📰 सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
आज यानी 6 नवंबर 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान हो रहा है। इस निर्णायक दौर से पहले पिछले दस वर्षों के मतदान आंकड़े बताते हैं कि राज्य में मतदान दर में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है — और वह बदलाव सबसे अधिक ग्रामीण-शहरी मतदाता व्यवहार में दिखाई दे रहा है। जहां ग्रामीण इलाकों की भागीदारी बेहतर हुई है, वहीं राजधानी क्षेत्र पटना (और अन्य शहरी सीटों) पर उत्साह कम दिखाई दे रहा है। इस रिपोर्ट में हम उन प्रमुख डेटा-पॉइंट्स, कारणों और आगामी मतदान से जुड़ी संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. मतदान दर में 4 % तक की वृद्धि: गांव आगे
पिछले दस वर्षों में पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान दर (औसतन) में लगभग 4 % का इज़ाफा हुआ है: 2010 में यह लगभग 52.1% थी, जो अब लगभग 56.1% तक पहुंच गई है। यही नहीं, 112 में से 121 सीटों पर मतदान दर में वृद्धि दर्ज की गई है। यह दर्शाता है कि मतदान-उत्साह सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रहा बल्कि ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है।
यह वृद्धि मामूली नहीं है: 4 % का उछाल दर्शाता है कि लोकतांत्रिक भागीदारी में मजबूती आ रही है—विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में। यह परिवर्तन हमें यह संकेत देता है कि अब ग्रामीण वोट बैंक, मतदान के मामले में, शहरी वोट बैंक से कहीं अधिक सक्रिय हो चला है।
2. जिलावार रुझान: गया, नवादा और औरंगाबाद में भी बढ़ी भागीदारी
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में, केवल मुजफ्फरपुर और दरभंगा ही नहीं, बल्कि **गया**, **नवादा**, और **औरंगाबाद** जैसे दक्षिण बिहार के जिलों में भी ग्रामीण भागीदारी ने नया रिकॉर्ड बनाया।
उदाहरण के लिए, गया जिले में 2010 में औसत मतदान दर **51.8%** थी, जो 2015 में बढ़कर **55.2%** और 2020 में **57.6%** तक पहुँच गई। इसी तरह नवादा में 2010 के **49.3%** से 2020 में **56.9%** तक का उछाल देखने को मिला। औरंगाबाद में भी तीन चुनावों की औसत **55.5%** से ऊपर रही, जो राज्य औसत से बेहतर है। यह दर्शाता है कि दक्षिण और उत्तर — दोनों बिहार में ग्रामीण मतदाता अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मुख्य स्तंभ बन चुके हैं।
इन जिलों में महिला मतदाताओं की सक्रियता ने भी वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। 2020 में नवादा और गया दोनों जिलों में महिला मतदान दर पुरुषों से 2 से 3 प्रतिशत अधिक रही — यह रुझान अब 2025 के चुनाव में भी दोहराए जाने की संभावना है।
3. सबसे ज़्यादा और सबसे कम मतदान-क्षेत्र: स्थिरता vs गिरावट
डेटा बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में कुछ सीटों ने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया है। उदाहरण के लिए, मीनापुर (मुजफ्फरपुर जिले में) पिछले तीन चुनावों में लगातार 60% से ऊपर मतदान दर दर्ज कर रही है। वहीं, शहरी पटना की कुछ सीटें बेहद कम मतदान दर्ज करने वाली सूची में शामिल रही हैं।
– मीनापुर : 2020 में लगभग 65.3% वोटिंग।
– बोचाहा (SC) : ~ 65.1%
– कुरहनी : ~ 64.2%
– कांटी : ~ 63.3%
– सकरा (SC) : ~ 63.0%
ये सभी सीटें मुजफ्फरपुर जिले से थीं, और इस जिले की तीन-चुनावों की औसत लगभग 59.8% रही – जो पहले चरण की औसत से लगभग 10 % अधिक है।
इसके विपरीत, शहरी पटना की सीटों का वोटिंग स्तर चिंताजनक रूप से नीचे रहा है। उदाहरण के लिए:
– कुम्हरार : 2020 में केवल 35.3% वोटिंग (पूरे पहले चरण में सर्वाधिक न्यूनतम)
