जगदम्बा उपाध्याय की रिपोर्ट
आजमगढ़। विश्व पर्यावरण दिवस पर द मीडिएटर इंफोमिडिया द्वारा 2003 से जारी हरित पहल—एक दिन, दो पेड़, सेवा और जनजागरूकता के संकल्प के साथ आजमगढ़ से मुंबई तक फैली मुहिम की विस्तृत रिपोर्ट।
हर वर्ष 5 जून को जब दुनिया पर्यावरण के महत्व को रेखांकित करने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाती है, तब उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में एक संस्था ‘द मीडिएटर इंफोमिडिया’ (ABCD, MBCD, BBCD) चुपचाप और संकल्पित होकर एक हरित क्रांति की नींव मजबूत कर रही है।
यह पहल किसी प्रचार की मोहताज नहीं, बल्कि एक आंतरिक प्रेरणा से उपजी है—”दो ही पेड़ लगें, साल में एक दिन ही सही, लेकिन उसकी सेवा हो और वह बढ़े।” इसी सोच के साथ वर्ष 2003 में आजमगढ़ के महिला अस्पताल परिसर में दो पौधे लगाए गए।
समय के साथ, ये पौधे न सिर्फ पेड़ बने बल्कि उन मरीजों और तीमारदारों के लिए राहत की छांव भी बने जो अस्पताल के आंगन से गुजरते हैं। यहीं से एक कारवां चला जो आज भी रुका नहीं।
गांव-गांव, साल-दर-साल: जहां हर साल कुछ हरा हुआ…
इस अभियान की ख़ास बात यह है कि यह केवल एक औपचारिक वृक्षारोपण नहीं, बल्कि स्थायित्व और सेवा का प्रतीक है।
इन वर्षों में संस्था ने अनेक स्थलों पर वृक्ष लगाए:
2004 – जयरामपुर
2006 – रैदोपुर
2007 – अराजी बाग
2009 – दलाल घाट
2019 – मतौलिपुर
2020 – कोविड काल में ऑनलाइन पौधारोपण (आजमगढ़ से लेकर मुंबई तक एक ही समय पर)
यही नहीं, 2020 में जब दुनिया लॉकडाउन में कैद थी, तब ‘द मीडिएटर’ ने डिजिटल माध्यम से एक बड़ा ऑनलाइन पौधारोपण आयोजन किया। इससे न केवल हरियाली बढ़ी, बल्कि जागरूकता की लहर भी चली।
🌏 सिर्फ पेड़ नहीं, विचार भी लगाए गए…
यह संस्था सिर्फ पौधे नहीं लगाती, बल्कि विचारों के बीज भी बोती है। समय-समय पर:
पर्यावरण विषयक पत्रिकाएं
जन गोष्ठियां
ऑनलाइन वेबिनार
जन आंदोलन
आदि के माध्यम से समाज को जागरूक किया गया है।
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए…
द मीडिएटर इंफोमिडिया की यह पंक्ति—“मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए”—कोरा नारा नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन का सार है। जब लोग एक दिन के लिए भी पौधा लगाते हैं और उसकी देखभाल का वादा करते हैं, तब एक परिवर्तन की नींव रखी जाती है।
आज जबकि जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और पेड़ कटाई जैसी समस्याएं विकराल रूप ले रही हैं, ऐसे में इस संस्था की यह ‘मौन क्रांति’ प्रेरणा देने वाली है।
यह आंदोलन दिखाता है कि बड़े बदलाव के लिए बड़ी भीड़ की नहीं, बल्कि एक स्पष्ट सोच और निरंतर सेवा की आवश्यकता होती है।
अगर हर गांव, हर मोहल्ला यह सोच ले कि “कम से कम दो पौधे, पूरे मन से सेवा”, तो देश को फिर से हराभरा बनने में देर नहीं लगेगी।