
📰 संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट, उत्तर प्रदेश
कभी-कभी कोई दृश्य इतना सहज और सच्चा होता है कि वह सीधे दिल में उतर जाता है। एक सादा-सा स्कूल, बच्चे ज़मीन पर बैठकर थालियों में मिड-डे-मील खा रहे हैं — और उनके बीच में एक नौजवान अधिकारी भी उसी मिट्टी पर बैठा है, बिल्कुल उनके जैसा, वही थाली, वही दाल-रोटी। बच्चों के चेहरों पर मुस्कान है, और अधिकारी के चेहरे पर अपनापन।
यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं, बल्कि वास्तविक तस्वीर है चित्रकूट के नए जिलाधिकारी पुलकित गर्ग की। आज जब सत्ता और जनता के बीच की दूरी अक्सर बढ़ती जा रही है, ऐसे समय में यह नज़ारा अपने आप में एक ताज़ी हवा का झोंका है।
बच्चों के बीच बैठा “अफसर” नहीं, “बड़ा भाई”
यह शुक्रवार की सुबह थी। चित्रकूट का विकास खण्ड कर्वी स्थित पीएम श्री कम्पोजिट विद्यालय कसहाई उस दिन कुछ अलग-सा लग रहा था। बच्चों में हलचल थी — खबर फैल चुकी थी कि जिलाधिकारी साहब आने वाले हैं। लेकिन जो हुआ, वह बच्चों की कल्पना से परे था।
जब जिलाधिकारी पुलकित गर्ग स्कूल पहुंचे, तो किसी ने नहीं सोचा था कि वे मंच पर बैठेंगे या कुर्सी पर। उन्होंने बच्चों के बीच जाकर कहा — “मैं यहीं बैठूंगा, आप सबके साथ।”
और फिर वे उसी फर्श पर बैठ गए, जहां बच्चे रोज़ बैठकर खाना खाते हैं। उनके सामने थाली रखी गई — अरहर की दाल, लौकी मिक्स सब्ज़ी और रोटी। उन्होंने मुस्कुराते हुए एक कौर लिया और बच्चों से बोले, “आपका खाना बहुत स्वादिष्ट है, बिल्कुल घर जैसा।”
बच्चों में खुशी की लहर दौड़ गई। शायद पहली बार किसी बड़े अफसर ने उनसे उनके भोजन पर बात की थी।
मुंशी प्रेमचंद से शुरू हुई बातचीत
खाने के दौरान जिलाधिकारी ने बच्चों से पूछा, “क्या आप लोगों ने मुंशी प्रेमचंद का नाम सुना है?” कुछ बच्चों ने हाथ उठाए, कुछ मुस्कुराए, कुछ चुप रहे।
उन्होंने कहा, “मैं वाराणसी से हूं, वहीं से जहां मुंशी प्रेमचंद रहते थे। उन्होंने गरीबों, किसानों और बच्चों की कहानियाँ लिखीं… जैसे तुम सबकी ज़िंदगी में भी कितनी कहानियाँ हैं।”
किसी ने कहा, “सर, आपने ‘ईदगाह’ पढ़ी है?” पुलकित गर्ग मुस्कुराए और बोले, “हाँ, और तुम सबके चेहरों में मुझे वही हमीद दिखता है जो दादी के लिए चिमटा खरीदता है।”
औचक निरीक्षण, मगर संवेदना के साथ
डीएम का यह दौरा महज एक औपचारिक निरीक्षण नहीं था। उन्होंने शिक्षकों की उपस्थिति जांची और कहा, “शिक्षक सिर्फ किताबों से नहीं, अपने आचरण से भी बच्चों को सिखाते हैं।”
खाने की गुणवत्ता खुद परखी
डीएम ने बच्चों की थाली में मिला वही खाना खुद भी खाया और कहा, “खाना अच्छा है, लेकिन इसे और पौष्टिक बनाया जा सकता है। यह बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य दोनों से जुड़ा है।”
कमियाँ भी देखीं, समाधान भी सुझाया
निरीक्षण के दौरान जब उन्होंने शौचालयों की गंदगी देखी, तो तुरन्त आदेश दिया — “शौचालय बच्चों के उपयोग में हैं, इन्हें रोज़ साफ कराया जाए। यह स्वच्छता नहीं, सम्मान का सवाल है।”
सुनना जानते हैं, बोलना नहीं थोपते
उन्होंने बच्चों से पूछा, “कौन रोज़ समय से स्कूल आता है?”, “किसे गणित सबसे पसंद है?” एक बच्ची बोली — “मैं बड़ी होकर मैडम बनूंगी।” जिलाधिकारी मुस्कुराए — “बहुत अच्छा, लेकिन उसके लिए रोज़ पढ़ना होगा।”
जिलावासियों ने कहा — “पहली बार ऐसा डीएम देखा”
स्कूल के बाहर लोग बोले — “इतना बड़ा पद और इतनी सादगी — यही असली नेतृत्व है।”
“जो नेता जनता के बीच जमीन पर बैठ सकता है, वही जनता के दिल में ऊँचाई पर बैठता है।”
एक दिन का दौरा, पर अमिट छाप
चित्रकूट जैसे धार्मिक जिले में डीएम पुलकित गर्ग का यह व्यवहार आने वाले दिनों में हर अधिकारी के लिए प्रेरणा बन सकता है। उन्होंने यह दिखाया कि प्रशासन केवल फाइलों का नहीं, भावनाओं का भी विषय है।
मानवता की सबसे ऊँची कुर्सी
उन्होंने यह साबित किया कि सबसे ऊँची कुर्सी वह होती है, जिस पर बैठकर कोई झुक सके। जब एक जिलाधिकारी बच्चों के साथ बैठकर रोटी तोड़ता है, तब वह शासन नहीं करता — सेवा करता है।
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