
समाज में वास्तविक विकास तब दिखाई देता है, जब परिवर्तन केवल भाषणों या दावों तक सीमित न रहकर वास्तविक जीवन में उतरता है।
बुंदेलखंड के पिछड़े इलाकों में जहां वर्षों से शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते लोगों का जीवन संघर्षों में उलझा रहा,
वहीं से एक ऐसा नाम उभरा जिसने लोगों को जागरूक करने और उनके अधिकारों व कर्तव्यों को समझाने का बड़ा अभियान छेड़ा —
संजय सिंह राणा।
पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से राणा लगातार दूरस्थ गांवों में जाकर नागरिक जागरूकता और सामाजिक सुधार पर कार्य कर रहे हैं।
यह कोई सरकारी योजना या संस्थागत अभियान नहीं था, बल्कि एक सामान्य व्यक्ति का समाज के लिए असाधारण समर्पण था।
संघर्षों से निकला उद्देश्य — सेवा का संकल्प
संजय सिंह राणा, चित्रकूट जिले के सुदूरवर्ती गांव कालूपुर पाही के रहने वाले हैं —
एक ऐसा गांव जहां आज भी कई बुनियादी संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।
बचपन में शिक्षा के अभाव, रोजगार की चिंता और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने बहुत करीब से उन्हें यह एहसास कराया कि
गरीबी केवल संसाधनों की नहीं, अवसरों की भी होती है।
इस कठिन सामाजिक परिवेश ने राणा को तोड़ा नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ करने का दृढ़ संकल्प दिया।
उनके भीतर बार–बार एक ही विचार जन्म लेता रहा —
“अगर मैंने यह सब झेला है, तो आने वाली पीढ़ी क्यों झेले?”
यहीं से सेवा उनका लक्ष्य बनी और लक्ष्य जीवन का मार्ग।
“चलो गाँव की ओर” — जागरूकता को आंदोलन में बदलने की सोच
धीरे–धीरे राणा के विचार एक मिशन का रूप लेने लगे और उन्होंने नारा दिया —
“चलो गाँव की ओर”।
उनका मानना था कि गांवों की बुनियाद मजबूत होगी तभी देश मजबूत होगा।
शहरों की चकाचौंध के बजाय उन्होंने गांवों की वास्तविक परिस्थितियों को प्राथमिकता दी।
राणा गांव–गांव घूमे — टूटी चौपालों, कच्ची झोपड़ियों, कमरों से खाली स्कूलों और बंद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के बीच
गाँव वालों से संवाद करते हुए उन्होंने उन्हें यह समझाया —
- सरकारी स्कूलों और शिक्षा के संसाधनों का लाभ लेना उनका अधिकार है,
- स्वास्थ्य और उपचार किसी का एहसान नहीं, प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है,
- राशन, पेंशन और योजनाओं का लाभ संघर्ष नहीं, सरलता से मिलना चाहिए,
- गांव तभी बदलेगा जब गांव का इंसान स्वयं अपने अधिकारों के लिए खड़ा होगा।
जिन गांवों में अभी भी बहुत से लोग पढ़ना–लिखना नहीं जानते थे, वहां अधिकारों की जानकारी देना आसान नहीं था।
लेकिन राणा की ईमानदारी, मेहनत और संवेदनशील संवाद ने धीरे–धीरे जनमानस को परिवर्तित करना शुरू कर दिया।
लोग डर से निकलकर अधिकार मांगने लगे और कर्तव्यों को समझकर समाज सुधार में शामिल होने लगे।
समाचार दर्पण और राणा — ग्रामीण आवाज़ को दिशा देने वाला रिश्ता
संजय सिंह राणा का समाचार दर्पण से संबंध उसके शुरुआती दौर से ही जुड़ा रहा है।
जब समाचार दर्पण ने ग्रामीण मुद्दों, वंचित वर्ग, आदिवासी समुदायों और सामाजिक सरोकारों की आवाज़ को प्रमुखता देने की शुरुआत की,
तब राणा उन पहले लोगों में थे जो गांव की तकलीफ़ों को मीडिया तक पहुँचाने का पुल बने।
