निठारी हत्याकांड: न्याय की तलाश में भटके परिवारों की करुण कहानी

सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
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न्याय की उम्मीद में बीते दिन, महीने और साल… थानों और अदालतों के अनगिनत चक्कर… और अंत में केवल हताशा।
दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी हत्याकांड ने 2005–06 में पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
लेकिन 11 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले ने उस दर्द को एक बार फिर जीवित कर दिया है।
कोर्ट ने मुख्य अभियुक्त रहे सुरिंदर कोली को सभी लंबित मामलों में निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया।
इससे पहले मोनिंदर सिंह पंधेर पहले ही बरी हो चुके थे।

लेकिन जब सुरिंदर कोली जेल से बाहर निकला तो एक सवाल पूरे निठारी गांव में गूंजा—
“अगर ये निर्दोष है, तो दोषी कौन है? हमारे बच्चों की जान किसने ली?”


जिनके बच्चे गए, उनके पास आज भी बस आँसू और अधूरे सवाल

निठारी गाँव के जिस मोहल्ले में कभी बच्चों की चहल-पहल गूंजा करती थी, आज वहां केवल सन्नाटा है।
वक्त बीत गया, लेकिन पीड़ित परिवारों के जख्म नहीं भरे।
अब गांव में सिर्फ चार परिवार ही बचे हैं, जो इस मामले से जुड़े थे।
बहुतों ने गांव भी छोड़ दिया और अदालतों से भी उम्मीदें।

आठ साल की बेटी खो चुकी एक पीड़िता रोते हुए कहती हैं—

“इसके घर से कंकाल मिले, हमारी बच्ची के कपड़े मिले, चप्पल मिली… खोपड़ी मिली… और कहते हैं हम निर्दोष हैं?
हमने घर-ज़मीन बेचकर केस लड़ा, लेकिन हाथ क्या लगा? बस निराशा…”

उनके पति सहज ही पूछ पड़ते हैं—

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“अगर पंधेर भी निर्दोष, कोली भी निर्दोष… तो कौन था? कौन इतने बच्चों को मार रहा था? क्या सबूत हवा में उग आए थे?”


“हमने मान लिया कि वह निर्दोष है… लेकिन हमारे घाव कौन भरेगा?”

तीन साल के बेटे को खो चुके राजकिशन पहले मीडिया से बात नहीं करना चाहते थे।
फिर धीरे से बोले—

“हमने सबूत देखे, कबूलनामे सुने, फांसी होती देखी, फिर रुकते देखा।
अगर कोर्ट कहती है कि कोली निर्दोष है, तो ठीक…
पर हमारा दुख कौन समझेगा? हम कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं।”

उनकी पत्नी पूनम आज भी पंधेर के डी-5 बंगले के सौ मीटर दूर रहती हैं, लेकिन उस रास्ते पर नहीं जातीं।
कहती हैं—

“उस घर का नाम सुनकर ही सीने में दर्द उठता है… बात करना मुश्किल है।”


“हमारे बच्चे चले गए और न्याय भी नहीं मिला…”

एक अन्य पीड़िता सीबीआई और पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाती हैं।

“डीएनए टेस्ट करवाए थे… अब कह रहे हैं सब गलत।
फिर जो हड्डियाँ मिलीं वो कौन थीं?
कुत्ते-बिल्लियों की थीं?
हमारे फूल जैसे बच्चे को किसने मारा?”

उनकी आवाज़ टूटती है—

“इतनी बेरहमी से कोई जानवर को भी नहीं मारता…
हमारे बच्चों को इस तरह कैसे मार दिया गया?”


निठारी: देश को हिलाने वाला वो डरावना सच

2005–06 के बीच 19 से अधिक बच्चों और युवतियों के गुम होने की घटनाएं सामने आईं।
परिजनों ने बार-बार पुलिस से शिकायत की, लेकिन पुलिस ने महीनों अनदेखी की।

आख़िरकार जब कार्रवाई हुई, तो मोनिंदर सिंह पंधेर के घर के पीछे के नाले से
कंकाल, मानव अवशेष, 40 पैकेटों में भरे शरीर के अंग बरामद हुए।
देश दहल गया।
पंधेर और कोली दोनों गिरफ्तार हुए।

