संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
गोरखपुर के एक अजीबो-गरीब मामले में एक व्यक्ति को अपने गांव “इस्लामपुर” का नाम पसंद नहीं आया। उसने गांव का नाम बदलवाने के लिए चुनाव लड़ा, प्रशासन से गुहार लगाई और अब मुख्यमंत्री से मिलने की ज़िद पर हिरासत में लिया गया है। पढ़िए पूरी कहानी।
जहां नाम बन गया जुनून: गोरखपुर से अजब गज़ब किस्सा
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है जो चौंकाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करता है। यहां गुलरिहा थाना क्षेत्र के निवासी श्याम तिवारी नामक एक व्यक्ति को अपने गांव का नाम ‘इस्लामपुर’ पसंद नहीं आया। इस नाम से उसे इतनी आपत्ति थी कि उसने गांव छोड़ने से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने की ज़िद तक, हर संभव प्रयास कर डाले।
गांव का नाम बना जी का जंजाल
दरअसल, श्याम तिवारी का मानना है कि उनके गांव में 98 प्रतिशत हिंदू आबादी है, ऐसे में गांव का नाम ‘इस्लामपुर’ होना उन्हें मानसिक तौर पर आहत करता है। इसी कारण उन्होंने चार साल पहले अपने परिवार के साथ गांव छोड़ दिया। उन्होंने गांव का नाम बदलकर सीतारामपुर रखने की मांग की और इसके लिए उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर कई प्रयास किए।
उन्होंने 2024 में आईजीआरएस पोर्टल पर शिकायत दर्ज कर लिखित रूप में कहा,
“गांव में भारी हिंदू बहुलता होने के बावजूद उसका नाम इस्लामपुर क्यों है?”
उन्होंने अपनी पीड़ा इस रूप में व्यक्त की कि वह बीते चार वर्षों से गांव छोड़कर बाहर रह रहे हैं।
चुनाव लड़ा, वादा किया — लेकिन हारे
श्याम तिवारी की जिद यहीं नहीं रुकी। उन्होंने पिछले पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा और गांव वालों से वादा किया कि यदि वह जीतते हैं तो गांव का नाम अवश्य बदलवाएंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश, वे चुनाव हार गए।
और जब उन्होंने हार का कारण गांव वालों से पूछा, तो उन्हें जवाब मिला,
“पहले नाम बदलवाओ, तब जिताएंगे।”
हर बार नया तरीका, हर बार निराशा
इसके बाद से श्याम तिवारी ने हर संभव रास्ता अपनाया — दस्तावेज़ी शिकायतों से लेकर व्यक्तिगत प्रयासों तक। लेकिन राजस्व संहिता में ग्राम सभा का नाम बदलने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, इसी आधार पर उनकी हर अर्जी को प्रशासन ने खारिज कर दिया।
अब मुख्यमंत्री से मिलने की जिद
सब प्रयास विफल होने पर श्याम तिवारी ने इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे मुलाकात का मन बना लिया। वे कानपुर से लखनऊ पहुंचे और मुख्यमंत्री कार्यालय में जबरन मुलाकात की ज़िद पर अड़ गए। पुलिस और अधिकारियों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन वह टस से मस नहीं हुए।
नतीजतन, उन्हें गौतमपल्ली थाना पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया और शांति भंग करने के आरोप में चालान कर दिया गया।
यह जिद है या जुनून?
यह घटना केवल एक व्यक्ति की असहमति नहीं है, बल्कि यह नाम, पहचान और सामाजिक मान्यताओं के टकराव की एक मिसाल बन गई है। किसी को गांव का नाम इतना अस्वीकार्य लग सकता है कि वह अपना घर छोड़ दे, चुनाव लड़े और मुख्यमंत्री तक पहुंच जाए— यह अपने आप में एक अजीब कहानी है।
प्रशासन की दुविधा भी वाजिब
गौरतलब है कि प्रशासन की भी अपनी सीमाएं हैं। ग्राम सभा का नाम बदलने के लिए केवल जनभावना पर्याप्त नहीं होती, बल्कि इसके लिए विधिक प्रक्रिया, ऐतिहासिक संदर्भ और व्यापक सहमति आवश्यक होती है। ऐसे में श्याम तिवारी की भावनाओं को समझा तो जा सकता है, लेकिन उनकी मांग को नियमों से परे जाकर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
नाम में क्या रखा है? शायद सब कुछ…
श्याम तिवारी का यह मामला दिखाता है कि किस तरह किसी व्यक्ति के लिए ‘नाम’ केवल एक पहचान नहीं बल्कि आत्मसम्मान और अस्तित्व का सवाल बन सकता है। हालांकि, इस जिद ने उन्हें बार-बार निराश किया है, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
अब यह देखना होगा कि क्या भविष्य में प्रशासन या सरकार उनके आग्रह पर विचार करेगा, या फिर यह मामला एक अजीब किंतु महत्वपूर्ण सामाजिक विमर्श का विषय बनकर रह जाएगा।