संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित स्थानांतरण नीति की स्याही सूखने से पहले ही ज़िला चित्रकूट में उसकी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। इस बार नियम तोड़ने वाले कोई बाहरी नहीं, बल्कि वही अधिकारी हैं जिन पर इस नीति के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी है। ग्राम पंचायत सचिवों और ग्राम विकास अधिकारियों के ट्रांसफर में मोटी रकम लेकर नियमों को ताक पर रखा जा रहा है।
💰 जब पैसा बन जाए पोस्टिंग का आधार…
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिला पंचायत राज अधिकारी और जिला विकास अधिकारी की भूमिका संदेह के घेरे में है। आरोप हैं कि ये अधिकारी मोटी रकम लेकर सचिवों और ग्राम विकास अधिकारियों को मनपसंद ब्लॉक और ग्राम पंचायतों में तैनात कर रहे हैं। शासन की स्पष्ट गाइडलाइन्स के बावजूद, ब्लॉकों और ग्रामों का चयन रिश्वत के आधार पर हो रहा है।
📌 चौंकाने वाला ट्रांसफर खेल: मनीष vs रामनारायण
विशेष रूप से सदर ब्लॉक कर्वी में तैनात ग्राम विकास अधिकारी मनीष कुमार यादव, मान सिंह, मुदित प्रताप सिंह और रामनारायण पांडेय की ज्वाइनिंग 15 अक्टूबर 2018 को हुई थी। इतने वर्षों में इनके ट्रांसफर नहीं किए गए।
हालाँकि, 13 मई 2025 को मनीष कुमार और रामनारायण पांडेय का ट्रांसफर किया गया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि 24 जुलाई 2025 को रामनारायण पांडेय को वापस कर्वी भेज दिया गया और मनीष कुमार को रामनगर ब्लॉक ट्रांसफर कर दिया गया।
गौर करने वाली बात यह है कि मनीष कुमार 5 मई को सड़क दुर्घटना में घायल होकर 39 दिन के मेडिकल अवकाश पर थे, इसके बावजूद उन्हें ऐसे गांवों का चार्ज दिया गया जो दूर-दराज में स्थित हैं – हन्ना बिनैका, सुहेल और कटैया खादर।
❓ जो चुप रहे, वो क्यों रहे? और जो बदले, वो कैसे बदले?
वर्षों से कर्वी ब्लॉक में जमे मान सिंह और मुदित प्रताप सिंह का कोई स्थानांतरण नहीं हुआ।
जिन अधिकारियों ने स्थानांतरण के लिए मोटी रकम दी, उन्हें आरामदायक और पसंदीदा ग्राम पंचायतें मिलीं।
वहीं, जो अधिकारी पैसे नहीं दे सके, उन्हें दूरस्थ और मुश्किल क्षेत्रों में भेज दिया गया।
🔁 कमलाकर सिंह का ‘रिवर्स ट्रांसफर’ — पद, पैसा और रसूख की जीत
मानिकपुर ब्लॉक के सचिव कमलाकर सिंह का ट्रांसफर मऊ ब्लॉक में किया गया था। लेकिन उन्होंने अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए फिर से मानिकपुर ब्लॉक में वापसी कर ली। यह ट्रांसफर नीति की पूरी तरह अवहेलना है।
🏛 ट्रांसफर नीति है या मज़ाक?
उत्तर प्रदेश सरकार की स्पष्ट नीति है कि स्थानांतरण 15 मई से 15 जून के बीच किए जाएं। परंतु, चित्रकूट में यह तय सीमा पार कर 24 जुलाई तक ट्रांसफर किए जा रहे हैं, वो भी बिना किसी वैध कारण या प्रक्रिया के।
ट्रांसफर नीति के तहत स्थानांतरण केवल मुख्य विकास अधिकारी (C.D.O.) की अनुमति से ही संभव है, लेकिन यहां यह प्रक्रिया पूरी तरह से रस्म अदायगी बन गई है।
🔍 सवाल तो बनता है…
1. क्या जिलाधिकारी इस पूरे ट्रांसफर घोटाले की निष्पक्ष जांच कराएंगे?
2. क्या रिश्वत लेकर तैनाती देने वाले अधिकारियों पर होगी कोई कार्रवाई?
3. क्या शासन की नीतियां सिर्फ कागज़ पर ही रह जाएंगी?
चित्रकूट जैसे आकांक्षी जिले में इस तरह के भ्रष्ट ट्रांसफर सिस्टम से यह साफ है कि सरकारी नीतियों की धज्जियाँ उड़ाने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ न कोई डर है, न जवाबदेही। जब नियम बनाने वाले ही उसे तोड़ने लगें तो आम जनता की सेवा और गांवों के विकास की कल्पना केवल एक भ्रम रह जाती है।
अब निगाहें जिलाधिकारी और शासन प्रशासन पर टिकी हैं कि क्या वे इस ‘ट्रांसफर व्यापार’ पर अंकुश लगाएंगे या फिर यह खेल इसी तरह चलता रहेगा?