✍️ जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
आजमगढ़ जनपद के बरदह थाना क्षेत्र में घटित एक वीभत्स घटना ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। 17 वर्षीय एक अनाथ किशोरी, जो अपने दो छोटे भाइयों के साथ अत्यंत गरीबी में जीवन बिता रही थी, के साथ जो कुछ हुआ, वह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर करारा तमाचा है।
घटनाक्रम: विश्वासघात और साजिश का घिनौना मेल
इस किशोरी का जीवन पहले ही कठिनाइयों से भरा था। वह स्थानीय प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक सदाशिव तिवारी के घर बर्तन धोने का काम करती थी। उसी मकान में महिला कांस्टेबल रीना द्विवेदी अपने पति के साथ किराए पर रहती थी।
किशोरी का आरोप है कि शिक्षक उस पर गलत नीयत रखता था, और जब उसने विरोध कर काम छोड़ दिया, तो यह शिक्षक अपनी ताक़त का दुरुपयोग करते हुए बदले की भावना से भर उठा।
शनिवार को शिक्षक ने किशोरी को एक झूठे चोरी के आरोप में अपने घर बुलाया और वहां बंधक बना लिया। जब उसका भाई उसे छुड़ाने पहुंचा, तो दो पुलिसकर्मी उसे जबरन थाने ले गए और हिरासत में डाल दिया।
किशोरी के अनुसार, उस रात शिक्षक सदाशिव तिवारी, कांस्टेबल रीना द्विवेदी और उसके पति ने मिलकर उसकी बेरहमी से पिटाई की। यहीं नहीं, गर्म चिमटे से उसके शरीर को कई बार दागा गया।
उसकी दर्दभरी चीखें, मानो दीवारों में समा गईं, और इंसानियत भी जैसे मर चुकी थी।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल: सिस्टम क्यों मौन रहा?
इतना ही नहीं, रविवार को रीना उसे थाने ले गई, और वहां ज़बरदस्ती समझौते का दबाव डालकर मामला दबाने की कोशिश की गई। लेकिन यह किशोरी हार मानने वालों में नहीं थी।
सोमवार को वह आज़मगढ़ एसपी कार्यालय पहुंची और अपनी पूरी आपबीती सुनाई। एसपी के निर्देश पर तुरंत कार्रवाई करते हुए बरदह पुलिस ने सदाशिव तिवारी, रीना द्विवेदी और उनके पति के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया। किशोरी को मेडिकल परीक्षण के लिए भेजा गया है।
कार्रवाई की शुरुआत: लेकिन क्या यह पर्याप्त है?
सीओ लालगंज भूपेश पांडेय ने जानकारी दी कि महिला कांस्टेबल को फिलहाल लाइन हाजिर कर दिया गया है और मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है।
लेकिन सवाल यह है कि ऐसे मामलों में केवल लाइन हाजिरी ही क्यों? क्या इस क्रूरता के लिए यही सज़ा पर्याप्त है?
न्याय की उम्मीद: क्या अब जागेगा सिस्टम?
यह मामला केवल एक किशोरी पर अत्याचार का नहीं, बल्कि एक पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता का पर्दाफाश करता है। पुलिसकर्मी, जो सुरक्षा का प्रतीक माने जाते हैं, जब वे खुद अत्याचारियों के साथ खड़े हों, तब पीड़ित कहां जाए?
इसके साथ ही यह सवाल भी अहम है कि –
👉 एक शिक्षक, जो ज्ञान और नैतिकता का प्रतिनिधि होना चाहिए, अगर वह भी अपनी ताकत का दुरुपयोग करे तो फिर बच्चों का भविष्य किसके हवाले होगा?
अब खामोशी नहीं, न्याय चाहिए
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारी व्यवस्था में पीड़ितों की आवाज़ को दबाने का चलन अब भी ज़िंदा है।
मगर यह मामला एक चेतावनी है – अगर अब भी हम नहीं जागे, तो अगली पीड़िता कोई और मासूम होगी।
अब वक्त आ गया है कि सिर्फ एफआईआर और लाइन हाजिरी से आगे जाकर न्यायिक कार्रवाई हो, दोषियों को कड़ी सज़ा मिले, और समाज को यह सख़्त संदेश जाए कि किसी मासूम के साथ अमानवीयता अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।