
बुंदेलखंड के पाठा की कड़ी चट्टानों के बीच शिक्षा की मुलायम कोंपलें कैसे फूटीं, यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, पूरे समाज के बदलते सपनों की कहानी है। कभी दस्यु आतंक, सूखा, पलायन और उपेक्षा से पहचाने जाने वाले पाठा के सुदूरवर्ती गांव आज भी अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन बीते दो दशकों में शिक्षा के मोर्चे पर कुछ महत्वपूर्ण बदलाव साफ दिखते हैं।
पाठा की भौगोलिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
चित्रकूट और बांदा जिलों के बीच फैला पाठा क्षेत्र बुंदेलखंड का वह पथरीला, जंगलों से आच्छादित इलाका है, जहां कभी गोलियों की गूंज, डकैतों की दहशत और पुलिस अभियानों की कहानियां आम थीं। अब यह इलाका रनीपुर टाइगर रिज़र्व और इको-टूरिज्म की नई योजनाओं के कारण भी जाना जा रहा है, लेकिन सामाजिक सूचकांकों पर यह अब भी पिछड़े क्षेत्रों में गिना जाता है।
सामाजिक संरचना में कोल, अन्य अनुसूचित जाति, सीमांत किसान, भूमिहीन मजदूर और वन पर निर्भर समुदाय प्रमुख हैं। खेती वर्षा पर निर्भर, रोज़गार अनिश्चित और बुनियादी सुविधाएं (सड़क, स्वास्थ्य, बैंकिंग) आज भी सीमित हैं—ऐसे में शिक्षा अपने आप में एक बड़ा संघर्ष बन जाती है।
दो दशक पहले की तस्वीर: जब स्कूल तक पहुंचना भी उपलब्धि थी
लगभग बीस साल पहले पाठा में स्कूलों की संख्या कम और दूरी ज्यादा थी। कई गांवों में प्राथमिक विद्यालय तक नहीं थे; बच्चे 3–5 किमी दूर पैदल स्कूल जाते थे, बरसात में नाले उफनते तो हफ्तों स्कूल बंद।
एक या दो शिक्षकों पर पूरा स्कूल और मल्टीग्रेड क्लास आम बात थी। दलित और आदिवासी बच्चों के लिए सामाजिक दूरी शिक्षा की राह को और कठिन बनाती थी। लड़कियों की स्कूल तक पहुंच लगभग अपवाद थी।
2001 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार बांदा की साक्षरता दर 54.8% और महिला साक्षरता 37% थी। चित्रकूट में कुल साक्षरता 66% थी लेकिन पहाड़ी इलाकों के गांवों में महिला साक्षरता 15–20% तक सीमित थी।
आज की स्थिति: स्कूल बढ़े, नामांकन बढ़ा… लेकिन सीखना?
सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील, KGBV, समग्र शिक्षा अभियान और RTE 2009 के चलते शिक्षा तक पहुंच बढ़ी है।
- अधिकांश गांवों में प्राथमिक विद्यालय
- KGBV से लड़कियों की पढ़ाई में बढ़ोतरी
- मिड-डे मील से उपस्थिति में सुधार
ढांचा अच्छा हुआ लेकिन सुविधाएं अधूरी
कई स्कूल पक्की इमारत वाले हैं, लेकिन कई जगह कक्षाओं की कमी, लड़कियों के लिए शौचालय का अभाव, बिजली और इंटरनेट की कमी बनी हुई है।
शिक्षक और शिक्षा की गुणवत्ता
- एक ही शिक्षक द्वारा कई कक्षाओं का संचालन
- विज्ञान, गणित, अंग्रेजी के विशेषज्ञ शिक्षकों की कमी
- दूरस्थ क्षेत्र में पोस्टेड शिक्षकों की नियमित उपस्थिति चुनौतीपूर्ण

सामाजिक बदलाव
लड़कियों की शिक्षा को लेकर नजरिया बदला है। समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है और दस्यु गतिविधियों में कमी के कारण स्कूल आना-जाना सुरक्षित हुआ है।
आज की वास्तविक चुनौतियां
- माध्यमिक और उच्च शिक्षा तक पहुंच बेहद सीमित
- डिजिटल शिक्षा के दौर में इंटरनेट और स्मार्ट उपकरणों की कमी
- स्थानीय भाषा और पाठ्यपुस्तकों के बीच दूरी
- SC/ST बच्चों के लिए पहली पीढ़ी शिक्षा की चुनौती
आगे के सुधार
- पाठा-विशेष शिक्षा माइक्रो प्लान
- स्थानीय बोली आधारित प्राथमिक शिक्षा
- कठिन क्षेत्र भत्ता और स्थानीय भर्ती नीति
- क्लस्टर आधारित “पाठा शिक्षा हब”
- स्किल्ड एजुकेशन और ओपन स्कूलिंग
निष्कर्ष
स्कूल बढ़े हैं, नामांकन बढ़ा है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच अभी भी लंबा संघर्ष है। शिक्षा को स्थानीय जीवन, संस्कृति और रोजगार से जोड़ना ही पाठा के भविष्य की कुंजी है।