✍️ हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में 6 साल की मासूम बच्ची लाली की नरबलि का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। 106 दिनों की जांच के बाद पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझा ली है, जिसमें रिश्तेदार और एक तांत्रिक शामिल थे।
छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले से आई एक खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। जहां एक ओर आधुनिकता और विज्ञान की बातें होती हैं, वहीं दूसरी ओर समाज का एक कोना अब भी अंधविश्वास के भंवर में इस कदर डूबा हुआ है कि अपनी ही भांजी की बलि देने से भी नहीं चूकता।
यह घटना कोई सामान्य अपराध नहीं थी, बल्कि आस्था की आड़ में लालच और तंत्र-मंत्र के नाम पर की गई वह दरिंदगी है, जिसमें एक मासूम की मुस्कुराहट को हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया।
शुरुआत एक गुमशुदगी से…
घटना 11 अप्रैल 2025 की रात की है। मुंगेली जिले के एक गांव में 6 साल की मासूम लाली अपनी मां के पास सो रही थी। उसी रात गांव में एक बारात आई थी और चारों ओर चहल-पहल थी। लेकिन रात के लगभग 11 बजे के बाद बच्ची लापता हो गई। परिजनों ने तुरंत थाने में शिकायत दर्ज करवाई। गांव में खोजबीन शुरू हुई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
अंदर ही था रहस्य… पर पर्दा था मोटा
पुलिस को शुरुआत से ही यह अंदेशा था कि मामला परिवार या परिचितों के भीतर का हो सकता है। हालांकि लाली के भैया-भाभी कहे जाने वाले चिम्मन गिरी गोस्वामी और रितु गोस्वामी पुलिस की नजरों में नहीं आए, क्योंकि गांववाले उनके पक्ष में खड़े हो गए थे। स्थिति ऐसी बन गई थी कि लोग पुलिस के विरोध में प्रदर्शन करने लगे और जांच को पक्षपातपूर्ण बताने लगे।
जासूसी का अनोखा तरीका—जब कांस्टेबल बना बैगा
तभी पुलिस ने एक बेहद अनोखी रणनीति अपनाई। एक पुलिस कांस्टेबल को गांव में भेजा गया, जो खुद को बैगा समुदाय का बताता, वहीं गांव में रहने लगा। वह गांववालों से मांगकर खाता, उनके बीच उठता-बैठता, और एक दिन उनके विश्वास में आ गया।
धीरे-धीरे उसने कुछ बेहद चौंकाने वाली बातें सुनीं—लोग फुसफुसा रहे थे कि ‘जो हुआ, वो नहीं होना चाहिए था’। यही वो संकेत था जिसका इंतज़ार पुलिस को महीनों से था।
खुला राज—झरन पूजा और नरबलि
जांच में सामने आया कि इस पूरे कांड की साजिश रितु गोस्वामी और उसके पति चिम्मन ने रची थी। गांव के ही तांत्रिक रामरतन निषाद ने रितु को यह यकीन दिलाया था कि झरन पूजा से ‘बड़ी बरकत’ होगी, लेकिन इसके लिए “बड़ी बलि” देनी होगी—यानि एक इंसानी बलि।
पैसे की हवस में अंधे हुए इस जोड़े ने मासूम लाली को चुन लिया। अपहरण की जिम्मेदारी नरेंद्र मार्को को दी गई, जिसे सिर्फ 500 रुपये का लालच दिया गया। हत्या में चिम्मन और एक अन्य आरोपी आकाश शामिल थे, जबकि सिर काटने का काम तांत्रिक रामरतन ने किया। बच्ची की लाश को खेत में दफन कर दिया गया।
106 दिनों की पड़ताल के बाद मिली सफलता
5 मई को जब पुलिस ने गांव के खेतों में दोबारा सर्च ऑपरेशन शुरू किया, तब एक खेत की मेढ़ के पास दबा हुआ कंकाल मिला। डीएनए जांच में यह पुष्टि हो गई कि वह कंकाल लाली का ही है। इसके बाद पुलिस ने संदिग्धों का पॉलीग्राफ टेस्ट, नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग किया। धीरे-धीरे पूरी सच्चाई सामने आने लगी और पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
जुर्म की तस्दीक और तांत्रिक चाकू का बरामद होना
पूछताछ में सभी आरोपियों ने अपना अपराध कबूल कर लिया है। हत्या में इस्तेमाल किया गया वह चाकू भी बरामद कर लिया गया है, जिससे लाली की गर्दन काटी गई थी। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना में सबसे दुखद पहलू यह रहा कि जिन रिश्तेदारों को लाली सबसे ज्यादा मानती थी, उन्होंने ही उसका गला रेत दिया।
अंधविश्वास की बलि चढ़ता बचपन—कब रुकेगा ये सिलसिला?
यह घटना न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत के लिए एक चेतावनी है कि अंधविश्वास, तंत्र-मंत्र और तांत्रिक प्रपंच किस हद तक निर्दोष जीवन को निगल सकते हैं। सवाल यह नहीं है कि पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया, सवाल यह है कि एक छह साल की बच्ची का क्या कसूर था? क्या महज इसलिए कि कुछ लोगों को पैसे की जरूरत थी?
न्याय की राह और सामाजिक ज़िम्मेदारी
अब जबकि पांचों आरोपी जेल की सलाखों के पीछे हैं, समाज को यह सोचने की ज़रूरत है कि वह कब तक ऐसे अंधे विश्वासों में जीता रहेगा? क्या यह घटना हमें सोचने को मजबूर नहीं करती कि शिक्षा, जागरूकता और वैज्ञानिक सोच को गांवों तक पहुंचाना कितना जरूरी है?
अंततः, इस भयावह अपराध की तह तक जाने और मासूम लाली को न्याय दिलाने में पुलिस की सूझबूझ और संवेदनशीलता काबिले तारीफ रही, लेकिन इससे कहीं अधिक ज़रूरी है कि समाज अब आंखें खोले और अंधविश्वास के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो।