चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला: दो पेंशन, दो करोड़ की बंदरबांट और 43.13 करोड़ की साज़िश का पर्दाफाश

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

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उत्तर प्रदेश के शांत और धार्मिक माहौल के लिए पहचाने जाने वाले जिले में अब भ्रष्टाचार की एक ऐसी परत खुली है जिसने पूरे प्रदेश को चौंका दिया है।
चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी, विभागीय सांठगांठ और लालच से भरी उस मानसिकता की कहानी है, जिसमें पेंशन जैसी संवेदनशील सुविधा को भी अवैध कमाई का जरिया बना दिया गया।
43.13 करोड़ रुपये के इस घोटाले ने साबित कर दिया कि अगर समय पर निगरानी न हो तो कोषागार जैसे भरोसेमंद विभाग में भी किस तरह से बड़े खेल खेले जा सकते हैं।

चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला में ताज़ा खुलासे ने तो मानो इंसानियत को ही शर्मसार कर दिया।
एक ही परिवार के दो पेंशनर दंपती के खातों में करीब दो करोड़ रुपये से अधिक धनराशि पहुँची, और वह भी इस तरह, जैसे यह कोई सामान्य प्रक्रिया हो।
हैरानी की बात यह रही कि पत्नी के निधन के बाद भी उसकी पेंशन बंद नहीं हुई, बल्कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से उसका खाता लगातार संचालित होता रहा और पति अपनी स्वयं की पेंशन के साथ मृत पत्नी की पेंशन भी उठाता रहा।

कोषागार में कैसे शुरू हुआ 43.13 करोड़ का चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला?

सरकारी कोषागार का दायित्व होता है कि वह पेंशनरों की मेहनत की कमाई को सुरक्षित तरीके से उनके खातों तक पहुँचाए।
लेकिन चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला की पृष्ठभूमि बताती है कि वर्षों से इस व्यवस्था में कई खामियां जड़ जमा चुकी थीं।
तकनीकी सिस्टम की आड़, डेटा अपडेट न होने, मृत पेंशनरों के रिकॉर्ड समय से बंद न किए जाने और आंतरिक ऑडिट की ढिलाई ने मिलकर इस घोटाले के लिए जमीन तैयार कर दी।

17 अक्तूबर को जब कोषागार विभाग में पेंशनरों के खातों में अवैध तरीके से अधिक धनराशि भेजे जाने और फिर उस धनराशि को पेंशनर, बिचौलियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से निकालने का मामला सामने आया,
तब पहली बार स्पष्ट हुआ कि यह कोई इक्का-दुक्का गलती नहीं, बल्कि सुनियोजित धोखाधड़ी है।
चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला के शुरुआती ऑडिट में ही करोड़ों रुपये की अनियमितता के संकेत मिलने लगे थे, जिसके बाद एसआईटी की जांच तेज की गई।

एक दंपती के दो खाते, दो पेंशन और दो करोड़ से अधिक की संदिग्ध कमाई

एसआईटी की जांच में अर्जुनपुर, राजापुर निवासी पेंशनर मोहनलाल और उनकी पत्नी विमला का नाम सामने आया। दोनों ही सरकारी नौकरी में थे।
जांच में सामने आया कि पत्नी विमला के निधन के बाद भी उसका पेंशन खाता बंद नहीं किया गया।
इसके विपरीत, विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की कथित सांठगांठ से विमला के नाम का खाता संचालित होता रहा और उसमें हर माह पेंशन आती रही।
इस तरह चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला में यह मामला एक प्रमुख उदाहरण बनकर उभरा कि मृत पेंशनरों के नाम से किस तरह से खेल खेला गया।

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मोहनलाल की अपनी व्यक्तिगत पेंशन के लिए अलग खाता पहले से ही खुला था।
जांच में जो आंकड़े सामने आए, वे चौंकाने वाले हैं।
विमला के नाम के खाते में एक करोड़ 14 लाख 981 रुपये की धनराशि पाई गई, जबकि मोहनलाल के खाते में 80 लाख 93 हजार रुपये जमा मिले।
यह पूरी रकम उनके नियमित पेंशन के अतिरिक्त संदिग्ध रूप से बढ़ी हुई धनराशि मानी जा रही है, जो सीधे-सीधे चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला से जुड़ी है।

जांच अधिकारियों का मानना है कि मोहनलाल को पूरे खेल की जानकारी थी और वह विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में था।
उसके खातों में आई रकम को निकाला गया और अंदरखाने बंदरबांट की गई।
अब जब पूरा रैकेट सामने आ चुका है, तो चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला के इस मुख्य आरोपी ने अदालत से जमानत की गुहार लगाई, लेकिन अदालत ने मामले की गंभीरता देखते हुए राहत देने से इंकार कर दिया।

बिचौलियों का नेटवर्क: दीपक पांडेय, रिश्तेदारों के खाते और नकदी की बंदरबांट

हर बड़े घोटाले की तरह चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला में भी बिचौलियों की भूमिका बेहद अहम रही।
जांच में बिचौलिया दीपक पांडेय का नाम लगातार सुर्खियों में है। बताया जा रहा है कि वह कई पेंशनरों और कोषागार कर्मचारियों के बीच सेतु का काम करता था।
पेंशन की फाइल, संशोधन, एरियर, चिकित्सा प्रतिपूर्ति या अन्य भुगतानों के नाम पर पेंशनरों को यह भरोसा दिलाया जाता कि अगर वे ‘थोड़ा खर्च’ करें तो उनकी राशि जल्दी मिल जाएगी या बढ़कर आएगी।

एसआईटी की जांच में दीपक पांडेय के रिश्तेदार दयाराम त्रिपाठी के खाते में भी संदिग्ध धनराशि का पता चला।
दयाराम के खाते में कोषागार विभाग से अवैध रूप से भेजे गए 19 लाख 32 हजार 360 रुपये मिले।
यह रकम सीधे तौर पर चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला की उसी कड़ी से जुड़ी मानी जा रही है, जिसमें पेंशनर, बिचौलिये और विभागीय कर्मचारी मिलकर नकदी निकालते थे।

इसी तरह अतर्रा निवासी पेंशनर संतोष मिश्रा के खाते में भी 39 लाख 19 हजार 740 रुपये की संदिग्ध राशि दर्ज की गई।
यह धनराशि भी कोषागार विभाग की ओर से ही भेजी गई थी।
अब एसआईटी यह पता लगाने में जुटी है कि यह रकम किस फर्जी हेड या किस मनगढ़ंत मंजूरी के आधार पर जारी की गई।
चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला के सिलसिले में दर्ज किए गए बैंक स्टेटमेंट, वाउचर, पे-ऑर्डर और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन डिटेल्स को खंगाला जा रहा है।

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एसआईटी की सख्त पड़ताल: संपत्तियों का ब्यौरा, विभागीय सांठगांठ और आगे की कार्रवाई

एसआईटी जांच अधिकारी सीओ अरविंद वर्मा ने स्पष्ट किया है कि चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला में सिर्फ पेंशनरों और बिचौलियों को ही नहीं, बल्कि विभाग के भीतर बैठे उन चेहरों को भी चिन्हित किया जा रहा है जो इस पूरे खेल के वास्तविक सूत्रधार हैं।
कई आरोपियों की चल-अचल संपत्तियों का ब्यौरा तैयार हो चुका है और कुछ का विवरण अभी जुटाया जा रहा है।
जमीन, मकान, प्लॉट, बैंक खाते और लॉकर तक की जानकारी को खंगाला जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि घोटाले की रकम कहाँ-कहाँ खपाई गई।

जांच के दौरान यह भी सामने आया कि चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला के कई पात्रों की कोषागार विभाग के अन्य कर्मचारियों से भी गहरी सांठगांठ थी।
पासवर्ड शेयरिंग, फर्जी एंट्री, खातों में अतिरिक्त रकम ट्रांसफर करना और फिर उसे नकद या दूसरे खातों के माध्यम से निकालना—यह सब बिना अंदरूनी सहयोग के सम्भव ही नहीं था।
अब एसआईटी उन कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय कर रही है जो या तो सीधे इस खेल में शामिल थे या लापरवाही के जरिए घोटाले को बढ़ावा दे रहे थे।

अदालत सख्त: तीन की जमानत खारिज, बाकी पर भी नजर

मंगलवार को जेल में बंद कई आरोपी पेंशनरों की जमानत याचिकाओं पर जिला जज की अदालत में सुनवाई हुई।
जिला शासकीय अधिवक्ता श्यामसुंदर मिश्रा के अनुसार अर्जुनपुर के मोहनलाल, कर्वी के दयाराम त्रिपाठी और अतर्रा के संतोष मिश्रा की जमानत याचिका अदालत ने खारिज कर दी।
अदालत का स्पष्ट मत था कि चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला अत्यंत गंभीर प्रकृति का मामला है और अभी पूरे रिकार्ड एवं साक्ष्यों का सामने आना जरूरी है।