वे हमेशा कहते रहे हैं —
“समाचार सिर्फ सूचना नहीं, समाज को दिशा देने की ताकत है।”
इसी सोच ने राणा और समाचार दर्पण को एक साझा उद्देश्य पर जोड़ा —
ग्रामीण भारत की आवाज़ को दबने नहीं देना।
नई पीढ़ी को सौंपे गए संस्कार — सूरज सिंह राणा का 18वाँ जन्मदिन
आज का दिन राणा के लिए विशेष है, क्योंकि उनके पुत्र सूरज सिंह राणा का
18वाँ जन्मदिन है।
इस अवसर को राणा ने सिर्फ उत्सव तक सीमित नहीं रखा, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक संदेश के रूप में बदल दिया।
उन्होंने अपने पुत्र को प्रेरित किया —
“जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी जिया जाता है।”

राणा के लिए यह अवसर केवल पिता की खुशी नहीं, बल्कि समाजसेवा की विरासत के हस्तांतरण का दिन है।
सूरज के लिए भी यह जन्मदिन केवल उम्र का पड़ाव नहीं, बल्कि उद्देश्यपूर्ण जीवन की शुरुआत है।
बदलाव का सूत्र : जागरूकता + कर्म + ईमानदारी = प्रगति
जिन घरों में कभी बेटियाँ शिक्षा से दूर थीं, वहाँ आज उच्च शिक्षा का सपना साकार हो रहा है।
जहां इलाज के अभाव में लोग बेबसी देखते थे, वहां अब स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच बढ़ रही है।
जो बुजुर्ग योजनाओं से अनजान थे, वे आज सम्मान के साथ लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
जिन युवाओं की आँखों में भविष्य धुंधला था, वहीं आज आत्मविश्वास और दिशा है।
यह किसी राजनीतिक शक्ति या संस्थागत अभियान का परिणाम नहीं —
बल्कि एक साधारण इंसान के असाधारण प्रयास की मिसाल है।
(यह आलेख समाचार दर्पण टीम के सहयोग से तैयार किया गया है और इसमें न तो किसी प्रकार का पूर्वाग्रह है,
न ही संजय सिंह राणा अथवा उनके परिवार को उपकृत करने का उद्देश्य।
इसका एकमात्र उद्देश्य उनके समाजसेवी प्रयासों को सत्य और निष्पक्ष रूप में प्रस्तुत करना है।)
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
संजय सिंह राणा कौन हैं और कहाँ कार्य करते हैं?
वे पिछले दो दशकों से बुंदेलखंड के सुदूर और पिछड़े क्षेत्रों में जनजागरण और सामाजिक सुधार कार्य कर रहे हैं।
संजय सिंह राणा किस गाँव से संबंध रखते हैं?
संजय सिंह राणा चित्रकूट जिले के अत्यंत सुदूरवर्ती गाँव कालूपुर पाही के रहने वाले हैं —
और वहीं के संघर्ष ने समाजसेवा की भावना को जन्म दिया।
“चलो गाँव की ओर” अभियान का उद्देश्य क्या है?
ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी योजनाओं और अधिकार–कर्तव्य के प्रति जागरूक कर समाज को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना।
समाचार दर्पण से राणा का संबंध क्या है?
राणा ग्रामीण समुदाय की आवाज़ को समाचार दर्पण तक पहुँचाने में आरंभिक दौर से ही सेतु का कार्य करते रहे हैं।
सूरज सिंह राणा के 18वें जन्मदिन का क्या महत्व है?
इसी अवसर पर राणा ने समाजसेवा की विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने की प्रेरणा दी,
और सूरज को समाज के प्रति उत्तरदायित्व समझने का संदेश दिया।
क्या यह लेख किसी प्रकार के पक्षपात से प्रेरित है?
नहीं, यह लेख पूर्णतः निष्पक्ष है और समाजसेवी प्रयासों को सत्य व संतुलित रूप में प्रस्तुत करने हेतु लिखा गया है।