चित्रकूट में क्यों गहराता जा रहा है ‘स्वास्थ्य संकट’? गंभीर मरीज लगातार रेफर, ट्रॉमा सेंटर की मांग तेज

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

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चित्रकूट में चित्रकूट स्वास्थ्य संकट लगातार खतरनाक रूप लेता जा रहा है। करोड़ों रुपये खर्च कर बने अस्पताल, आधुनिक इमारतें, पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती और हर महीने निकलने वाले वेतन के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी हकीकत बेहद निराशाजनक है।
गंभीर मरीजों का इलाज अभी भी समय पर नहीं हो पाता और चित्रकूट स्वास्थ्य संकट का सबसे बड़ा सबूत यह है कि जरा सी हालत बिगड़ते ही मरीज को बांदा या प्रयागराज रेफर कर दिया जाता है।

अक्सर ये मरीज 80 किमी दूर बांदा या 120 किमी दूर प्रयागराज पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। लगातार बढ़ते सड़क हादसों और समय पर आपातकालीन उपचार न मिलने से पिछले एक वर्ष में 158 लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा बताता है कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट किसी साधारण समस्या का नाम नहीं, बल्कि एक भयावह सच्चाई बन चुका है।

सड़क हादसों में बढ़ती मौतें उजागर करती हैं चित्रकूट स्वास्थ्य संकट की सच्चाई

एक साल के भीतर जिले में सड़क हादसों में 158 लोगों की मौत हो गई। ये हादसे इसलिए घातक साबित हुए क्योंकि जिला अस्पताल और सीएचसी-पीएचसी में न तो विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और न ही ट्रॉमा केयर यूनिट।
स्पष्ट है कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट का मुख्य कारण संसाधनों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता है।

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ऐसे में लंबे समय से मांग उठ रही है कि खोह में स्थित 200 बेड की अत्याधुनिक बिल्डिंग को ट्रॉमा सेंटर बना दिया जाए। स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे मौतों का ग्राफ कम होगा और चित्रकूट स्वास्थ्य संकट को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकेगा।

खोह का 200 बेड अस्पताल: शोपीस या समाधान?

समाजवादी पार्टी शासनकाल में खोह में बना 200 बेड का मातृ-शिशु अस्पताल आज एक शोपीस बन चुका है। आधुनिक मॉडल की शानदार बिल्डिंग होने के बावजूद वहां प्रसूति सेवाएँ तक सुचारू नहीं हैं।
हालांकि डिप्टी सीएम बृजेश पाठक के निर्देश पर ओपीडी शुरू हुई और एलिम्को का केंद्र भी खुला, लेकिन चित्रकूट स्वास्थ्य संकट का समाधान अभी दूर है।

लोग लगातार मांग कर रहे हैं कि इसे तत्काल ट्रॉमा सेंटर घोषित किया जाए, क्योंकि मौजूदा जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। एक्सीडेंट, सांस से जुड़े गंभीर रोग और न्यूरो रोगी आते ही रेफर कर दिए जाते हैं, जिससे चित्रकूट स्वास्थ्य संकट और गहराता जा रहा है।

सीएचसी और पीएचसी: इलाज से ज्यादा रेफर सेंटर

जिले में पांच सीएचसी और पांच पीएचसी हैं, लेकिन इनकी हालत भी उतनी ही खराब है। अक्सर यहां केवल प्राथमिक उपचार देकर मरीजों को जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। कई बार यहां से भी मरीजों को बांदा या प्रयागराज रेफर कर दिया जाता है।

लगभग हर अस्पताल के आंकड़े बताते हैं कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट केवल जिला अस्पताल तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे जिले की स्वास्थ्य संरचना पूरी तरह चरमरा चुकी है।

अप्रैल से अब तक 1500 मरीज रेफर—चित्रकूट स्वास्थ्य संकट का सबसे बड़ा सबूत

जिला अस्पताल के आंकड़े चित्रकूट स्वास्थ्य संकट की गहराई दिखाते हैं।
एक अप्रैल 2025 से नवंबर तक कुल 10,407 भर्ती मरीजों में से 1500 मरीजों को रेफर किया गया—यानी लगभग 15 प्रतिशत।
सीएचसी और पीएचसी में यह रेफर रेट 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

