Wednesday, August 6, 2025
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ई तो गजबे हो गया.. गांव की आबादी 5200, प्रमाणपत्र जारी किया गया 5893,” सरकारी पोर्टल पर गड़बड़ी या संगठित फर्जीवाड़ा?

उन्नाव के निमादपुर गांव में 5200 की आबादी के बावजूद 5893 जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होने का मामला सामने आया है। जानिए कैसे सरकारी पोर्टल पर फर्जीवाड़ा कर बड़ा घोटाला किया गया, प्रशासन ने जांच शुरू की।

ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से एक बेहद चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है, जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि राज्य स्तर पर भी हलचल मचा दी है। हसनगंज ब्लॉक की ग्राम पंचायत निमादपुर, जिसकी कुल आबादी महज 5200 है, वहां से 5893 जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होने का मामला प्रकाश में आया है। जाहिर है कि यह संख्या गांव की कुल जनसंख्या से भी अधिक है, जिससे यह संदेह और गहराता है कि कहीं यह कोई संगठित फर्जीवाड़ा तो नहीं?

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🔎 कैसे हुआ खुलासा?

इस अनियमितता का पर्दाफाश तब हुआ जब केंद्र सरकार के जनगणना निदेशालय ने संबंधित जिलों से प्रमाणपत्रों की संख्या को लेकर डेटा मांगा। आंकड़ों के विश्लेषण में जब यह सामने आया कि एक छोटे से गांव से ही 5893 प्रमाणपत्र जारी हो चुके हैं, तो प्रशासन को शक हुआ और जिलाधिकारी गौरांग राठी ने तत्काल जांच के आदेश दिए। 

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🧾 मकूर पंचायत भी संदेह के घेरे में

केवल निमादपुर ही नहीं, नवाबगंज ब्लॉक की ग्राम पंचायत मकूर से भी 320 संदिग्ध प्रमाणपत्र जारी होने की जानकारी मिली है। इससे यह साफ हो गया कि यह कोई एकल मामला नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर हुई प्रणालीगत गड़बड़ी हो सकती है।

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📂 जांच शुरू, सचिवों को थमाए गए नोटिस

प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) आलोक सिन्हा ने दोनों पंचायतों के सचिवों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। फिलहाल, 01 जनवरी से 15 जुलाई 2025 के बीच जारी कुल 6213 प्रमाणपत्रों की जांच चल रही है।

🖥️ तकनीकी पहलू और संभावित साइबर सेंध

प्रशासन इस बात की भी तह में जा रहा है कि कहीं सीआरएस पोर्टल (नागरिक पंजीकरण प्रणाली) की आईडी हैक कर फर्जी प्रमाणपत्र तो नहीं बनाए जा रहे?

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डीपीआरओ आलोक सिन्हा ने कहा,

“जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्रों की प्रणाली तकनीकी रूप से मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) कार्यालय के नियंत्रण में होती है। इसलिए हमने सीएमओ को भी पत्र भेजा है। जवाब आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।”

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यदि इस जांच में यह बात सामने आती है कि आईडी हैकिंग के माध्यम से फर्जीवाड़ा हुआ है, तो न केवल एफआईआर दर्ज की जाएगी, बल्कि तकनीकी एजेंसियों की मदद से डिजिटल ट्रेसिंग भी शुरू की जाएगी।

🧠 संभावित लाभ और धोखाधड़ी के उद्देश्य

विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्रों का इस तरह से दुरुपयोग किसी न किसी प्रशासनिक लाभ या आर्थिक अनुदान लेने के लिए किया जा सकता है।

जैसे:

  • मृतक के नाम पर पेंशन या बीमा क्लेम
  • फर्जी जन्म प्रमाणपत्र से शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश
  • सरकारी योजनाओं में डुप्लीकेट लाभ लेने का प्रयास

🛑 यह एक अकेला मामला नहीं हो सकता…

प्रशासनिक हलकों में इस बात को लेकर भी चिंता जताई जा रही है कि अगर निमादपुर और मकूर जैसे गांवों में ऐसा हो सकता है, तो कहीं यह प्रदेशभर में फैला एक बड़ा नेटवर्क तो नहीं?

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डीपीआरओ ने यह भी संकेत दिया है कि जांच पूरी होने के बाद यदि आवश्यक हुआ तो जिला स्तर से राज्य स्तर तक व्यापक ऑडिट कराया जाएगा।

📣 अब आगे क्या?

  • जांच के बाद दोषी पाए जाने पर पंचायत सचिवों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई
  • यदि आईडी हैकिंग सिद्ध होती है तो साइबर अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज
  • सीएमओ कार्यालय से प्राप्त तकनीकी रिपोर्ट के आधार पर उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट सौंपना
  • संभावित तौर पर सीआरएस पोर्टल की सुरक्षा को और सख्त किया जाना

यह पूरा मामला न केवल एक प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि यह भी बताता है कि डिजिटल प्रणाली का दुरुपयोग किस हद तक हो सकता है। एक गांव की आबादी से अधिक प्रमाणपत्रों का जारी होना देश की जनगणना, स्वास्थ्य रिकॉर्ड और योजना प्रबंधन प्रणाली पर भी सवाल खड़ा करता है।

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अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन इस मामले में सिर्फ कागजी जांच कर खानापूर्ति करता है या वास्तविक दोषियों तक पहुंच कर उन्हें सजा दिलाने का साहस दिखाता है।

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