
शामी एम इरफ़ान, मुम्बई
धर्मेंद्र की झूठी मौत: मीडिया और नेताओं की शर्मनाक लापरवाही
भारत में धर्मेंद्र झूठी मौत की खबर ने आज पूरे मीडिया जगत और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को झकझोर दिया है। हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता और सांसद धर्मेंद्र की मौत की झूठी खबर ने यह साबित कर दिया कि आज की पत्रकारिता किस दिशा में जा रही है।
सुबह से सोशल मीडिया पर अफवाह फैली कि “धर्मेंद्र नहीं रहे”। कुछ चैनलों ने बिना पुष्टि किए धर्मेंद्र फेक डेथ न्यूज को “ब्रेकिंग” बनाकर चला दिया।
सोशल मीडिया पर फैली अफवाह और मीडिया की हड़बड़ी
एक ओर लोग शोक संदेश पोस्ट कर रहे थे, तो दूसरी ओर टीवी एंकर भावुक होकर श्रद्धांजलि देने लगे। धर्मेंद्र झूठी मौत से जुड़ी खबरें फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर आग की तरह फैल गईं।
चौंकाने वाली बात यह रही कि कई बड़े नेताओं और सेलेब्रिटीज़ ने भी बिना पुष्टि के ट्वीट कर शोक जताया।
लेकिन कुछ ही घंटों में जब खुद धर्मेंद्र ने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी किया और कहा —
“कुत्तों, मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगा, अभी ज़िंदा हूँ मैं।”
तो पूरे मीडिया जगत की हवा निकल गई। धर्मेंद्र जिंदा हैं का वीडियो वायरल हुआ और देशभर में लोगों ने राहत की सांस ली।
मीडिया की लापरवाही: फेक न्यूज की फैक्ट्री बन गया सोशल मीडिया
इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि आज मीडिया के एक हिस्से ने फेक न्यूज को अपना हथियार बना लिया है।
हर चैनल और पोर्टल सबसे पहले चलाने की दौड़ में है, लेकिन सत्यापन और जिम्मेदारी को भूल चुका है।
“पहले चलाओ, बाद में देखो” की नीति ने पत्रकारिता की साख को गहरी चोट पहुंचाई है।
धर्मेंद्र झूठी मौत की खबर चलाने वाले कई मीडिया हाउस ने बाद में माफी मांगी, लेकिन जनता के मन में सवाल अब भी कायम हैं —
क्या सिर्फ माफी मांग लेना काफी है? क्या जिम्मेदार पत्रकारिता में तथ्यों की जांच से पहले सनसनी फैलाना सही है?
नेताओं की गैरजिम्मेदारी: बिना पुष्टि के ट्वीट और श्रद्धांजलि
यह मामला सिर्फ मीडिया की गलती नहीं, बल्कि नेताओं की भी लापरवाही उजागर करता है।
कई बड़े नेताओं ने बिना पुष्टि किए ट्वीट कर धर्मेंद्र के निधन पर शोक जताया।
कहा जा रहा है कि भाजपा सांसद हेमा मालिनी भी पार्टी से नाराज थीं, वहीं कुछ नेताओं ने
“धर्मेंद्र अमर रहें” जैसे पोस्ट साझा किए।
रक्षामंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री तक ने संवेदना संदेश जारी कर दिए।
यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या नेताओं को भी खबर की पुष्टि नहीं करनी चाहिए?
धर्मेंद्र जिंदा हैं—यह बयान खुद अभिनेता के परिवार ने जारी किया। बेटे सनी देओल और बेटी ईशा देओल ने मीडिया पर तीखा हमला बोलते हुए कहा,
“यह शर्मनाक है कि बिना सत्यापन के इतनी बड़ी खबर चलाई जाती है। क्या किसी की भावनाओं का कोई मूल्य नहीं?”