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यह आंकड़े साफ बताते हैं कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट किसी आकस्मिक स्थिति का परिणाम नहीं, बल्कि वर्षों की लापरवाही का नतीजा है।

व्यापारी संगठनों की नाराज़गी: ‘स्वास्थ्य सबसे बड़ा मुद्दा’

व्यापारी और उत्तर प्रदेश उद्योग संगठन के पदाधिकारी विनोद प्रिंस केसरवानी कहते हैं—
“स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार सबसे जरूरी है। ट्रॉमा सेंटर खुलना अनिवार्य है। कई लोग स्वास्थ्य मुद्दे पर प्रदर्शन को गलत ठहरा रहे हैं, जबकि यह सबसे अहम मुद्दा है। सरकार करोड़ों खर्च कर रही है, तो सुविधाओं का लाभ जनता को मिलना चाहिए।”

स्पष्ट है कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट पर अब आम नागरिक भी मुखर हो चुके हैं और समाधान की मांग कर रहे हैं।

सीएमओ का दावा—‘सीमित संसाधनों में बेहतर इलाज’

सीएमओ डॉ. भूपेश द्विवेदी कहते हैं—
“ट्रॉमा सेंटर खोलने की आवश्यकता का पत्र पहले ही शासन को भेजा जा चुका है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की मांग भी की गई है। डॉक्टर सीमित संसाधनों में बेहतर इलाज करते हैं। किसी मरीज को जानबूझकर रेफर नहीं किया जाता।”

हालांकि उनके इन दावों से यह भी स्पष्ट होता है कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट को दूर करने के लिए संसाधनों का अभाव सबसे बड़ी समस्या है।

क्या ट्रॉमा सेंटर ही चित्रकूट स्वास्थ्य संकट का बड़ा समाधान?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि खोह के 200 बेड अस्पताल को ट्रॉमा सेंटर बनाने से आपातकालीन सेवाओं में बड़े पैमाने पर सुधार होगा।
एक अत्याधुनिक ट्रॉमा सेंटर से—

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  • सड़क हादसों में मौतें कम होंगी
  • गंभीर मरीजों को तुरंत इलाज मिलेगा
  • रेफर का सिलसिला कम होगा
  • चित्रकूट स्वास्थ्य संकट काफी हद तक नियंत्रित होगा

यदि यह कदम तुरंत उठाया जाता है, तो आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा सुधार देखने को मिल सकता है।

निष्कर्ष: चित्रकूट स्वास्थ्य संकट अब रोकथाम की सीमा पार कर चुका है

सरकारी रिपोर्ट हो या स्थानीय लोगों का अनुभव—हर जगह एक ही बात सामने आती है कि चित्रकूट स्वास्थ्य संकट अब जिले के हर नागरिक को प्रभावित कर रहा है।
बढ़ते हादसे, लगातार रेफर मरीज, विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, खोह अस्पताल का अधूरा उपयोग—ये सभी समस्याएँ मिलकर स्थिति को और गंभीर बना रही हैं।

अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा और कब तक चित्रकूट के लोग इस चित्रकूट स्वास्थ्य संकट की कीमत अपनी जान देकर चुकाते रहेंगे?

क्लिक करें और जवाब देखें (FAQ)

चित्रकूट स्वास्थ्य संकट क्या है?

जिले में डॉक्टरों की कमी, उपकरणों की कमी, ट्रॉमा सेंटर न होना और लगातार मरीजों के रेफर होने जैसी समस्याओं का सामूहिक रूप ही चित्रकूट स्वास्थ्य संकट कहलाता है।

सबसे ज्यादा मरीज किस वजह से रेफर होते हैं?

सड़क हादसे, सांस संबंधी गंभीर रोग, न्यूरो मामलों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपस्थिति सबसे बड़ी वजह है।

क्या खोह अस्पताल को ट्रॉमा सेंटर बनाया जा सकता है?

हाँ, यह बिल्डिंग पूरी तरह तैयार है और इसे तुरंत ट्रॉमा सेंटर में बदला जा सकता है।

क्या ट्रॉमा सेंटर से चित्रकूट स्वास्थ्य संकट कम होगा?

हाँ, आपातकालीन सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ेगी और मौतों का आंकड़ा कम होगा।

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