मेरठ पुलिस द्वारा लोकप्रिय यू-ट्यूबर शादाब जकाती की गिरफ्तारी ने सोशल मीडिया पर बहस की लहर पैदा कर दी है। वह वही कंटेंट क्रिएटर हैं, जिनकी बोलचाल का अंदाज़ — ‘दस रुपये वाला बिस्कुट कितने का है जी?’ — इंटरनेट पर मीम संस्कृति का हिस्सा बन चुका है।
लेकिन हर वायरल स्टारडम की एक कीमत होती है, और इस मामले में कीमत बेहद गंभीर आरोपों के रूप में सामने आई है। पुलिस ने शादाब को उस समय हिरासत में लिया, जब शिकायत में कहा गया कि वह वीडियो बनाने के दौरान एक बच्ची का उपयोग करते हुए अशोभनीय अथवा अनुचित कंटेंट बना रहे थे।
यह मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं है। यह डिजिटल कंटेंट की नैतिक सीमाओं, सोशल मीडिया पर बच्चों की सुरक्षा, वायरलिटी की अंधी दौड़, और पुलिस की कानूनी जवाबदेही से जुड़े गहरे सवाल उठाता है।
सोशल मीडिया स्टारडम का उभार और ‘जकाती–शैली’ का प्रभाव
शादाब जकाती उन कंटेंट क्रिएटर्स में से हैं जिन्होंने बहुत कम समय में अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी वीडियो शैली में आम लोगों से मनमोहक, हल्की-फुल्की बातचीत, अतिशयोक्तिपूर्ण भोले-भाले सवाल और मज़ाकिया संवाद शामिल होते हैं।
- उनके वीडियो वायरल होने लगे,
- लोग उन्हें मीम्स में इस्तेमाल करने लगे,
- ब्रांड्स और विज्ञापनकर्ताओं तक उनकी पहुँच बढ़ी,
- इंटरनेट पर “जकाती वर्डिंग” एक फॉर्मूला बन गई।
लेकिन सोशल मीडिया पर मिली तेज़ सफलता अक्सर कंटेंट क्रिएटर्स को एक ऐसे खांचे में डाल देती है जहाँ वायरल होने का दबाव बढ़ता जाता है।
घटना का संक्षिप्त विवरण: पुलिस ने क्या कहा?
पुलिस के अनुसार, शिकायत मिली कि शादाब एक बच्ची को साथ लेकर अनुचित/अशोभनीय कंटेंट बना रहे थे। शिकायत की पुष्टि के बाद पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लिया।
- बच्ची सुरक्षित है और उसकी पहचान गुप्त रखी गई है।
- बच्ची के परिजनों से भी पूछताछ की गई।
- पुलिस ने अभी तक किसी स्पष्ट ‘अश्लील सामग्री’ के सार्वजनिक सबूत की पुष्टि नहीं की है।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि मामला POCSO के दायरे में जाएगा या आईटी एक्ट और जेजे एक्ट जैसे अन्य प्रावधानों के तहत देखा जाएगा।
आरोपों की वास्तविकता: क्या यह अश्लीलता है या गलत समझ?
इंटरनेट पर बच्चों के साथ वीडियो बनाना कोई गैरकानूनी कार्य नहीं है। कानून केवल तब सक्रिय होता है जब:
- यौन संकेतक,
- द्विअर्थी संवाद,
- शोषणकारी सामग्री,
- व्यावसायिक अनुचित उपयोग
शामिल हो।
लेकिन अशोभनीयता की परिभाषा कई स्तरों पर निर्भर करती है—
- वीडियो का वास्तविक संदर्भ क्या था?
- शिकायतकर्ता का आधार क्या था?
- क्या फॉरेंसिक विश्लेषण हुआ?
- क्या परिजनों की सहमति थी?
इंटरनेट संस्कृति और “बच्चों का उपयोग” – एक जटिल मुद्दा
आज रील-संस्कृति में बच्चों का उपयोग आम है। लेकिन समस्या तब आती है जब कंटेंट संवेदनशील सीमाओं को छूने लगता है।
शॉक-वैल्यू की इस दौड़ में क्रिएटर्स कई बार यह समझ नहीं पाते कि “साधारण” दिखने वाली चीज़ समाज को “अनुचित” लग सकती है।
पुलिस कार्रवाई: आवश्यक, अतिउत्साह या सोशल मीडिया दबाव?
भारत में पुलिस पर अक्सर आरोप लगता है कि वायरल वीडियो पर तुरंत कार्रवाई हो जाती है। लेकिन बच्चों के मामलों में पुलिस को तत्काल हस्तक्षेप करना पड़ता है।
कंटेंट क्रिएटर की जिम्मेदारी : सीमाएँ कौन तय करेगा?
प्लेटफॉर्म्स ने बच्चों के साथ शूटिंग के लिए खास नियम बनाए हैं —
- बच्चा असहज न दिखे
- अभद्र भाषा न हो
- कोई यौन संकेतक दृश्य न हो
- शोषण न हो
क्या यह मामला ‘सोशल ट्रायल’ का शिकार है?
गिरफ्तारी के बाद ट्रोलिंग और आलोचना बढ़ गई, बिना तथ्य जाने निर्णय सुनाए जाने लगे।
संभावित कानूनी परिणाम
- POCSO Act
- IT Act 67/67B
- Juvenile Justice Act
ये तभी लागू होंगे जब वीडियो में अनुचित तत्व पाए जाएँ।
यह मामला हमें क्या सिखाता है?
यह घटना एक चेतावनी है—
- बच्चों का उपयोग संवेदनशील विषय है
- मनोरंजन और अशोभनीयता के बीच रेखा बारीक है
- वायरल संस्कृति खतरनाक हो सकती है
- समाज को आरोप और तथ्य में फर्क समझना चाहिए
अंततः यह मामला तीन बिंदुओं पर टिकता है—
- वीडियो का वास्तविक स्वरूप क्या था?
- बच्ची और परिजनों का क्या कहना है?
- पुलिस जांच क्या निष्कर्ष देती है?
जांच पूरी होने से पहले कोई निष्कर्ष केवल अनुमान होगा।