृंदावन ने उन्हें सहारा दिया, लेकिन असल सवाल यह है — कब तक महिलाएं विवाह के नाम पर यातना सहती रहेंगी?
कृष्ण की भक्ति ने इन्हें नया जीवन दिया, लेकिन समाज का भी दायित्व है कि महिलाएं भक्ति में आएं — शांति के लिए, मजबूरी के कारण नहीं।
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📍 वृंदावन में रहने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या क्या रही?
अधिकांश महिलाओं ने विवाह के बाद शारीरिक व मानसिक हिंसा, दहेज प्रताड़ना, सेक्सुअल एब्यूज़ और सामाजिक तानों का सामना किया जिसके कारण वे टूट गईं और आध्यात्मिक सहारा लेने वृंदावन आ गईं।
📍 क्या सभी महिलाएं शिक्षा और नौकरी के बावजूद परेशान थीं?
हाँ। तीनों महिलाएं उच्च शिक्षित और कामकाजी थीं, लेकिन उनकी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को परिवार या पति स्वीकार नहीं कर सके।
📍 क्या कृष्ण भक्ति उनका अंतिम निर्णय है?
हाँ। वे मानती हैं कि कृष्ण ही उन्हें बिना शर्त प्रेम, सुरक्षा और सांत्वना देते हैं। इसलिए वे स्वयं को कृष्ण की दासी और पत्नी के रूप में स्वीकार कर चुकी हैं।
📍 क्या इन सभी महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले दर्ज हैं?
कुछ मामलों में FIR दर्ज हुई, लेकिन न्याय न मिलने के कारण महिलाओं ने कानूनी लड़ाई से अधिक आध्यात्मिक जीवन को अपनाया।