चित्रकूट के रैपुरा थाना क्षेत्र में लोधी समाज के लोगों को ठाकुरों की बराबरी करने और नाम के आगे ‘सिंह’ लगाने पर जान से मारने की धमकी दी गई। पीड़ितों ने पुलिस अधीक्षक को सौंपा ज्ञापन, जातीय घमंड और सामाजिक असमानता पर उठे गंभीर सवाल।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)। जातिवाद की जड़ें देश में कितनी गहरी हैं, इसकी एक भयावह तस्वीर चित्रकूट जनपद के रैपुरा थाना क्षेत्र के ग्राम लौढ़िया माफी से सामने आई है। यहां लोधी समाज के कुछ लोगों को केवल इसलिए जान से मारने की धमकी दी जा रही है क्योंकि उन्होंने अपने नाम के आगे ‘सिंह’ लिख लिया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, रामेश्वर प्रसाद सिंह नामक व्यक्ति ने पुलिस अधीक्षक को एक लिखित ज्ञापन सौंपा है, जिसमें गांव के ही दबंग अनूप सिंह और उनके साथियों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। ज्ञापन में बताया गया है कि ठाकुर जाति के कुछ प्रभावशाली लोगों ने सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से यह चेतावनी दी है कि “यदि कोई लोधी समाज का व्यक्ति अपने नाम के आगे सिंह लगाएगा या ठाकुरों जैसी वेशभूषा में रहेगा, तो उसे मौत को गले लगाना पड़ेगा।”
धमकियों की हद: सोशल मीडिया से लेकर आमने-सामने तक गालियां और हिंसा की धमकी
एक ओर जहां सोशल मीडिया आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का माध्यम है, वहीं दूसरी ओर इसका इस्तेमाल अब जातीय श्रेष्ठता जताने और धमकियां देने के लिए हो रहा है। अनूप सिंह नामक व्यक्ति ने फेसबुक पर पोस्ट कर स्पष्ट कहा—
“लोधी समाज के लोग अपने नाम के आगे ठाकुर या सिंह न लगाएं, ठाकुरों की बराबरी मत करें।”
जब रामेश्वर प्रसाद और उनके साथियों ने इस आपत्तिजनक पोस्ट का विरोध किया और शांति के साथ समझाने की कोशिश की, तो दबंगों का गुस्सा और बढ़ गया। अनूप सिंह और उनके परिवार के सदस्यों सहित गंभीर सिंह, अरुण प्रताप सिंह, राम विनोद सिंह, मोहित सिंह और राजा सिंह ने मिलकर पीड़ितों को मां-बहन की गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी दी।
पिपरौद जैसी वारदात की धमकी: क्या फिर दोहराई जाएगी मौत की कहानी?
यह मामला और अधिक चिंताजनक तब हो जाता है जब इन लोगों द्वारा मऊ थाना क्षेत्र के पिपरौद गांव की घटना का हवाला दिया गया, जहाँ खंगार समाज के एक व्यक्ति को केवल नाम के आगे सिंह लगाने के कारण मौत के घाट उतार दिया गया था।
यही नहीं, धमकियों में स्पष्ट रूप से कहा गया—
“अगर चुनाव में खड़े हुए तो जिंदा दफना देंगे… ठाकुरों की बराबरी करने की औकात नहीं है।”
लोधी समाज की पीड़ा: क्या चुनाव लड़ना भी अब जाति पूछकर तय होगा?
पीड़ित रामेश्वर प्रसाद सिंह ने पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि अगर तत्काल प्रभाव से इन जातिवादी दबंगों पर कार्यवाही नहीं हुई, तो यह विवाद किसी भी दिन हिंसक रूप ले सकता है। लोधी समाज के लोगों ने चिंता जताई है कि यदि इसी तरह का जातीय दमन जारी रहा, तो आने वाले समय में सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से टूट सकता है।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल: क्या जातीय वर्चस्व को खुली छूट दी जा रही है?
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन केवल ज्ञापन लेकर चुप बैठ जाएगा? क्या किसी को नाम के आगे ‘सिंह’ लगाने या चुनाव लड़ने से केवल उसकी जाति के आधार पर रोका जा सकता है? यदि नहीं, तो फिर इन धमकियों पर अब तक कोई कड़ी कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों का कहना है कि यह मामला केवल जातीय टकराव का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता पर हमला है। अगर कोई व्यक्ति अपने नाम में किसी उपनाम का प्रयोग करता है, तो वह उसका व्यक्तिगत अधिकार है, न कि किसी जाति विशेष की संपत्ति।
जातीय घमंड बनाम सामाजिक समरसता
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समाज में अभी भी जातीय अहंकार और श्रेष्ठता की भावना किस कदर ज़िंदा है। जब किसी को नाम रखने या चुनाव लड़ने तक की धमकी दी जाती है, तो यह न सिर्फ कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर भी आघात है।
अब यह देखना बाकी है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन इस पूरे मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं। यदि दोषियों पर सख्त कार्यवाही नहीं होती, तो आने वाले दिनों में इस तरह की घटनाएं और भयावह हो सकती हैं।
लोकतंत्र में हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार है— फिर चाहे वो नाम हो, पहनावा हो या चुनाव में हिस्सा लेने का अधिकार। जातीय घमंड को चुनौती देना प्रशासन और समाज दोनों की नैतिक जिम्मेदारी है।