
अब्दुल मोबीन सिद्दिकी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के भारत-नेपाल बॉर्डर से सटे नौतनवा नगर पालिका के राजेंद्र नगर वॉर्ड से
एक ऐसा दृश्य सामने आया है, जिसने पूरे देश को हिला दिया है।
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द सिर्फ एक परिवार की निजी त्रासदी नहीं, बल्कि उस समाज का आईना है
जहां अनाथ हो चुके तीन बच्चे अपने पिता के शव को ठेले पर ढोते रहे और इंसानियत मदद के नाम पर कहीं दिखाई नहीं दी।
रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया, पड़ोसी किनारा कर गए और नगर पालिका से लेकर प्रशासन तक सब चुप रहे।
महराजगंज से उठी करुण पुकार – नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द किसी को क्यों नहीं दिखा?
इंडो-नेपाल बॉर्डर के इस छोटे से कस्बे में
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द तब चरम पर दिखाई दिया,
जब राजेंद्र नगर निवासी लव कुमार पटवा का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।
महज छह महीने पहले ही उनकी पत्नी दुनिया छोड़ चुकी थीं।
घर में केवल 14 वर्षीय राजवीर, 10 वर्षीय देवराज और एक छोटी बेटी ही बच गए।
मां के बाद अब पिता की मौत ने इन मासूमों की दुनिया पूरी तरह उजाड़ दी।
बच्चों को उम्मीद थी कि अब रिश्तेदार और पड़ोसी सहारा देंगे, लेकिन
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द यह था कि जिस दरवाजे पर मदद की उम्मीद से गए,
वहीं से उन्हें निराशा, बेरुख़ी और ताले ही मिलते रहे।
लव कुमार पटवा जीवनभर ठेला चलाकर परिवार का पेट पालते रहे।
मगर मौत के बाद वही ठेला उनके बच्चों के लिए मजबूरी और
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द का प्रतीक बन गया।
दो दिन तक पिता का शव घर में ही रखा रहा।
रिश्तेदारी से लेकर मोहल्ले तक कहीं से कोई ठोस मदद न मिली तो
तीनों बच्चों ने तय किया कि वे खुद ही पिता का अंतिम संस्कार करेंगे।
उन्होंने वही ठेला निकाला, जिस पर उनके पिता मजदूरी करते थे और
उस पर पिता का शव लादकर श्मशान घाट की तरफ चल पड़े।
श्मशान और कब्रिस्तान से लौटाया गया शव, और बढ़ता गया नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द
श्मशान घाट पहुंचने पर
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द और गहरा हो गया।
यहाँ लकड़ी के अभाव और पैसों की कमी के कारण अंतिम संस्कार से साफ मना कर दिया गया।
नन्हे-नन्हे कंधों पर पहले से ही दुखों का पहाड़ था, ऊपर से यह असंवेदनशील जवाब उनके लिए असहनीय था।
आर्थिक रूप से टूट चुके इन बच्चों के पास लकड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और
कोई भी रिश्तेदार आगे आकर उनके साथ खड़ा होने को तैयार नहीं था।
बेबस होकर बच्चे ठेले पर पिता के शव को रखकर कब्रिस्तान की ओर बढ़े,
शायद वहां कोई इंसानियत जाग जाए।
लेकिन कब्रिस्तान में भी उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि शव हिंदू का है,
यहाँ दफनाया नहीं जा सकता।
इस दोहरी निराशा ने
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द को अंदर तक तोड़ दिया।
ठेले पर लदी लाश, पास चलते नंगे पांव तीन मासूम बच्चे और चारों तरफ खामोश भीड़…
यह दृश्य देखने वालों की आंखें तो नम हो गईं,
लेकिन मदद के लिए किसी का हाथ आगे नहीं बढ़ा।
ठेले पर शव, राह पर आंसू – नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द बना सड़क का मूक तमाशा
जिस ठेले को चलाकर लव कुमार पटवा ने अपना घर-परिवार चलाया,
उसी ठेले पर उनकी लाश रखकर बच्चे लोगों से मदद की गुहार लगाते रहे।
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द उस समय और भी भयावह हो गया,
जब कुछ लोग इस मंजर को भीख मांगने का नया ट्रेंड कहकर नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ते रहे।
किसी ने इस दृश्य की तस्वीरें और वीडियो बना लिए,
किसी ने उन्हें टाल दिया, पर
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द समझकर वास्तविक मदद करने की हिम्मत बहुत कम लोगों ने जुटाई।
राहगीरों की आंखों में क्षणिक संवेदना तो दिखी,
लेकिन जमीनी सहयोग नदारद रहा।
तीनों बच्चे कभी श्मशान की ओर, कभी कब्रिस्तान की ओर ठेला घुमाते रहे।
हर मोड़ पर उन्हें यही एहसास होता रहा कि
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द शायद दूसरों के लिए महज़ एक खबर या दृश्य बनकर रह गया है,
जिसे देखा तो जा सकता है पर महसूस कर उसके लिए कुछ किया नहीं जा सकता।
दो मुस्लिम भाई बने उम्मीद का सहारा, नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द कुछ पल को हल्का हुआ
इसी बीच इंसानियत ने धार्मिक दीवारों को तोड़ते हुए एक नई मिसाल पेश की।
नगर पालिका के बिस्मिल नगर वॉर्ड के सभासद प्रतिनिधि राशिद कुरैशी और
राहुल नगर वॉर्ड के सभासद वारिस कुरैशी को जैसे ही
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द की जानकारी मिली,
वे तुरंत मौके पर पहुंचे।
उन्होंने सबसे पहले बच्चों को संभाला, उन्हें पानी पिलाया, ढांढस बंधाया
और उनकी पूरी कहानी सुनी।
उनके सामने सिर्फ एक घटना नहीं,
बल्कि तीन अनाथ बच्चों का भविष्य और
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द खड़ा था।
दोनों मुस्लिम भाइयों ने अपनी जिम्मेदारी मानते हुए तुरंत लकड़ी और अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था की।
उन्होंने श्मशान घाट प्रशासन से बात की,
बच्चों के साथ खड़े हुए और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार
लव कुमार पटवा का अंतिम संस्कार करवाया।
देर रात तक चले इस अंतिम संस्कार में
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द एक बार फिर सामने आया,
जब चिता की लपटों के बीच खड़े तीनों मासूम बच्चे अपने पिता को अंतिम विदाई देते हुए फूट-फूटकर रो पड़े।
अंतिम संस्कार के बाद राशिद कुरैशी और वारिस कुरैशी ने बच्चों को सुरक्षित उनके घर तक छोड़ा।
राजवीर और देवराज की आंखों में आंसू के साथ यह सुकून भी था कि
कम से कम पिता का सम्मानजनक अंतिम संस्कार हो सका।
लेकिन नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता,
क्योंकि अब आगे का जीवन, पढ़ाई, सुरक्षा और रोजमर्रा की जरूरतें भी इन्हीं नन्हे कंधों पर हैं।
व्यवस्था पर सवाल, इंसानियत को सलाम – क्या दोबारा दोहराया जाएगा नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द?
यह घटना सिर्फ भावनात्मक खबर नहीं,
बल्कि पूरी व्यवस्था पर एक कड़ा सवाल है।
जब नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द इस हद तक बढ़ चुका था कि
तीन अनाथ बच्चे ठेले पर पिता की लाश लेकर भटक रहे थे,
तब नगर पालिका, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने समय रहते कदम क्यों नहीं उठाया?
क्यों रिश्तेदारों ने पल्ला झाड़ लिया और पड़ोसियों ने भी किनारा कर लिया?
दूसरी ओर, दो मुस्लिम भाइयों की यह इंसानियत बताती है कि
जब सिस्टम और समाज दोनों कहीं न कहीं असफल हो जाते हैं,
तब भी इंसान होना सबसे बड़ा धर्म बनकर सामने आता है।
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द के बीच यही सबसे उजला पक्ष है
कि इसने सांप्रदायिक सौहार्द और मानवीय मूल्यों को एक नई मजबूती दी।
आज पूरा क्षेत्र राशिद और वारिस कुरैशी के इस कदम की तारीफ कर रहा है
और साथ ही रिश्तेदारों व प्रशासन की बेरुख़ी पर सवाल भी उठा रहा है।
अब जरूरत है कि नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द सिर्फ वायरल खबर बनकर सोशल मीडिया की टाइमलाइन तक सीमित न रह जाए।
प्रशासन को इन बच्चों के पुनर्वास, शिक्षा, भोजन, सुरक्षा और भविष्य के लिए ठोस योजना बनानी होगी।
समाज के जिम्मेदार लोगों, एनजीओ और जनप्रतिनिधियों को भी आगे बढ़कर इन मासूमों का सहारा बनना होगा,
ताकि कल को किसी दूसरे शहर या कस्बे से
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द जैसी कोई नई कहानी सामने न आए।
सवाल-जवाब: नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द से जुड़े अहम प्रश्न
प्रश्न 1: नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द किस घटना से जुड़ा है?
यह घटना उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के नौतनवा नगर पालिका के राजेंद्र नगर वॉर्ड की है,
जहां लव कुमार पटवा की मौत के बाद उनके तीन अनाथ बच्चों ने ठेले पर पिता का शव रखकर
श्मशान और कब्रिस्तान के कई चक्कर लगाए, लेकिन उन्हें बार-बार लौटा दिया गया।
बाद में दो मुस्लिम भाइयों ने आगे आकर हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार कराया।
प्रश्न 2: नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द में दो मुस्लिम भाइयों की क्या भूमिका रही?
बिस्मिल नगर वॉर्ड के सभासद प्रतिनिधि राशिद कुरैशी और राहुल नगर वॉर्ड के सभासद वारिस कुरैशी ने
इस घटना की जानकारी मिलते ही बच्चों तक पहुंचकर उन्हें संभाला,
लकड़ी और अन्य सामग्री की व्यवस्था की और श्मशान घाट पर
लव कुमार पटवा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से करवाया।
इन दोनों ने ही इंसानियत की मिसाल पेश कर
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द कुछ हद तक कम किया।
प्रश्न 3: नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द जैसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या करना जरूरी है?
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को संवेदनशील और जवाबदेह बनाना सबसे जरूरी है।
नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन को अनाथ, बेसहारा और गरीब परिवारों के लिए तत्काल मदद और सम्मानजनक अंतिम संस्कार की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।
साथ ही समाज के जिम्मेदार लोगों, सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों को भी आगे आकर
नौतनवा मासूम बच्चों का दर्द जैसे हालात में बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और भविष्य की जिम्मेदारी बांटनी होगी।