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सीबीआई अदालत ने 2009 में दोनों को फांसी की सज़ा सुनाई।
लेकिन फिर कहानी बदल गई—

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट: सबूत अवैध, विरोधाभासी
  • कबूलनामे पर भरोसा नहीं किया जा सकता
  • जांच में भारी लापरवाही
  • साक्ष्यों का संग्रह कानूनी नियमों के खिलाफ

और अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा—

“कानून शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता…
जांच में इतनी खामियां हैं कि दोष साबित नहीं किया जा सकता।”


खराब जांच ने बंद कर दिया सच तक पहुंचने का रास्ता

इलाहाबाद हाई कोर्ट के 308-पन्ने के फैसले ने कई चौंकाने वाली खामियों को उजागर किया—

  • कोली 60 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रहा, लेकिन मेडिकल जांच नहीं हुई।
  • कबूलनामा दर्ज करने वाला मजिस्ट्रेट भी आश्वस्त नहीं था कि बयान बिना दबाव के दिया गया।
  • जांच एजेंसियां बार-बार अपना स्टैंड बदलती रहीं।
  • सीबीआई ने शुरुआती सबूतों से अलग निष्कर्ष निकाले।
  • अधिकांश परिस्थितिजन्य साक्ष्य अदालत में टिक नहीं पाए।

कानून का एक सिद्धांत है—
“100 दोषी बच जाएं, पर एक निर्दोष को सज़ा नहीं होनी चाहिए।”
लेकिन निठारी के पीड़ित परिवार पूछते हैं—

“और हमारे बच्चों का क्या? क्या हम सिर्फ़ आँकड़े थे?”


फैसले का असर— गाँव में बढ़ी बेचैनी, डर और खालीपन

निठारी आज एक दर्द में डूबा हुआ गाँव है।
एक तरफ न्यायपालिका का फैसला है,
तो दूसरी तरफ पीड़ित परिवारों का अविश्वास।

जिस गली में कभी बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी,
आज वहां हर कदम पर एक सवाल है—

“अगर वो दोनों निर्दोष हैं… तो हमारे बच्चों के हत्यारे कहाँ हैं?”

निठारी के हर घर में यह फ़िक्र है कि
क्या असली अपराधी कभी पकड़ा जाएगा?
या फिर यह मामला भी उन फाइलों में दफन हो जाएगा,
जो सालों बाद केवल इतिहास बनकर रह जाती हैं।

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क्या निठारी की कहानी का अंत यहीं है?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा—

“सबूत अपर्याप्त, जांच त्रुटिपूर्ण, प्रक्रिया अवैध… इसलिए दोष सिद्ध नहीं।”

लेकिन क्या एक न्यायिक निष्कर्ष,
एक सामाजिक और मानवीय त्रासदी का अंत कर सकता है?

निठारी कांड भारत की जांच एजेंसियों और पुलिसिंग सिस्टम की
सबसे बड़ी विफलताओं में से एक माना जाएगा।
सवाल यह भी है—

  • क्या जाँच एजेंसियों पर कोई कार्रवाई होगी?
  • क्या पीड़ित परिवारों के पुनर्वास पर कोई कदम उठेगा?
  • क्या इस मामले को फिर से किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा देखा जा सकता है?

फिलहाल सभी जवाब हवा में तैर रहे हैं।
और निठारी में बीती रातों की चीखें अब भी कई घरों में गूंज रही हैं।

📌 क्लिंक करके खोलें – सवाल और जवाब (FAQ)

निठारी हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा कि जांच त्रुटिपूर्ण थी, सबूत अवैध और विरोधाभासी थे, इसलिए कोली को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

क्या असली अपराधी कभी पकड़े गए?

अदालत ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यानी असली अपराधी अब भी रहस्य हैं।

इतने सबूत मिलने के बावजूद अभियुक्त कैसे बरी हो गए?

कानून के अनुसार सबूतों का संग्रह और प्रक्रिया कानूनी नियमों के तहत होनी चाहिए। यहाँ यह प्रक्रिया भारी खामियों से भरी मिली।

पीड़ित परिवारों की मुख्य मांग क्या है?

वे जानना चाहते हैं कि उनके बच्चों की हत्या किसने की। वे नई और निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं।

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