– बांकीपुर : ~ 35.9%
– दीघा : ~ 36.9%
कुल मिलाकर, ग्रामीण-उत्साह + शहरी गिरावट = मतदान में असमानता।
4. दरभंगा का उछाल-चक्र और ग्रामीण-विकास का संकेत
जहाँ मुजफ्फरपुर ने निरंतर उच्च भागीदारी दिखाई, वहीं दरभंगा जिले ने मतदान-उत्साह के मामले में सबसे तेज उछाल देखा है। 2010 में यहाँ की औसत वोटिंग केवल ~ 47.6% थी, जो 2020 तक बढ़कर ~ 56.4% हो गई है — यानी करीब 9 प्रतिशत का उछाल। यह इशारा देता है कि ग्रामीण विकास-सक्रियता, मतदाता संवाद और स्थानीय नेतृत्व ने वोटिंग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
5. शहरी पटना: लोकतंत्र से दूरी बनती जा रही है
जहाँ ग्रामीण इलाकों में मतदान उत्साह बढ़ रहा है, वहीं राजधानी पटना में शहरी सीटों की स्थिति चिंताजनक है। कुम्हरार में 2010 में ~ 37.3% वोटिंग थी, जो 2020 में घटकर ~ 35.3% रह गई। यानी शहरी-भागीदारी लगभग स्थिर नहीं बल्कि कम हो रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वोटर-उत्साह और मतदान-गतिविधि में शहरों की भूमिका कमजोर हो रही है।
6. मुकाबले की तीव्रता और मतदान दर का संबंध
यह आम धारणा है कि जब मुकाबला कड़ा होता है, तो मतदान बढ़ता है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ऐसा हर बार नहीं होता। 2020 में मतदान प्रतिशत और जीत के अंतर में नकारात्मक संबंध (-0.169) पाया गया। यानी जहाँ जीत का अंतर ज्यादा था, वहाँ भी मतदान अपेक्षाकृत अधिक रहा। उदाहरण के लिए, हिलसा (नालंदा) में केवल 12 मतों से जीत हुई, लेकिन वोटिंग मात्र 54.8% रही — जबकि मीनापुर और बोचाहा जैसी सीटों पर मुकाबला एकतरफा था, फिर भी वोटिंग 63-65% तक रही।
7. 6 नवंबर को क्या उम्मीद की जाए?
विगत दस सालों के रुझानों से यह उम्मीद है कि पहले चरण में औसत मतदान दर 56-57% के आसपास रहेगी। विशेष रूप से मुजफ्फरपुर, दरभंगा, गया और नवादा जैसे जिलों में **60% से ऊपर** वोटिंग संभव है। वहीं शहरी पटना की सीटों में 40% से नीचे मतदान की संभावना बनी हुई है।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के यह आंकड़े सिर्फ प्रतिशत नहीं हैं — यह लोकतंत्र की नई दिशा दिखा रहे हैं। गाँवों की बढ़ती भागीदारी और शहरों की घटती दिलचस्पी इस बात की पुष्टि करती है कि **ग्रामीण बिहार अब राजनीतिक रूप से कहीं अधिक सजग, सक्रिय और निर्णायक** बन चुका है। 6 नवंबर का मतदान सिर्फ सरकार नहीं, बल्कि मतदाता-मानसिकता की परीक्षा भी है।
प्रश्न-उत्तर (क्लिक करें-खोलें)
प्रश्न 1: पहले चरण में कितनी सीटों पर मतदान हो रहा है?
पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान हो रहा है।
प्रश्न 2: पिछले दस सालों में पहले चरण की औसत मतदान दर कितनी बढ़ी है?
2010 से 2020 के बीच पहले चरण की औसत मतदान दर 52.1% से बढ़कर 56.1% हुई है, लगभग 4% की वृद्धि।
प्रश्न 3: किस जिले ने लगभग 9% का सबसे बड़ा उछाल दिखाया है?
दरभंगा जिले ने 2010 में ~ 47.6% से 2020 में ~ 56.4% तक वृद्धि दर्ज की है।
प्रश्न 4: किन जिलों में ग्रामीण महिला मतदाताओं की भागीदारी सबसे अधिक रही?
गया, नवादा और दरभंगा जिलों में 2020 में महिला मतदान दर पुरुषों से 2-3% अधिक रही, जिससे कुल वोटिंग में बढ़ोतरी हुई।
प्रश्न 5: शहरी पटना की सबसे कम वोटिंग लगी सीट कौन-सी है?
कुम्हरार (पटना) में 2020 में केवल ~ 35.3% वोटिंग हुई थी, जो पहले चरण में सबसे कम थी।
प्रश्न 6: क्या ‘कड़ा मुकाबला’ वोटिंग बढ़ाने का मुख्य कारण है?
नहीं। 2020 के आंकड़ों में जीत के अंतर और मतदान दर के बीच नकारात्मक सम्बन्ध पाया गया है (-0.169), यानी मुकाबले की तीव्रता ही वोटिंग बढ़ने का पुष्टि-कारक नहीं है।