
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
तौक़ीर रज़ा ख़ान और बरेली की ताज़ा घटना
तौक़ीर रज़ा ख़ान का नाम एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। बीते शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के बरेली में ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान के समर्थन में रैली निकाली गई। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। बरेली पुलिस ने इस मामले में 50 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया, जिनमें इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IEMC) के अध्यक्ष और इस्लामी विद्वान तौक़ीर रज़ा ख़ान भी शामिल हैं। पुलिस ने उन्हें इस पूरे घटनाक्रम का ‘मास्टरमाइंड’ बताया।
तौक़ीर रज़ा ख़ान की गिरफ्तारी
65 वर्षीय तौक़ीर रज़ा ख़ान को बरेली पुलिस ने झड़पों और हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया। पुलिस का कहना है कि उन्होंने बिना अनुमति इस्लामिया ग्राउंड में भीड़ जुटाने की अपील की थी। शुक्रवार को हुई हिंसा से जुड़े मामलों में 10 एफ़आईआर दर्ज हुईं, जिनमें से सात में उनका नाम शामिल है।
हालाँकि तौक़ीर रज़ा ख़ान ने बयान जारी कर कहा कि घटना के समय वे घर पर नज़रबंद थे। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। यह पहली बार नहीं है जब उनका जेल जाना हुआ हो।
तौक़ीर रज़ा ख़ान के पुराने मुक़दमे
पहला मुक़दमा: 1982 में बरेली कोतवाली में दंगा भड़काने का आरोप।
2010: बारावफ़ात के जुलूस के दौरान हिंसा भड़काने पर गिरफ्तारी।
2023: हिंदू राष्ट्र की मांग करने वालों पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज करने की अपील करने पर मुरादाबाद पुलिस ने उन पर मुक़दमा किया।
इन घटनाओं से साफ है कि तौक़ीर रज़ा ख़ान लगातार विवादों में बने रहे हैं।
तौक़ीर रज़ा ख़ान और ‘आई लव मोहम्मद’ अभियान
‘आई लव मोहम्मद’ अभियान ने देशभर में मुसलमानों के बीच भावनात्मक असर डाला। कानपुर में एक बैनर लगाने को लेकर एफ़आईआर दर्ज होने के बाद यह अभियान तेज़ हो गया। इसी सिलसिले में बरेली में 26 सितंबर को इस्लामिया ग्राउंड में जुटने की अपील की गई थी।
पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की, जिससे टकराव हुआ। इसके बाद पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया।
तौक़ीर रज़ा ख़ान का राजनीतिक सफर
तौक़ीर रज़ा ख़ान सिर्फ़ धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक शख़्सियत भी हैं।
2001: इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IEMC) की स्थापना।
2007: कांग्रेस का समर्थन।
2012: समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर राज्य मंत्री का दर्जा और उत्तर प्रदेश हैंडलूम कॉरपोरेशन का चेयरमैन पद।
2014: मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के दौरान मुसलमानों की सुरक्षा में नाकामी का आरोप लगाकर पद से इस्तीफ़ा।
IEMC स्थानीय स्तर पर सक्रिय रही लेकिन बरेली से बाहर इसका प्रभाव सीमित रहा।
धार्मिक पृष्ठभूमि और बरेलवी आंदोलन
तौक़ीर रज़ा ख़ान 19वीं सदी के प्रमुख इस्लामी विद्वान अहमद रज़ा ख़ान (आला हज़रत) की छठी पीढ़ी से हैं।
अहमद रज़ा ख़ान: बरेलवी आंदोलन के संस्थापक।
बरेलवी आंदोलन: पैगंबर मोहम्मद के प्रति मोहब्बत और सूफ़ी परंपराओं पर ज़ोर।
दरगाह का प्रभाव: बरेली की दरगाह धार्मिक केंद्र है, राजनीतिक नहीं।
इसी कारण से तौक़ीर रज़ा ख़ान का प्रभाव मुसलमानों के बीच धार्मिक और भावनात्मक स्तर पर गहरा है।
तौक़ीर रज़ा ख़ान के बयान और विवाद
2015: मोदी और मोहन भागवत को पत्र लिखकर गोहत्या पर रोक की अपील।
2023: हरियाणा में गौरक्षकों द्वारा मुस्लिम युवकों की हत्या पर तिरंगा यात्रा का आह्वान।
2024: दिल्ली में कार्यक्रम रोकने पर बयान दिया कि मुसलमानों के अंदर लावा भर रहा है।
इन बयानों ने उन्हें सुर्ख़ियों में बनाए रखा।
तौक़ीर रज़ा ख़ान का प्रभाव और सीमाएँ
धार्मिक दृष्टि से तौक़ीर रज़ा ख़ान का प्रभाव बरेली और बरेलवी मुसलमानों तक गहरा है।
मुस्लिम समाज पर असर: उनके धार्मिक आह्वान को भावनात्मक समर्थन मिलता है।
राजनीतिक प्रभाव: सीमित, लेकिन स्थानीय स्तर पर असरदार।
दरगाह से जुड़ाव: मुसलमान उन्हें आला हज़रत के वंशज होने के कारण सम्मान देते हैं।
तौक़ीर रज़ा ख़ान की सबसे बड़ी ताक़त उनकी धार्मिक पहचान है। बरेलवी मुसलमानों के बीच उनका असर धार्मिक आधार पर है, न कि राजनीतिक। यही वजह है कि उनके बयानों पर लोग भावनात्मक प्रतिक्रिया देते हैं।
हालाँकि, प्रशासनिक स्तर पर उनके आह्वानों ने कई बार तनाव और विवाद पैदा किए हैं। इस बार की बरेली हिंसा भी उसी की कड़ी है।

तौक़ीर रज़ा ख़ान धार्मिक विद्वानों के परिवार से आते हैं और उनकी पहचान आला हज़रत के वंशज के तौर पर है। उनका सियासी दायरा सीमित है लेकिन धार्मिक प्रभाव गहरा है। बरेली की ताज़ा हिंसा में उनकी गिरफ्तारी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या धार्मिक नेताओं के आह्वान से पैदा होने वाला जज़्बाती माहौल प्रशासन और समाज दोनों के लिए चुनौती बनता जा रहा है।