चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
“कवि गोण्डवी: जनकवि की चेतना और चिंगारी” — यह लेख कवि गोण्डवी की कविता, उनके विचार, समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण और साहित्यिक योगदान की विस्तृत समीक्षा करता है, जिसमें उनके द्वारा उठाए गए सवालों और आम जनमानस की पीड़ा को समझने का प्रयास किया गया है।
जब कविता समाज की अन्तःचेतना को झकझोरती है, तब वह केवल रचना नहीं रहती, वह प्रतिरोध बन जाती है। ऐसे ही प्रतिरोध की प्रतीक हैं कवि गोण्डवी — हिंदी के लोकधर्मी और जनकवि, जिन्होंने अपनी कलम को सत्ता की चाकरी से नहीं, जनता की पीड़ा से जोड़ा। उनका वास्तविक नाम अवध नारायण मिश्रा था, पर वे जनमानस के बीच “कवि गोण्डवी” के नाम से पहचाने गए।
समकालीन कविता में कवि गोण्डवी का स्थान
कवि गोण्डवी ऐसे दौर में सामने आए जब हिंदी कविता मुख्यतः अकादमिक विमर्शों और शहरी सभ्यता की काली कोठरियों में सिमटी हुई थी। उन्होंने अपने ठेठ देशज अंदाज़ में न केवल व्यवस्था की परतें उधेड़ीं बल्कि उस किसान, मज़दूर और दलित की आवाज़ बने जो अक्सर साहित्य की मुख्यधारा से बाहर कर दिया जाता है। इस संदर्भ में वे दुष्यंत कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं, किंतु उससे आगे जाकर ग्राम्य यथार्थवाद को और अधिक धारदार बनाते हैं।
कविता की ज़मीन: गांव, खेत और चूल्हा
कवि गोण्डवी की कविताओं में जिस धरातल की उपस्थिति बार-बार दिखाई देती है, वह है गांव की मिट्टी। उनकी रचनाओं में बैल, हल, खलिहान, दरिद्रता और शोषण की कहानियाँ हैं — लेकिन किसी करुणा के आग्रह के साथ नहीं, बल्कि आक्रोश और प्रतिरोध के साथ। उदाहरण के लिए, उनका यह प्रसिद्ध शेर देखिए—
“काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में,
उतर रहा है देश अब, भुखमरी के त्रास में…”
यह कविता केवल भूख की बात नहीं करती, यह भूख और अमीरी के बीच की संरचनात्मक खाई को उजागर करती है, जिसमें एक ओर नेता और पूंजीपति की तिजोरियाँ भरती हैं और दूसरी ओर गाँव के खेतिहर किसान की बेटी बिकती है।
विचारधारा और राजनीतिक चेतना
कवि गोण्डवी की कविता न किसी दल की ओर झुकती है, न किसी विचारधारा के पिंजरे में कैद होती है। फिर भी उनका झुकाव स्पष्टतः वंचितों और हाशिए पर खड़े वर्गों की ओर है। उनकी रचनाएँ पूंजीवाद, सामंतवाद और भ्रष्ट नौकरशाही पर कठोर प्रहार करती हैं।
उनकी पंक्तियाँ अक्सर नारे की तरह जन आंदोलनों में गूंजती हैं —
“हसरतों को बांधिए न रेत के इस ताज में,
आज भी भूखा है कोई लोकतंत्र के राज में।”
यहाँ ‘लोकतंत्र’ पर उनकी दृष्टि प्रशंसा नहीं करती, बल्कि सवाल उठाती है। क्या सचमुच यह लोकतंत्र है या सत्ता का नया नाम?
