रायबरेली की राजनीति में हलचल! उद्यान मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए आलोचकों को दिया करारा जवाब। संघर्षों और उपलब्धियों को गिनाते हुए बोले—”मैं नालायक ही सही, पर अपनी औकात खुद बनाई है।”
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान मंत्री और रायबरेली की राजनीति में भाजपा का चर्चित चेहरा, दिनेश प्रताप सिंह, इन दिनों न केवल अपने बयानों बल्कि एक भावनात्मक फेसबुक पोस्ट के कारण सुर्खियों में हैं। उन्होंने यह पोस्ट उन आलोचकों के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी है, जो सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से उनकी राजनीतिक “औकात” पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
🔷 फेसबुक पर लिखा खुला पत्र — आलोचनाओं से आहत, पर आत्मगौरव से परिपूर्ण
शुक्रवार देर रात दिनेश प्रताप सिंह ने एक लंबा फेसबुक पोस्ट लिखकर अपने दिल की बात साझा की। शुरुआत उन्होंने गीता के प्रसिद्ध श्लोक “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…” से की, जिसका अर्थ बताते हुए उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की पूरी रूपरेखा रायबरेली की जनता के सामने रख दी।
उन्होंने साफ तौर पर लिखा—
“मैं रायबरेली के लिए नालायक ही सही, लेकिन एक बार सोचकर देखो कि कितना लंबा सफर तय किया है।”
1990 से लेकर वर्तमान तक का संघर्ष—चुनावों की फेरहिस्त में दर्ज हैं जीत-हार की दास्तानें
पत्र में दिनेश प्रताप सिंह ने खुद को ‘नालायक’ कहने वालों को जवाब देते हुए बताया कि उन्होंने ग्राम सभा स्तर से राजनीति की शुरुआत की थी।
- बी.डी.सी., ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और पंचायत सदस्य जैसे चुनावों से गुजरते हुए
- वह चार बार एमएलए और एमएलसी,
- तीन बार जिला पंचायत अध्यक्ष
- और दो बार लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।
इस संघर्ष यात्रा को रेखांकित करते हुए उन्होंने तंज कसते हुए कहा—
“कोई हमसे बड़ा होगा तो हमारे जितना छोटा नहीं होगा, और कोई छोटा होगा तो हमारे जितना बड़ा भी नहीं होगा।”
🔷 किसकी ओर इशारा?—राजनीतिक हलकों में कयासबाज़ी तेज
अब सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि आखिर यह पत्र किसके लिए लिखा गया है? क्या यह किसी राजनीतिक विरोधी के लिए संकेत है या फिर पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह की झलक?
दरअसल, रायबरेली में भाजपा की राजनीति इस समय संक्रमण काल से गुजर रही है।
कांग्रेस से भाजपा में आए दिनेश प्रताप सिंह एक समय राहुल गांधी के कट्टर विरोधी बनकर उभरे थे।
वहीं, एक और कांग्रेस से आई महिला विधायक वर्तमान में भाजपा में सक्रिय हैं।
दूसरी ओर, सपा से भाजपा में आए राज्यसभा सदस्य, जिन्हें सपा से निष्कासित किया गया था, भी अब संगठन में सक्रिय भूमिका में हैं।
ऐसे में पार्टी के मूल कार्यकर्ता कहीं-न-कहीं बाहरी चेहरों की इस बढ़ती दखल से खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। मंत्री की नाराज़गी कहीं ना कहीं इसी आंतरिक खींचतान का संकेत देती नजर आ रही है।
आत्मसमीक्षा या जनभावना की पुकार?
दिनेश प्रताप सिंह का यह पत्र केवल आत्ममंथन नहीं बल्कि रायबरेली की जनता से सीधा संवाद है। एक ऐसा संवाद जिसमें वे अपनी साख और संघर्ष को दुहराकर लोगों से समर्थन की अपेक्षा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि
“रायबरेली के इतिहास में कोई ऐसा नाम नहीं मिलेगा जिसे पांच विधानसभा क्षेत्रों में समान जनमत मिला हो।”
इस बयान के ज़रिए उन्होंने अपनी जमीनी पकड़ का इशारों में बखान किया है, जो कहीं न कहीं भाजपा के भीतर संभावित असंतोष को चुनौती देने जैसा है।
रायबरेली की राजनीति में उबाल, भाजपा में असहजता
राजनीति में आलोचना आम बात है, पर जब कोई मंत्री सोशल मीडिया पर इतनी भावनात्मक शैली में जवाब दे तो यह स्वाभाविक है कि इसके कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाएं। मंत्री दिनेश प्रताप सिंह का पत्र न सिर्फ उनके भीतर की पीड़ा को उजागर करता है, बल्कि भाजपा की आंतरिक राजनीति में बढ़ती खींचतान का संकेत भी देता है।
अब देखना यह है कि पार्टी इस असहजता को कैसे सुलझाती है, और मंत्री के इस सार्वजनिक आत्मप्रकाशन का क्या प्रभाव रायबरेली की आगामी राजनीति पर पड़ता है।