
–अनिल अनूप
प्रवासी मजदूर केवल मेहनतकश हाथ नहीं हैं, बल्कि पंजाब की अर्थव्यवस्था की धड़कन हैं। खेतों में धान की रोपाई से लेकर लुधियाना की फैक्ट्रियों तक, होटल-रेस्टोरेंट से लेकर निर्माण स्थलों तक — हर जगह प्रवासी मजदूर ही सक्रिय दिखाई देते हैं। बावजूद इसके, अक्सर इन्हें बाहरी मानकर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।
प्रवासी मजदूर : पंजाब की रीढ़ क्यों?
पंजाब की आर्थिक संरचना तीन बड़े स्तंभों पर खड़ी है — कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र। इन तीनों स्तंभों में प्रवासी मजदूरों का योगदान बेजोड़ है।

कृषि में योगदान: धान की रोपाई, गेहूं की कटाई, सब्जी की पैकिंग — सब प्रवासियों पर निर्भर है। स्थानीय युवा अब खेतों में काम करने से कतराते हैं।
उद्योग में योगदान: लुधियाना के छोटे-बड़े औद्योगिक इकाइयों में लगभग 70% से अधिक श्रमिक प्रवासी हैं।
निर्माण क्षेत्र में योगदान: सड़क, पुल, मकान, कॉलोनी — सबका निर्माण इन्हीं के पसीने से संभव है।
सेवा क्षेत्र में योगदान : घरेलू नौकरानी से लेकर होटल वर्कर तक, प्रवासी हर जगह मौजूद हैं।
👉 संक्षेप में, बिना प्रवासी मजदूरों के पंजाब का आर्थिक चक्का रुक जाएगा।
प्रवासी मजदूर : संख्या और विस्तार
ताज़ा रिपोर्ट्स और अध्ययनों के अनुसार पंजाब में करीब 15–20 लाख प्रवासी मजदूर काम करते हैं। इनमें से बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा से आती है।
अनस्किल्ड लेबर का 70–80% हिस्सा प्रवासी है।
केवल लुधियाना शहर में लाखों प्रवासी फैक्ट्रियों और औद्योगिक यूनिटों में कार्यरत हैं।
खेती के सीज़न में यूपी-बिहार से हजारों मजदूर अस्थायी रूप से पंजाब पहुंचते हैं।
यह आँकड़े दिखाते हैं कि प्रवासी मजदूर पंजाब की अर्थव्यवस्था का आधार हैं।
क्या पंजाब प्रवासी मजदूरों के बिना चरमरा जाएगा?
कृषि पर असर
अगर अचानक प्रवासी मजदूर पलायन कर जाएं:
धान की रोपाई समय पर नहीं होगी। फसल कटाई प्रभावित होगी। किसानों को दोगुनी-तीन गुनी मजदूरी देनी पड़ेगी। छोटे किसानों को भारी नुकसान होगा।
उद्योग पर असर
फैक्ट्रियों का उत्पादन घटेगा। ऑर्डर पेंडिंग रह जाएंगे। निर्यात प्रभावित होगा।छोटे व्यापारी दिवालिया होने के कगार पर आ सकते हैं।

सेवा क्षेत्र पर असर
घरेलू कामगारों की भारी कमी होगी। होटल, रेस्तरां, ढाबे और छोटे कारोबार ठप पड़ जाएंगे।
👉 इसलिए, यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि पंजाब की अर्थव्यवस्था बिना प्रवासी मजदूरों के टिक नहीं सकती।
प्रवासी मजदूरों की चुनौतियाँ
असुरक्षा और भेदभाव
अक्सर प्रवासियों को अपराधियों से जोड़ दिया जाता है। पंचायतें उनके खिलाफ फैसले लेती हैं। इससे सामाजिक तनाव बढ़ता है।
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पहचान और दस्तावेज़ की कमी
कई प्रवासी मजदूरों के पास आधार, राशन कार्ड या स्थानीय पते का प्रमाण नहीं होता। इससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता।
सामाजिक सुरक्षा का अभाव
स्वास्थ्य बीमा, पेंशन, दुर्घटना बीमा जैसी योजनाएँ प्रवासियों तक पहुँचने में विफल रहती हैं।
रहने-सहने की समस्या
मकान किराए पर लेने में भेदभाव, अस्वच्छ झुग्गियों में रहना और बुनियादी सुविधाओं का अभाव उनकी सबसे बड़ी समस्या है।
सरकार ने अब तक क्या किया?
सकारात्मक कदम
लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को घर भेजने के लिए पंजाब सरकार ने ट्रेनों की व्यवस्था की और टिकटों का खर्च उठाया।
लेबर वेलफेयर बोर्ड ने कुछ योजनाएँ शुरू कीं जैसे शगुन योजना, स्वास्थ्य लाभ और दुर्घटना बीमा।
हाल ही में कुछ नियम आसान किए गए ताकि प्रवासी भी इन योजनाओं का लाभ उठा सकें।
कमियां
योजनाओं की जागरूकता और क्रियान्वयन कमजोर है।
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की पोर्टेबिलिटी नहीं है।
पंचायत और स्थानीय स्तर पर प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ठोस व्यवस्था नहीं है।
प्रवासी मजदूरों के बिना पंजाब का भविष्य
यदि प्रवासी मजदूरों को लगातार उपेक्षा, भेदभाव और असुरक्षा का सामना करना पड़ा तो उनका बड़े पैमाने पर पलायन तय है। नतीजतन:
पंजाब के खेतों में मजदूरी का संकट गहराएगा।
उद्योगों की प्रतिस्पर्धा कमजोर होगी।
सेवा क्षेत्र महंगा और अस्थिर हो जाएगा।
👉 यही वजह है कि प्रवासी मजदूरों को केवल “श्रमिक” नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के साझेदार मानना होगा।
समाधान और सुझाव
दस्तावेज़ीकरण : सभी प्रवासी मजदूरों का सरल पंजीकरण हो और उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा जाए।
सुरक्षा : पंचायत और प्रशासन मिलकर प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
सामुदायिक जागरूकता : समाज में यह संदेश जाए कि अपराधी कोई भी हो सकता है, उसे पूरे प्रवासी समुदाय से नहीं जोड़ा जा सकता।
कस्टम हायरिंग सेंटर : छोटे किसानों के लिए मशीनरी उपलब्ध कराई जाए ताकि अचानक पलायन का असर कम हो।
स्थायी रिहायशी व्यवस्था : प्रवासियों के लिए श्रमिक कॉलोनी, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ सुनिश्चित हों।
प्रवासी मजदूर पंजाब की धड़कन हैं। खेतों की हरियाली से लेकर कारखानों की गूंज तक, सब इन्हीं के पसीने से संभव है। बिना इनके पंजाब की अर्थव्यवस्था का पहिया ठप हो जाएगा।
इसलिए ज़रूरी है कि प्रवासी मजदूरों को केवल “बाहरी” नहीं, बल्कि “अपना” समझा जाए। उन्हें सुरक्षा, सम्मान और अधिकार मिलें। तभी पंजाब की समृद्धि कायम रहेगी।