एक अन्य पेंशनर भोलूराम ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल की है, जिस पर भी अदालत की नजर है।
लेकिन न्यायालय की कड़ी टिप्पणी से साफ संकेत मिल रहा है कि जब तक चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला की पूरी जांच अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुँच जाती, तब तक किसी भी आरोपी को राहत मिलना आसान नहीं होगा।
शासन स्तर पर भी संदेश जा रहा है कि पेंशन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में की गई गड़बड़ी को किसी भी हाल में हल्के में नहीं लिया जाएगा।

पेंशन सिस्टम पर सवाल और चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला से मिली सीख

चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला सिर्फ एक जिले की घटना नहीं, बल्कि पूरे पेंशन सिस्टम के लिए एक कड़ा सबक है।
इस मामले ने दिखाया कि अगर समय-समय पर मृत पेंशनरों का डेटा अपडेट न हो, बैंक खातों की मिलान प्रक्रिया मजबूत न हो और ऑडिट सिर्फ कागजों तक सीमित रहे, तो करोड़ों रुपये आसानी से गलत हाथों में जा सकते हैं।
यह भी साफ हो गया कि तकनीक का इस्तेमाल पारदर्शिता के लिए हो, तो सिस्टम सुरक्षित रहता है, लेकिन जब टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मिलीभगत और धांधली के लिए किया जाए तो परिणाम विनाशकारी होते हैं।

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अब जरूरत है कि चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला जैसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।
मृत पेंशनरों के खातों को तत्काल प्रभाव से बंद करने, हर वर्ष पेंशनर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को और सरल लेकिन सख्त बनाने,
तथा कोषागार और बैंक के बीच ऑनलाइन रियल टाइम मिलान तंत्र को मजबूत करने की दिशा में ठोस पहल की जानी चाहिए।
तभी पेंशनरों की मेहनत की कमाई सुरक्षित रह सकेगी और सिस्टम में जनता का भरोसा लौटेगा।

चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल-जवाब

प्रश्न 1: चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला क्या है और इसमें कितनी रकम शामिल है?

चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला वह मामला है जिसमें पेंशनरों के खातों में अवैध रूप से अधिक धनराशि भेजी गई और फिर पेंशनर, बिचौलियों तथा विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत से उसे निकाला गया।
इस घोटाले में लगभग 43.13 करोड़ रुपये की अनियमितता सामने आई है।

प्रश्न 2: घोटाले में पेंशनर दंपती के खातों में कितनी रकम मिली?

एसआईटी की जांच के अनुसार अर्जुनपुर, राजापुर निवासी पेंशनर मोहनलाल की मृत पत्नी विमला के खाते में एक करोड़ 14 लाख 981 रुपये और मोहनलाल के अपने खाते में 80 लाख 93 हजार रुपये की संदिग्ध धनराशि पाई गई,
जो नियमित पेंशन से कहीं अधिक और घोटाले का हिस्सा मानी जा रही है।

प्रश्न 3: बिचौलिया दीपक पांडेय और उसके रिश्तेदारों की क्या भूमिका बताई जा रही है?

जांच में सामने आया है कि दीपक पांडेय कई पेंशनरों और कोषागार कर्मचारियों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता था।
उसके रिश्तेदार दयाराम त्रिपाठी के खाते में कोषागार विभाग से अवैध रूप से 19 लाख 32 हजार 360 रुपये भेजे जाने के प्रमाण मिले हैं,
जो घोटाले के नेटवर्क को मजबूत रूप से जोड़ते हैं।

प्रश्न 4: अदालत ने चित्रकूट कोषागार पेंशन घोटाला के आरोपियों की जमानत पर क्या रुख अपनाया?

जिला जज की अदालत ने मोहनलाल, दयाराम त्रिपाठी और संतोष मिश्रा की जमानत याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दीं कि मामला गंभीर है और अभी पूरे रिकार्ड व साक्ष्य का सामने आना आवश्यक है।
इससे स्पष्ट है कि न्यायालय इस घोटाले को कड़ी नजर से देख रहा है।

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