
अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
आई लव मोहम्मद विवाद से उपजा सियासी माहौल
उत्तर प्रदेश में आई लव मोहम्मद विवाद ने राजनीति को नई दिशा दे दी है। इस विवाद को लेकर भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि किसी को भी मोहम्मद साहब से प्रेम जताने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उनका कहना था कि तकलीफ तब होती है जब इस बहाने सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने और दूसरे संप्रदाय को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है।

बृजभूषण शरण सिंह ने साफ कहा कि मोहम्मद साहब से प्यार करिए, इसमें कोई बुराई नहीं है। हम भी भगवान कृष्ण और राम से प्रेम करते हैं। असली समस्या तब खड़ी होती है जब इसके पीछे की नीयत राजनीतिक या सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली हो। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि भाजपा की सरकार में इस तरह का खेल किसी भी कीमत पर नहीं चलने वाला।
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आई लव मोहम्मद विवाद पर सरकार की सतर्कता
आई लव मोहम्मद विवाद को लेकर मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल पर बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि सरकार पूरी तरह से सतर्क है। उन्होंने दोहराया कि प्रदेश का माहौल बिगाड़ने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जो लोग ऐसे प्रयास करेंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इस बयान से साफ संकेत मिलता है कि भाजपा इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने के बजाय सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर जोर दे रही है।
पंचायत चुनाव और आई लव मोहम्मद विवाद
दिलचस्प बात यह है कि आई लव मोहम्मद विवाद उस समय उभरा है जब उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों की हलचल तेज हो रही है। ऐसे समय में सियासी दल ध्रुवीकरण के रास्ते पर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
भाजपा ने जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थन में “आई लव योगी आदित्यनाथ जी” के पोस्टर लगाए, वहीं समाजवादी पार्टी ने इसका जवाब “आई लव अखिलेश यादव” के पोस्टर लगाकर दिया। इससे साफ है कि पोस्टर पॉलिटिक्स अब सियासी रणनीति का अहम हिस्सा बन चुकी है।
पोस्टर वार और आई लव मोहम्मद विवाद
आई लव मोहम्मद विवाद के साथ-साथ पोस्टर वार ने भी यूपी की राजनीति को गरमा दिया है। सपा के प्रदेश सचिव राहुल निर्मल बागी ने तो पोस्टर में राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को भगवान के रूप में दिखाकर सनसनी मचा दी।
उस पोस्टर में राहुल गांधी को भगवान विष्णु, तेजस्वी यादव को भगवान ब्रह्मा और अखिलेश यादव को भगवान महेश का दर्जा दिया गया। पोस्टर में लिखा था— “इंडिया की अंतिम आस, कलयुग के ब्रह्मा, विष्णु, महेश।”
इस कदम ने विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जुबानी जंग और तेज कर दी है।
आई लव मोहम्मद विवाद और राजनीतिक ध्रुवीकरण
विशेषज्ञों का मानना है कि आई लव मोहम्मद विवाद और पोस्टर वार दोनों ही सियासी दलों की ध्रुवीकरण की रणनीति का हिस्सा हैं। पंचायत चुनाव से पहले इस तरह के मुद्दे उछालना विपक्ष और सत्ता पक्ष, दोनों के लिए राजनीतिक लाभ का सौदा हो सकता है।
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भाजपा योगी आदित्यनाथ के नाम पर जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है, जबकि सपा अखिलेश यादव के नेतृत्व को मजबूत दिखाना चाहती है। वहीं, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को लेकर बनाए गए पोस्टर विपक्षी गठबंधन की एकजुटता का संकेत देने वाले हैं।
आई लव मोहम्मद विवाद पर जनता की राय
जनता का एक बड़ा वर्ग मानता है कि आई लव मोहम्मद विवाद जैसे मुद्दे चुनावी रणनीति का हिस्सा भर हैं। सामान्य लोग चाहते हैं कि नेताओं की राजनीति से ऊपर उठकर राज्य में विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाए।
लोगों का यह भी कहना है कि धार्मिक भावनाओं से जुड़े पोस्टर और नारे माहौल बिगाड़ने का काम करते हैं। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि ऐसे विवादों को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।
अंततः यह साफ है कि आई लव मोहम्मद विवाद केवल धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है। भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह का बयान इस बात का संकेत है कि सरकार माहौल बिगाड़ने की किसी भी कोशिश को रोकने के लिए तैयार है। वहीं, पंचायत चुनाव से पहले पोस्टर वार ने यूपी की राजनीति को और अधिक गरमा दिया है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि जनता विकास चाहती है, लेकिन राजनीतिक दल ध्रुवीकरण और पोस्टर पॉलिटिक्स में व्यस्त हैं। ऐसे में देखना होगा कि आने वाले समय में आई लव मोहम्मद विवाद और पोस्टर वार का चुनावी समीकरणों पर क्या असर पड़ता है।