
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
लखनऊ में फिल्म ‘120 बहादुर’ का विशेष प्रदर्शन देखने के बाद समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक बार फिर केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा वार किया।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला सिर्फ राजनीतिक टिप्पणी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि धर्म, सामाजिक न्याय, सेना में भर्ती, मताधिकार, संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता और देश की सीमाओं की सुरक्षा तक फैला हुआ दिखा।
उनके तेवर साफ संकेत दे रहे थे कि विपक्ष 2027 की राजनीति को अभी से मुद्दों और नैरेटिव के आधार पर आकार देना चाहता है।
उन्होंने एक ओर खुद को “जन्म से धार्मिक” बताते हुए भाजपा की धार्मिक राजनीति पर सवाल उठाए, तो दूसरी ओर पीडीए—यानी पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ-साथ आधी आबादी, यानी महिलाओं के अधिकारों और हिस्सेदारी की बात भी जोर से रखी।
इस पूरे संवाद में कई बार अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला सीधे नहीं, बल्कि प्रतीकों, तंज और सवालों के रूप में सामने आया, जिसने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया।
धर्म, ‘छठी’ और पीडीए के सहारे अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला
संवाद की शुरुआत में अखिलेश यादव ने अपनी “छठी” का उल्लेख करते हुए कहा कि वे जन्म से धार्मिक हैं और उनके परिवार में परंपरागत हिंदू संस्कार निभाए गए हैं।
उन्होंने बिना नाम लिए भाजपा नेताओं पर तंज कसते हुए पूछा कि क्या उनकी भी छठी मनाई गई थी या नहीं?
इस सवाल के माध्यम से अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला दरअसल उस राजनीति पर था, जो धर्म और संस्कारों का एकाधिकार लेने की कोशिश करती दिखती है।
यहीं से वे अपने पुराने राजनीतिक नारे पीडीए पर आए।
उन्होंने साफ कहा कि उनकी लड़ाई पीडीए के लिए है, और पीडीए का मतलब सिर्फ पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि आधी आबादी यानी महिलाओं से भी है।
समाजवादी राजनीति के इस विस्तृत सामाजिक समीकरण के जरिए अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला सामाजिक न्याय के फ्रेम में फिट होता दिखाई देता है, जहां वे यह संदेश देना चाह रहे हैं कि असली लड़ाई जाति, वर्ग और लैंगिक न्याय की है, न कि केवल धार्मिक ध्रुवीकरण की।
‘2027 के बाद हिरासत में भेज देंगे’ – हिरासत केंद्र और सत्ता परिवर्तन पर कटाक्ष
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा जिलाधिकारियों को घुसपैठियों के लिए अस्थायी हिरासत केंद्र बनाने के निर्देश पर भी अखिलेश ने तीखा बयान दिया।
उन्होंने कहा कि सरकार इसलिए हिरासत केंद्र बना रही है, क्योंकि 2027 के बाद लोग उन्हें ही हिरासत में भेज देंगे।
इस एक वाक्य में अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला दो स्तर पर था—पहला, भाजपा की “घुसपैठिया” राजनीति पर प्रश्न, और दूसरा, 2027 में सत्ता परिवर्तन की संभावना को जनता के सामने एक संकेत के रूप में पेश करना।
यह बयान आगे आने वाले चुनावी दौर के लिए एक राजनीतिक नारा भी बन सकता है, जहां विपक्ष हिरासत केंद्रों, जनसंख्या नियंत्रण और नागरिकता से जुड़े कदमों को जनता की आज़ादी और अधिकारों से जोड़कर पेश करने की कोशिश कर सकता है।
यहां भी अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला सिर्फ सरकार की नीति पर नहीं, बल्कि उसके मंशा पर सवाल उठाने के रूप में सामने आया।
अहीर रेजिमेंट की मांग और सेना में भर्ती पर सियासत
अपने बयान में अखिलेश यादव ने सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग पर भी विस्तृत बात की।
उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि उनके समाज और समुदाय के लोग अहीर रेजिमेंट की मांग उठा रहे हैं और सपा ही पहली पार्टी है जिसने अपने घोषणापत्र में अहीर रेजिमेंट की स्थापना का वादा जोड़ा है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिन भी रेजिमेंटों की मांग की जा रही है, चाहे उनका नाम कुछ भी हो, उनकी स्थापना होनी चाहिए और सेना में अधिकतम भर्ती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
युवा, रोजगार और सेना में सम्मानजनक अवसर का सवाल किसी भी चुनाव में निर्णायक बन सकता है।
ऐसे में यह मुद्दा सीधे-सीधे भाजपा के “राष्ट्रवाद” के दावे को चुनौती देता है।
यद्यपि इस हिस्से में उन्होंने सीधे यह शब्द नहीं दोहराया, लेकिन संदर्भ साफ था कि अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला अब रोजगार और सैन्य अवसरों तक भी विस्तार पा चुका है।
बीएलओ की मौत, दबाव और वोट कटने की साजिश – अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला और तेज
अखिलेश यादव ने गोंडा में यादव समुदाय के शिक्षक और फतेहपुर में कोरी समुदाय के शिक्षक की आत्महत्या का मामला उठाते हुए कहा कि ये दोनों शिक्षक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के रूप में अत्यधिक दबाव में काम कर रहे थे।
उनके अनुसार न तो सरकार और न ही चुनाव आयोग इस बात को गंभीरता से ले रहा है कि बीएलओ स्तर पर कितने लोग अपनी जान गंवा रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बीएलओ पर फॉर्म जल्दी भरने का दबाव बना रही है, जिसका मतलब है कि यूपी में तीन करोड़ वोट काटने की साजिश चल रही है।
यहां अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला बेहद तीखा हो गया, जब उन्होंने कहा कि भाजपा और चुनाव आयोग एक ही हैं।
यह आरोप न सिर्फ सत्ता पक्ष की नीयत पर सवाल उठाता है, बल्कि संस्थागत निष्पक्षता और लोकतंत्र में भरोसे की जड़ों को भी हिला देने वाला है।
लोकतंत्र में मताधिकार सबसे बड़ा हथियार माना जाता है।
जब किसी बड़े विपक्षी नेता की ओर से यह आरोप लगाया जाता है कि वोटर लिस्ट से योजनाबद्ध तरीके से नाम हटाए जा रहे हैं, तो यह केवल चुनावी बयान नहीं रह जाता, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर सीधा सवाल बन जाता है।
इस स्तर पर भी अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला मतदाता अधिकार की रक्षा के नाम पर राजनीतिक संघर्ष की नई जमीन तैयार करता दिखाई देता है।
संविधान, वोट का अधिकार और बाबा साहेब का संदर्भ
संविधान दिवस के मौके पर दिए गए अपने वक्तव्य में अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा जिस संविधान दिवस को उत्सव की तरह मना रही है, उसी संविधान को सबसे ज्यादा नुकसान भी वही पहुंचा रही है।
उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर के हवाले से कहा कि वोट का अधिकार भारतीय नागरिक के लिए सबसे बड़ा अधिकार है और आज वही सबसे ज्यादा खतरे में दिखाई दे रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि तरह-तरह के बहाने बनाकर लाखों लोगों को वोट के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
जाति के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति और उनके माध्यम से वोट कटने की साजिश की बात करके उन्होंने सत्ता पर “संस्थागत पक्षपात” का गंभीर आरोप लगाया।
इस पूरे विमर्श में अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला खुद को संविधान, अंबेडकरवादी विचार और मताधिकार की रक्षा की राजनीति से जोड़ने का एक प्रयास भी था, जो सामाजिक न्याय की बहस को और धार देता है।
पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और धर्मनिरपेक्षता की नई बहस
पश्चिम बंगाल की राजनीति और बांग्लादेश के नाम पर चल रही सियासत पर टिप्पणी करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा धर्मनिरपेक्षता का सही अर्थ ही नहीं समझती।
उन्होंने आरोप लगाया कि बांग्लादेश के मुद्दे को उठाकर पश्चिम बंगाल में एक सोची-समझी साजिश के तहत सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा शासन में न समाजवाद बचा है, न धर्मनिरपेक्षता, और एसआईआर के नाम पर लोकतंत्र को भी खतरे में डाल दिया गया है।
इन बयानों के जरिए अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित न रहकर राष्ट्रीय स्तर की सियासत और संघीय राजनीति तक में फैलता हुआ दिखाई देता है।
यह विपक्ष की उस चिंता को आवाज देता है जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच भरोसे की खाई लगातार चौड़ी होती दिख रही है।
चीन, सीमाएं और दुष्प्रचार – राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल
फिल्म ‘120 बहादुर’ देखने के बाद अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाओं की चर्चा भी की।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को देश के मूल और वर्तमान क्षेत्रों का खुलासा करना चाहिए, क्योंकि भाजपा सरकार के दौरान हमारी सीमाओं में कमी की आशंकाएं बार-बार सामने आ रही हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार दुष्प्रचार और झूठ पर बहुत अधिक निर्भर है।
चीन सहित उन देशों के संदर्भ में, जो बार-बार भारत के क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं, अखिलेश ने सतर्क रहने की बात कही।
उन्होंने यह संकेत दिया कि सीमा सुरक्षा के मसले पर विपक्ष की बातों को “राष्ट्रविरोधी” बताकर खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि सरकार को तथ्यों के साथ जवाब देना चाहिए।
यहां भी अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला राष्ट्रवाद के उसी मॉडल पर सवाल है, जिसमें प्रतिरोध की हर आवाज को देशविरोधी करार देने की प्रवृत्ति देखी जाती है।
पीडीए, 2027 और आगे की राजनीति – अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला किस दिशा में?
पूरे बयान को समग्र रूप में देखें तो स्पष्ट होता है कि अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला केवल तात्कालिक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि 2027 की ओर बढ़ते हुए एक दीर्घकालिक नैरेटिव निर्माण का हिस्सा है।
पीडीए के नाम पर वे पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और महिलाओं का गठजोड़ खड़ा करना चाहते हैं, जो भाजपा के सामाजिक समीकरण को सीधी चुनौती दे सके।
धर्म और “छठी” का उल्लेख करके वे यह साबित करना चाहते हैं कि धार्मिक संस्कार किसी एक पार्टी की बपौती नहीं हैं।
वहीं अहीर रेजिमेंट और सेना में भर्ती की मांग के जरिए युवा और सुरक्षा दोनों को अपनी राजनीति से जोड़ने की कोशिश हो रही है।
मताधिकार, बीएलओ की मौत, वोटर लिस्ट से नाम कटने और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठे सवाल लोकतंत्र की प्रणाली पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करते हैं, जिसमें फिर से अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला केंद्र में दिखाई देता है।
संविधान, अंबेडकर, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, धर्मनिरपेक्षता और चीन की सीमा जैसे मुद्दों को एक साथ पिरोकर अखिलेश ने यह संदेश भी दिया कि उनकी राजनीति केवल प्रदेश तक सिमटी नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय विमर्श पर भी दावेदारी जताती है।
इन सबके बीच अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला विपक्षी एकजुटता, संवैधानिक मूल्यों की रक्षा और मतदाता अधिकार के सवालों के साथ आगे बढ़ने की रणनीति का हिस्सा बनकर उभरता है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अन्य विपक्षी दल भी इसी सुर में भाजपा की नीतियों को चुनौती देते हैं या फिर यह स्वर केवल सपा तक सीमित रह जाता है।
फिलहाल इतना साफ है कि अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला 120 बहादुर के एक शो तक सीमित नहीं, बल्कि 2027 तक चलने वाली लंबी राजनीतिक फिल्म की शुरुआती झलक जैसा है, जिसका असली क्लाइमैक्स आने वाले चुनावों में ही दिखेगा।
सवाल-जवाब (FAQ)
प्रश्न 1: लखनऊ में अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला किस संदर्भ में हुआ?
लखनऊ में अखिलेश यादव ने फिल्म ‘120 बहादुर’ देखने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जहां उन्होंने धर्म, पीडीए, हिरासत केंद्र, वोटर लिस्ट से नाम कटने, अहीर रेजिमेंट, बीएलओ की मौत, संविधान और चीन सीमा जैसे मुद्दों पर केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार को घेरा।
इसी पूरी प्रेस वार्ता में अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला मुख्य रूप से सामने आया।
प्रश्न 2: पीडीए से अखिलेश यादव का क्या मतलब है?
पीडीए का अर्थ है—पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और आधी आबादी यानी महिलाएं।
अखिलेश के अनुसार उनकी राजनीतिक लड़ाई इसी पीडीए के अधिकार, प्रतिनिधित्व और सम्मान के लिए है।
इसी सामाजिक गठजोड़ की राजनीति के माध्यम से अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला सामाजिक न्याय के नए फ्रेम में दिखाई देता है।
प्रश्न 3: हिरासत केंद्र और 2027 को लेकर अखिलेश यादव ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री के घुसपैठियों के लिए अस्थायी हिरासत केंद्र बनाने के निर्देश पर अखिलेश ने कहा कि सरकार इसलिए हिरासत केंद्र बना रही है, क्योंकि 2027 के बाद लोग उन्हें ही हिरासत में भेज देंगे।
यह बयान संकेत देता है कि वे सत्ता परिवर्तन की संभावना को जनता के सामने राजनीतिक तंज के रूप में रख रहे हैं और इसी के सहारे अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला और तेज हो जाता है।
प्रश्न 4: वोटर लिस्ट से नाम कटने के मुद्दे पर अखिलेश ने क्या आरोप लगाए?
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि यूपी में बीएलओ पर अत्यधिक दबाव डालकर फॉर्म जल्द भरवाए जा रहे हैं, जिसका परिणाम यह होगा कि लगभग तीन करोड़ वोट काटे जाएंगे।
उन्होंने कहा कि भाजपा और चुनाव आयोग एक हो गए हैं और जाति के आधार पर अधिकारियों की तैनाती करवा कर मताधिकार पर हमला किया जा रहा है।
इस संदर्भ में भी अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के नाम पर दर्ज हुआ।
प्रश्न 5: चीन और सीमा सुरक्षा पर अखिलेश यादव ने क्या सवाल उठाए?
फिल्म ‘120 बहादुर’ के संदर्भ में अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार के दौरान देश की सीमाओं में कमी की आशंका बढ़ी है और सरकार को मूल तथा वर्तमान क्षेत्रों का खुलासा करना चाहिए।
उन्होंने चीन समेत उन देशों से सावधान रहने की बात कही जो बार-बार भारत के क्षेत्र पर कब्जा करते हैं और सरकार पर दुष्प्रचार व झूठ पर निर्भर रहने का आरोप लगाया।
यहां भी अखिलेश यादव का बीजेपी पर हमला राष्ट्रीय सुरक्षा और पारदर्शिता के मुद्दों पर केंद्रित रहा।