
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
जुनूनी इश्क़ ने बदल दी जिंदगी
उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे इलाके को हैरानी में डाल दिया। यहां एक महिला ने अपने पति और दो छोटे बच्चों को छोड़कर अपने प्रेमी का हाथ थाम लिया और मंदिर में शादी रचा ली। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस शादी को कराने वाला कोई और नहीं बल्कि महिला का पति ही था। यह कहानी जुनूनी इश्क़ का ऐसा रूप है जिसमें समाज के तमाम ताने-बाने और परंपराएँ किनारे कर दी गईं।
पति ने पत्नी की शादी खुद कराई
दरअसल, मामला धनघटा थाना क्षेत्र के कटार जोत गांव का है। यहां बबलू नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी राधिका को खुद उसके प्रेमी के हवाले कर दिया। पहले तो बबलू ने पत्नी के साथ कोर्ट से नोटरी कराई और फिर मंदिर में उसके प्रेमी के साथ शादी कराई। इस पूरी प्रक्रिया में वह खुद गवाह बनकर खड़ा रहा।

आमतौर पर ऐसे मामलों में समाज में तनाव, झगड़े और यहां तक कि हत्या जैसी घटनाएँ भी सुनने को मिलती हैं। मगर बबलू ने शांतिपूर्ण तरीके से एक अलग राह चुनकर सबको चौंका दिया। इस पूरे घटनाक्रम ने जुनूनी इश्क़ को एक अलग ही पहचान दे दी।
नौ साल की शादी टूटी, दो बच्चे छूटे
राधिका की शादी साल 2017 में हुई थी। शादी के आठ वर्षों में उसके दो बच्चे हुए – सात साल का आर्यन और दो साल की शिवानी। परिवार सामान्य तरीके से जीवन गुजार रहा था। मगर धीरे-धीरे राधिका का झुकाव गांव के ही एक युवक की ओर बढ़ गया। यह रिश्ता छुपा नहीं रह सका और धीरे-धीरे पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गया।
जब यह बात पति बबलू को मालूम हुई तो उसने पहले पत्नी को समझाने का प्रयास किया। मगर पत्नी ने स्पष्ट कर दिया कि उसका दिल अब उसके प्रेमी के लिए धड़कता है और वह उसी के साथ जीवन बिताना चाहती है। यही वह पल था जब पति ने समाज के सामने फैसला लिया कि पत्नी अपनी राह खुद चुने।
जुनूनी इश्क़ की जिद और पति का बड़ा दिल
जब पत्नी ने प्रेमी संग जीवन बिताने की इच्छा जताई, तब पति ने न सिर्फ उसका फैसला स्वीकार किया बल्कि बच्चों की जिम्मेदारी भी खुद उठाने का निश्चय किया। उसने कहा—
“तुम्हारा हक है कि अपने दिल की सुनो। बच्चों को मैं खुद पाल लूंगा।”
यह सुनकर समाज भी दंग रह गया। पत्नी ने भी बच्चों को छोड़ने में कोई आपत्ति नहीं जताई और प्रेमी संग नई जिंदगी शुरू करने निकल पड़ी। इस दौरान पति ने पूरे गांव के सामने उसकी शादी कराई और खुद अपने हाथों से पत्नी को प्रेमी को सौंप दिया।
समाज के लिए एक आईना
इस पूरे मामले ने समाज में हलचल मचा दी। लोग कहते हैं कि आजकल ऐसे रिश्तों का अंत अक्सर खून-खराबे या कोर्ट-कचहरी में होता है। मगर यहां जुनूनी इश्क़ के आगे पति ने अपनी भावनाओं को किनारे रख दिया और इंसानियत का रास्ता चुना।
यह घटना समाज को सोचने पर मजबूर करती है—
क्या सचमुच प्यार इतना ताकतवर है कि वह पति-पत्नी, बच्चों और पूरे परिवार को पीछे छोड़ सकता है?
क्या बच्चों के जीवन से माँ की अनुपस्थिति उनकी मासूम दुनिया को प्रभावित नहीं करेगी?
जुनूनी इश्क़ : संदेश या सवाल?
जहां एक ओर यह घटना पति की महानता और उसके बड़े दिल को दिखाती है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठाती है कि मासूम बच्चों का क्या होगा। सात साल का बेटा और दो साल की बेटी अपनी माँ से दूर होकर पिता की जिम्मेदारी में पलेंगे। यह घटना आने वाले समय में उनके मानसिक और भावनात्मक जीवन पर गहरा असर डाल सकती है।
फिर भी, यह कहानी इस बात का भी सबूत है कि समाज में रिश्तों को जबरन निभाने की बजाय आपसी सहमति और शांति से भी हल निकाला जा सकता है।
जुनूनी इश्क़ का सबक
जुनूनी इश्क़ का यह मामला संत कबीरनगर से निकलकर पूरे प्रदेश और देश में चर्चा का विषय बन चुका है। पति बबलू ने यह साबित कर दिया कि इंसान चाहें तो परिस्थितियों को खूनी मोड़ देने के बजाय शांति और सहमति से भी सुलझा सकता है। हालांकि, इसमें दो मासूम बच्चों की जिंदगी एक बड़ा सवाल बनकर खड़ी है।
यह घटना एक तरफ प्रेम की ताकत को दर्शाती है, तो दूसरी तरफ रिश्तों की नाजुकता को भी उजागर करती है। समाज को इससे यह सीख मिलती है कि कभी-कभी सच्चाई का सामना करना, उसे स्वीकारना और शांति से निर्णय लेना ही सबसे बड़ा साहस होता है।