कविता में भाषाई शिल्प और तेवर
जहाँ एक ओर अधिकांश समकालीन कविताएँ ‘क्लासिक’ बनने के प्रयास में जटिलता और दुरूहता का मार्ग चुनती हैं, वहीं कवि गोण्डवी की भाषा सहज, सरल, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है। वे ठेठ अवधी और बुंदेलखंडी मुहावरों का इस्तेमाल करते हैं जो सीधे पाठक की संवेदना को स्पर्श करते हैं।
उनका लहजा उपदेशात्मक नहीं, अनुभवात्मक होता है। वे न तो उपदेश देते हैं और न ही सहानुभूति की भीख मांगते हैं। वे केवल सच दिखाते हैं — नंगा और निर्विकार।
ट्रांज़िशन: अब एक पल को रुकिए — और सोचिए…
…क्या आज का मीडिया कवि गोण्डवी की भाषा और तेवर को झेल सकता है? क्या सोशल मीडिया की रीट्वीट और लाइक की दुनिया में इस तरह के जनकवि का टिक पाना संभव है?
आज की कविता में गोण्डवी की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में जब कविता को ‘ट्रेंडिंग टॉपिक’ और ‘बुक लॉन्च’ की दुनिया में समेटा जा रहा है, कवि गोण्डवी की कविता एक साँस लेने जैसा अनुभव देती है। वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं क्योंकि भूख, बेरोज़गारी, जातीय शोषण, किसानों की आत्महत्याएँ — सब कुछ अब भी जस का तस है।
बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि आज जब लोकतंत्र पर मार्केटिंग का दबाव बढ़ा है, तब कवि गोण्डवी की कविता पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हो गई है।
ट्रांज़िशन: आइए कुछ उदाहरणों पर दृष्टि डालें
कवि गोण्डवी की कविता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है — उनका नैतिक साहस। वे भयभीत नहीं होते। उनका स्वर जनपक्षधर है, न कि सत्तापक्षधर।
यह उदाहरण देखिए—
“उनकी चर्चा क्या करें जो मंच से बिकते रहे,
हमने देखा है कई संसद में घिघियाते हुए।”
यह कथन न केवल काव्यात्मक है, बल्कि राजनीतिक भ्रष्टाचार पर सीधा हमला करता है — वह भी बिना किसी लाग-लपेट के।
जनकवि बनाम साहित्यिक संस्थान
कवि गोण्डवी का जीवन कभी अकादमिक पुरस्कारों की दौड़ में नहीं रहा। न वे साहित्य अकादमी के पदकधारी थे, न ही टीवी चैनलों के प्रिय चेहरे। लेकिन जब कोई किसान आत्महत्या करता है, जब कोई गरीब बच्चा शिक्षा से वंचित होता है, तब उनकी कविताएँ गूंजती हैं।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कवि गोण्डवी को साहित्यिक संस्थानों ने नहीं, जनता ने स्थापित किया। यही उन्हें अन्य कवियों से अलग बनाता है।
कविता का संघर्षशील सौंदर्य
कवि गोण्डवी की कविता सौंदर्य का नकार नहीं करती, लेकिन उसका सौंदर्य संघर्ष से उत्पन्न होता है। उनके लिए सौंदर्य गुलाब की पंखुड़ी नहीं, खेत में पसीने की बूँद है। वे रोमैंटिक नहीं, रियलिस्ट हैं।
उनकी कविता में आँसू हैं, लेकिन साथ में प्रश्नचिह्न भी हैं। यही उनकी ताकत है।
कवि गोण्डवी क्यों ज़रूरी हैं?
आज जब कविता पर बाज़ार का दबाव है, जब शब्द भी बिकाऊ हो गए हैं, तब कवि गोण्डवी की कविता हमें याद दिलाती है कि लेखन सिर्फ सृजन नहीं, संघर्ष भी है।
वे हमें बताते हैं कि जनकवि होना आसान नहीं होता — यह एक लंबी, कंटीली और अकेली यात्रा है। लेकिन अगर साहित्य का कोई उद्देश्य है, तो वह यही है — वंचित की आवाज़ बनना, सत्ता से टकराना और पाठक को भीतर से झकझोर देना।
इसलिए, कवि गोण्डवी सिर्फ एक नाम नहीं, एक ज़रूरत हैं — उस समय के लिए भी, जो बीत चुका, और उस समय के लिए भी, जो आने वाला है।