चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
हमीरपुर जिला महिला अस्पताल में सीएमएस की विदाई के नाम पर अस्पताल प्रांगण में हुआ रंगारंग कार्यक्रम, ढोल की थाप पर डांस करते नजर आए स्टाफ, मरीजों को मिली उपेक्षा। अब वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन ने जांच बैठाई है।
उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज से अधिक अब जश्न और आयोजन प्राथमिकता बनते जा रहे हैं। ताजा मामला हमीरपुर जिले के जिला महिला अस्पताल का है, जहां सीएमएस डॉ. अंजुला गुप्ता की वीआरएस के बाद विदाई समारोह का आयोजन इतना भव्य हो गया कि अस्पताल परिसर साइलेंट जोन से मिनी मैरिज हॉल में तब्दील हो गया।
🎶 ढोलक की थाप पर डॉक्टर और नर्स, मरीजों की सुध लेने वाला कोई नहीं!
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जिस अस्पताल को साइलेंट ज़ोन घोषित किया गया है, वहीं पर ढोल-नगाड़े बजाए गए। अस्पताल के अंदर घंटों तक जश्न का शोर गूंजता रहा और वहीं दूसरी ओर इलाज के लिए आए मरीज बेबस और असहाय से इधर-उधर भटकते नजर आए।
स्थानीय लोगों का कहना है, “जहां एक ओर अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ अक्सर परिजनों को मामूली शोर पर भी डांट देता है, वहीं स्टाफ खुद ढोल की धुन पर झूमता नजर आया। क्या यही है सरकारी सेवा भावना?”
🌸 फूल-मालाएं और नाच-गाना, सरकारी सेवा की विदाई या संवेदनशीलता की विदाई?
डॉ. अंजुला गुप्ता के वीआरएस लेने के बाद विदाई समारोह आयोजित किया गया, जिसमें पूरे स्टाफ ने फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया। फिर बारी आई जश्न की – अस्पताल के गलियारे में ढोलक बजाए गए, भांगड़ा हुआ और पूरे स्टाफ ने डांस कर माहौल को जश्न में बदल दिया।
इस बीच अस्पताल में मौजूद मरीजों और उनके परिजनों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा। नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर डांस में व्यस्त रहे, और कई मरीज उपचार के इंतज़ार में परेशान होते रहे।
📱 वायरल वीडियो से खुली पोल, अब प्रशासन की नींद टूटी
यह सब तब और ज्यादा गंभीर हो गया जब कार्यक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि अस्पताल की दीवारों के भीतर स्वास्थ्यकर्मी बिना किसी संकोच के ठुमके लगा रहे हैं और सैकड़ों की संख्या में स्टाफ इसका आनंद ले रहा है।
वीडियो के वायरल होते ही स्वास्थ्य विभाग की किरकिरी शुरू हो गई। इसके बाद सीएमओ डॉ. गीतम सिंह ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि—
क्या इतने बड़े आयोजन की खबर स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों को पहले नहीं मिली थी?
🔍 सवालों के घेरे में अस्पताल प्रशासन
इस पूरे प्रकरण ने स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। जिन अस्पतालों में मरीजों की फुसफुसाहट पर भी परिजनों को डांट मिलती है, वहां एक सीएमएस की विदाई पर शोर और भांगड़ा माफ कर दिया जाता है। क्या यह दोहरी मानसिकता नहीं है?
इसके अलावा यह भी जांच का विषय है कि क्या अस्पताल में इस प्रकार का कोई कार्यक्रम करने की अनुमति ली गई थी? और यदि नहीं, तो फिर इसमें शामिल तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका पर सवाल उठना लाज़मी है।
📌 इलाज का मंदिर या उत्सव स्थल?
आज जब देश के ग्रामीण और ज़िला अस्पतालों की हालत पर सवाल उठते हैं, तब हमीरपुर जैसा उदाहरण यह स्पष्ट कर देता है कि व्यवस्थाएं अंदर से खोखली हो चुकी हैं। सरकारी नौकरी से विदाई एक व्यक्तिगत क्षण हो सकता है, लेकिन यदि वह जनहित और मरीजों के स्वास्थ्य पर भारी पड़े, तो यह सिर्फ एक लापरवाही नहीं, संवेदनहीन अपराध बन जाता है।
📢 पाठकों के लिए सवाल:
क्या आप मानते हैं कि सरकारी अस्पतालों में ऐसे निजी आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए?
अपना विचार हमें नीचे कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखें।