काशी में गंगा के उफान से 10 हजार से अधिक नाविकों की रोज़ी-रोटी पर संकट गहराया। प्रशासन ने नाव संचालन पर रोक लगाई, जिससे मांझी समाज कर्ज और लाचारी के जाल में फंस गया है। पढ़िए एक मार्मिक रिपोर्ट।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
🌊 वाराणसी। काशी में इस समय गंगा उफान पर है और प्रशासन ने एहतियातन सभी नावों के संचालन पर रोक लगा दी है। ऐसे में दशाश्वमेध से लेकर अस्सी घाट तक फैले 84 घाटों पर नाव चलाने वाले करीब 10 हजार नाविकों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
इनमें से अधिकांश मांझी और निषाद समाज के हैं—जिनकी पीढ़ियाँ गंगा से ही पेट पालती आई हैं। अब जब गंगा की लहरें विकराल हो चुकी हैं, तब इनकी आर्थिक स्थिति भी बुरी तरह डगमगा गई है।
💬 “पत्नी की सिकड़ी बेचकर कर्जा लिया था, अब फिर वही करना पड़ेगा”
42 वर्षीय राजू साहनी दशाश्वमेध घाट पर एक छोटी सी नाव चलाते हैं। वे बताते हैं—
“2018 में पत्नी की सिकड़ी और अंगूठी बेचकर कर्ज लिया था, आज तक ब्याज ही चुका पा रहा हूं। अब लगता है फिर से उधार लेना पड़ेगा।”
राजू की नाव दशाश्वमेध घाट पर रस्सियों से बंधी खड़ी है, गंगा इस समय 68 मीटर के ऊपर बह रही है और प्रशासन ने नाव संचालन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
राजू कहते हैं— “बच्चों की फीस, दवाइयां, सब्जी—सब कुछ ठप हो गया है। दिमाग काम नहीं करता कि आगे क्या करें।”
🤝 यह सिर्फ राजू की नहीं, पूरे समाज की व्यथा है
यह दर्द सिर्फ राजू का नहीं, बल्कि मांझी समाज के हज़ारों नाविकों का है।
‘मां गंगा निषादराज सेवा न्यास’ के अध्यक्ष प्रमोद मांझी बताते हैं कि नगर निगम में 1,220 नावों का पंजीकरण है, लेकिन 2,000 से अधिक नावें घाटों पर चलती हैं, और एक-एक नाव पर दो-तीन लोग शिफ्ट में काम करते हैं। कुल मिलाकर करीब 10 हजार लोग इस काम से जुड़े हैं।
⚖️ “किसानों को मुआवजा मिलता है, नाविकों को क्यों नहीं?”
प्रमोद मांझी सवाल उठाते हैं:
“जब किसानों को बाढ़ से फसल बर्बाद होने पर मुआवजा दिया जाता है, तो हम गंगा-पुत्रों को क्यों नहीं?”
“राजनीति में हमारे वोट की अहमियत है, पर हमारी ज़िंदगी का क्या?”
वे आरोप लगाते हैं कि सरकार सिर्फ “गंगा पुत्र” कहकर भावनात्मक खेल खेलती है, लेकिन जब नाविकों को मदद की जरूरत होती है तो सब मौन साध लेते हैं।
🎙️ मंत्री का जवाब और नाविकों की नाराज़गी
उत्तर प्रदेश सरकार में मत्स्य विभाग के मंत्री डॉ. संजय निषाद ने दावा किया कि
“प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के तहत दो-दो हज़ार रुपये की मदद दी जा रही है।”
लेकिन नाविकों का कहना है कि ये कोरी बातें हैं।
शिवाला घाट के नाविक बसंत साहनी कहते हैं—
“कोई कैंप नहीं लगा, कोई अधिकारी घाट पर नहीं आया। मंत्री जी सर्किट हाउस से बयान देकर चले जाते हैं।”
प्रमोद मांझी तो और भी कड़े शब्दों में कहते हैं—
“डॉ. संजय निषाद ने एससी आरक्षण से लेकर मुआवज़े तक हर मोर्चे पर समाज को छला है। वो मंत्री समाज की ताकत से बने, पर अब उसी समाज को तुच्छ समझते हैं।”
📉 90% नाविकों की कमाई 10 हज़ार मासिक से भी कम
दशाश्वमेध घाट के नाविक शंभू मांझी बताते हैं कि
“10-12 हज़ार रुपए महीने की कमाई करने वाले नाविकों की संख्या 90% है।”
उनका कहना है कि मां गंगा आज भी अपने बेटों को पालती हैं, लेकिन अब क्रूज़ शिप्स जैसे आधुनिक साधनों ने आम नाविकों की रोटी पर भी संकट खड़ा कर दिया है।
⚠️ जब नावें खड़ी हैं, तब भी चल रहा है क्रूज
नाविकों का गुस्सा सिर्फ मौसम पर नहीं, बल्कि सरकार और नीतियों पर भी है।
जब घाटों पर साधारण नावें चलना बंद हैं, तब सरकार की ओर से क्रूज शिप का संचालन बदस्तूर जारी है।
यहां प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि असमानता की कहानी दिखाई देती है।
💔 “हमारे पिता-दादा ने भी इसी तरह जिया”
बसंत साहनी बताते हैं कि
“बैंक लोन नहीं मिलता, कागज-पत्र का झंझट बहुत है। इसलिए हम आस-पड़ोस से दो परसेंट ब्याज पर पैसा उधार लेते हैं।”
बसंत के पिता केदार मांझी और दादा भोला मांझी भी नाविक थे।
उनका कहना है— “हमारा समाज अभिशप्त है। हम हर साल बाढ़ के दो महीने उधार लेकर ही जीते हैं और सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
📌 गंगा की लहरें जितनी तेज़, नाविकों का दर्द उतना ही गहरा
वाराणसी के घाटों पर जहां एक ओर गंगा बह रही है, वहीं दूसरी ओर नाविकों की ज़िंदगियां ठहरी हुई हैं।
सरकार की योजनाएं कागजों पर हैं और ज़मीनी स्तर पर नाविक उधार की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं।
समाज का यह वर्ग, जो सदियों से काशी की पहचान का हिस्सा रहा है, आज अपनी अस्तित्व रक्षा की लड़ाई लड़ रहा है।
📌 क्या सरकार नाविकों के लिए भी ‘आपदा राहत’ जैसी ठोस योजना लाएगी या मांझी समाज हर साल यूं ही उधारी में डूबता रहेगा?
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