सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना मौत की सजा मामले ने पूरे दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। सोमवार को विशेष न्यायाधिकरण द्वारा उनकी अनुपस्थिति में दी गई इस सजा को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। न्यायाधिकरण के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हसीना ने इसे “पहले से तय और राजनीतिक रूप से प्रेरित” करार दिया। उनका आरोप यह भी है कि यह अदालत पूरी तरह उनके विरोधियों द्वारा नियंत्रित है, जो अपने शासन की असफलताओं से जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं।
बांग्लादेश में छात्रों पर हुए कथित हमले के लिए दी गई यह शेख हसीना मौत की सजा न केवल कानूनी विवाद का विषय बनी है, बल्कि क्षेत्रीय कूटनीति और भारत–बांग्लादेश संबंधों को भी सीधे प्रभावित कर रही है। भारत ने इस मुद्दे पर अत्यंत सतर्कता के साथ प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि उसने “बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण” के फैसले को नोट किया है।
भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया: सावधानी और संतुलन
विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत एक करीबी पड़ोसी के रूप में बांग्लादेश में शांति, स्थिरता, लोकतंत्र और समावेशिता को प्राथमिकता देता है। हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत ने अभी तक ढाका द्वारा उठाए गए उन्हीं अनुरोधों पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया है, जिसमें हसीना के प्रत्यर्पण की मांग दोहराई गई है।
यह मुद्दा इसलिए और भी पेचीदा है क्योंकि शेख हसीना मौत की सजा के तुरंत बाद प्रत्यर्पण की मांग तेज हुई है, लेकिन भारत की स्थिति दिसंबर 2023 से ही स्पष्ट है—प्रत्यर्पण एक “कानूनी प्रक्रिया” है और इसे जल्दबाजी में नहीं किया जाएगा।
प्रत्यर्पण को लेकर बड़े कानूनी अवरोध
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में हुई प्रत्यर्पण संधि इस पूरे विवाद को और जटिल बना देती है। संधि का अनुच्छेद 6 कहता है कि अगर अपराध राजनीतिक प्रकृति का है तो अनुरोधित देश प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है। हसीना का दावा है कि यह मामला पूरी तरह राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है, ऐसे में भारत इस प्रावधान का उपयोग कर सकता है।
दूसरी ओर, अनुच्छेद 8 भी महत्वपूर्ण है, जिसमें कहा गया है कि यदि संबंधित व्यक्ति यह साबित कर दे कि आरोप “न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाए गए हैं”, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। इस आधार पर शेख हसीना मौत की सजा को भारत राजनीतिक उत्पीड़न का मामला मान सकता है।
भारत का भू-राजनीतिक संतुलन: हसीना को छोड़ना जोखिम भरा
बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि भारत के लिए यह स्थिति अत्यंत जटिल है। पिछले 15 वर्षों में शेख हसीना भारत की सबसे भरोसेमंद सहयोगी रही हैं। उन्होंने न केवल भारत विरोधी कट्टरपंथी संगठनों पर सख़्त कार्रवाई की, बल्कि सुरक्षा और व्यापारिक साझेदारी को भी मजबूत किया। ऐसे में भारत यह नहीं चाहेगा कि उसे हसीना को संकट की घड़ी में अकेला छोड़ने वाला देश समझा जाए।
शेख हसीना मौत की सजा का समर्थन करना या उनके प्रत्यर्पण पर विचार करना दोनों ही भारत को सीधे राजनीति के मैदान में धकेल देंगे। इससे अवामी लीग कमजोर होगी और चरमपंथी ताकतें मजबूत होंगी। यही कारण है कि भारत इस मामले में अत्यधिक सावधानी बरत रहा है।
अवामी लीग पर प्रभाव: सबसे बड़ा सवाल
हसीना ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए बयान में कहा था कि यह प्रतिबंध और सजा एक “अनिर्वाचित कैडर” द्वारा लागू की गई है, जो देश में राजनीतिक परिदृश्य को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। उन्होंने तर्क दिया कि अवामी लीग ही वह पार्टी थी जिसने चुनावी सुधार लागू किए—फोटो आधारित वोटर लिस्ट, पारदर्शी बैलेट बॉक्स और स्वतंत्र चुनाव आयोग।
अब विडंबना यह है कि उसी पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है।
शेख हसीना मौत की सजा केवल हसीना का निजी संकट नहीं है, बल्कि यह अवामी लीग के अस्तित्व और बांग्लादेश के चुनावी भविष्य का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुकी है।
भारत की चिंता: बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बढ़ना
अस्थायी अंतरिम सरकार द्वारा अब तक कट्टरपंथी संगठनों पर सख्त कार्रवाई नहीं करने से भारत चिंतित है। विश्लेषक कहते हैं कि शेख हसीना मौत की सजा के बाद यदि अवामी लीग पूरी तरह किनारे कर दी जाती है, तो बांग्लादेश की सत्ता कट्टरपंथी और भारत-विरोधी शक्तियों के हाथों में जा सकती है।
भारत इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला मानता है, क्योंकि बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
ढाका–इस्लामाबाद गठजोड़ की आशंका
विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिम सरकार के पाकिस्तान से संबंध सुधारने की कोशिशें भारत की कूटनीति के लिए नए खतरे पैदा कर सकती हैं। यदि यह प्रक्रिया आगे बढ़ती है, तो शेख हसीना मौत की सजा भारत के लिए एक बड़े रणनीतिक संकट की शुरुआत भी बन सकती है।
क्या भारत अवामी लीग के लिए खड़ा होगा?
भारत का दीर्घकालिक लक्ष्य हमेशा बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और समावेशी चुनाव सुनिश्चित करना रहा है। ऐसे में भारत चाहेगा कि अवामी लीग को चुनाव लड़ने की अनुमति मिले।
यह स्पष्ट है कि शेख हसीना मौत की सजा केवल एक अदालत का फैसला नहीं है, बल्कि बांग्लादेश की राजनीति के भविष्य की दिशा तय करने वाला निर्णय है—और भारत इससे पूरी तरह अप्रभावित नहीं रह सकता।
कूटनीति, न्याय और राजनीति का उलझा हुआ संकट
दिल्ली के लिए यह मामला केवल कानून का नहीं, बल्कि रणनीतिक संबंधों, क्षेत्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों का है।
शेख हसीना मौत की सजा आने वाले महीनों में दक्षिण एशिया की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रही है। भारत को संतुलन, सतर्कता और कुशल कूटनीति के साथ आगे बढ़ना होगा।