फैंस का गुस्सा और मीडिया पर जनता का भरोसा टूटना
जैसे ही धर्मेंद्र फेक न्यूज़ का खुलासा हुआ, फैंस ने सोशल मीडिया पर मीडिया संस्थानों को जमकर लताड़ा।
ट्विटर (X) पर “#धर्मेंद्रजिंदा हैं” ट्रेंड करने लगा।
लोगों ने कहा कि अब पत्रकारिता का स्तर इतना गिर गया है कि किसी की “मौत” भी टीआरपी का ज़रिया बन गई है।
यह जनता के भरोसे पर गहरी चोट है।
मीडिया संस्थान अगर इस घटना से सबक नहीं लेते, तो आने वाले समय में पत्रकारिता पर जनता का विश्वास पूरी तरह समाप्त हो जाएगा।
धर्मेंद्र झूठी मौत की यह खबर पत्रकारिता की आत्मा पर लगा धब्बा है।
पत्रकारिता का मूल सिद्धांत: सत्यापन पहले, सनसनी बाद में
पत्रकारिता का सबसे बड़ा सिद्धांत है – सत्यापन।
बिना तथ्य जांचे किसी भी समाचार को प्रसारित करना पत्रकारिता नहीं, बल्कि अफवाह फैलाना है।
धर्मेंद्र जैसे जीवित दिग्गज कलाकार के बारे में इस तरह की फेक न्यूज चलाना,
ना केवल असंवेदनशीलता है बल्कि यह मानवीय मर्यादा का उल्लंघन भी है।
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आज पत्रकारिता “स्पीड” के नाम पर “सत्य” को कुर्बान कर रही है।
हर न्यूज़ पोर्टल, हर चैनल टीआरपी और व्यूज़ की होड़ में जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
माफी नहीं, सुधार की जरूरत
धर्मेंद्र झूठी मौत की घटना से मीडिया को आत्ममंथन करने की जरूरत है।
माफी मांगना समाधान नहीं है।
जरूरत है एक ऐसी प्रणाली की, जो खबर प्रसारण से पहले सत्यापन सुनिश्चित करे।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी अपने कंटेंट मॉडरेशन टूल्स को मजबूत करना चाहिए ताकि अफवाहें इस तरह न फैलें।
नेताओं को भी यह समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति की मौत की खबर की पुष्टि किए बिना शोक जताना उनकी गरिमा के खिलाफ है।
क्योंकि वे समाज के रोल मॉडल होते हैं, और उनके बयान से लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
धर्मेंद्र जिंदा हैं — यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, एक चेतावनी है
यह पूरा घटनाक्रम सिर्फ एक फेक न्यूज नहीं, बल्कि चेतावनी है।
यह बताता है कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी याद करनी होगी।
जनता अब जाग चुकी है।
“धर्मेंद्र जिंदा हैं” सिर्फ राहत का वाक्य नहीं, बल्कि मीडिया की आंखें खोलने वाला बयान है।
अब समय आ गया है कि पत्रकारिता में “सत्य पहले” की संस्कृति लौटे।
अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ उस मीडिया पर कभी भरोसा नहीं करेंगी जिसने धर्मेंद्र जैसे जीवित कलाकार को मृत घोषित कर दिया था।
निष्कर्ष: फेक न्यूज से बड़ी कोई बीमारी नहीं
आज धर्मेंद्र झूठी मौत की घटना हमें यह सिखाती है कि फेक न्यूज किसी वायरस से कम नहीं।
यह समाज में भ्रम, तनाव और अविश्वास फैलाती है।
सच्ची पत्रकारिता वही है जो बिना सनसनी के सत्य को खोजे और जनता तक ईमानदारी से पहुंचाए।
धर्मेंद्र जिंदा हैं — और यह वक्त है जब मीडिया और नेताओं दोनों को अपने “जीवित विवेक” को भी जगाना होगा।
धर्मेंद्र की झूठी मौत पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
क्या सच में धर्मेंद्र का निधन हुआ था?
नहीं, धर्मेंद्र पूरी तरह स्वस्थ और जीवित हैं। सोशल मीडिया पर फैली खबर पूरी तरह झूठी थी।
धर्मेंद्र की झूठी मौत की खबर कैसे फैली?
सुबह कुछ फेक अकाउंट्स ने झूठा पोस्ट किया, जिसे कई चैनलों और नेताओं ने बिना पुष्टि के साझा कर दिया।
धर्मेंद्र ने अफवाह पर क्या कहा?
उन्होंने सोशल मीडिया पर मज़ाकिया लहजे में कहा— “कुत्तों, मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगा, अभी ज़िंदा हूँ मैं।”
क्या नेताओं ने भी बिना पुष्टि के ट्वीट किए?
हाँ, कई प्रमुख नेताओं ने धर्मेंद्र के निधन पर संवेदना प्रकट की, जबकि बाद में उन्होंने अपने पोस्ट हटा दिए।
इस घटना से पत्रकारिता को क्या सबक लेना चाहिए?
हर खबर को प्रकाशित करने से पहले सत्यापन आवश्यक है। सनसनी नहीं, सत्य ही पत्रकारिता का आधार होना चाहिए।