भारतीय राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल की ओर बढ़ रही है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) मामले में जो आरोप-पत्र दाखिल किया है, वह एक नए राजनीतिक मोड़ की आहट है। सबसे अहम तथ्य यह है कि इस आरोप-पत्र में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को पहला और राहुल गांधी को दूसरा आरोपी बनाया गया है।
पहली बार आरोपों के घेरे में गांधी परिवार
गौर करने वाली बात यह है कि यह गांधी परिवार के विरुद्ध दाखिल पहला औपचारिक आरोप-पत्र है। जबकि मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज जैसे दिवंगत नेताओं को भी इसमें नामजद किया गया है। इससे कांग्रेस पार्टी में आक्रोश की लहर दौड़ गई है और इसके विरोध में देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
फिलहाल गिरफ्तारी की संभावना नहीं
हालांकि सोनिया और राहुल गांधी दिसंबर 2015 से जमानत पर हैं और जब तक विशेष अदालत गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं करती, तब तक कोई तत्काल संकट नहीं दिखाई देता। फिर भी, यह स्पष्ट है कि अदालत के आगामी निर्णयों के आधार पर परिस्थिति में परिवर्तन संभव है।
केंद्र में है 988 करोड़ की ‘अपराध से अर्जित संपत्ति’
ईडी द्वारा दाखिल आरोप-पत्र में यह दावा किया गया है कि इस मामले में करीब 988 करोड़ रुपए की ‘अपराध से अर्जित आय’ शामिल है। वहीं, संबंधित संपत्तियों का बाजार मूल्य लगभग 5000 करोड़ रुपए आंका गया है। आरोप है कि यंग इंडियन नामक एक निजी कंपनी के जरिए मात्र 50 लाख रुपए में एजेएल की 2000 करोड़ रुपए की संपत्तियों पर कब्जा किया गया।
पीएमएलए की धारा 4 के तहत सजा की मांग
ईडी ने इस मामले में पीएमएलए की धारा 4 के तहत सात साल तक की सजा की मांग की है। यदि 25 अप्रैल को विशेष अदालत इस आरोप-पत्र पर संज्ञान लेती है, तो गांधी परिवार के इन दोनों सदस्यों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना अनिवार्य होगा।
राजनीतिक सवाल और एजेंसियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह
अब सवाल यह उठता है कि जब डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यह याचिका 2012 में दायर की थी, तब से लेकर अब तक—यानी लगभग 13 वर्षों बाद—आखिरकार आरोप-पत्र दाखिल करने में इतनी देर क्यों हुई? ईडी ने 2022 में सोनिया गांधी से 11 घंटे तक तीन दिनों में और राहुल गांधी से 5 दिनों में कुल 50 घंटे तक पूछताछ की थी। फिर भी आरोप-पत्र में इतना विलंब क्यों?
क्या है विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी की कार्रवाई का पैटर्न?
ईडी की निष्पक्षता पर भी सवाल उठ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, उसके लगभग 96 प्रतिशत केस विपक्षी नेताओं के खिलाफ ही होते हैं। दूसरी ओर, अजित पवार, नारायण राणे, प्रफुल्ल पटेल, हिमंता बिस्व सरमा और सुवेंदु अधिकारी जैसे कई नेता जो कभी विपक्ष में रहे, भाजपा में शामिल होते ही जांच से मुक्त हो गए।
कांग्रेस का तीखा आरोप: ‘प्रतिशोध की राजनीति’
कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम को प्रतिशोध की राजनीति बताया है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर यह कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने ‘सत्यमेव जयते’ का नारा बुलंद करते हुए गांधी परिवार के पक्ष में जन समर्थन का आह्वान किया है।
निष्कर्षतः
इस पूरे प्रकरण का असर सिर्फ कानूनी दायरे तक सीमित नहीं रहने वाला है। इसकी राजनीतिक प्रतिध्वनि आने वाले समय में अधिक तीव्र हो सकती है। चूंकि गांधी परिवार देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व करता है, इसलिए इस चार्जशीट का प्रभाव 2024 के बाद के सियासी परिदृश्य पर भी पड़ सकता है।
*अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट*
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने
‘नेशनल हेराल्ड‘
अखबार और एजेएल मामले में
जो आरोप-पत्र दाखिल किया है, वह एक नए राजनीतिक मोड़ की आहट है।
गांधी परिवार के विरुद्ध
यह पहला औपचारिक आरोप-पत्र है। … कांग्रेस पार्टी में आक्रोश की लहर दौड़ गई है।
कांग्रेस ने इसे प्रतिशोध की राजनीति बताया है…