
दादा गंगाराम की रिपोर्ट
बतुकम्मा उत्सव की शुरुआत और महत्व
कोमाराम भीम आसिफाबाद। बतुकम्मा उत्सव तेलंगाना क्षेत्र का सबसे रंगीन और जीवंत त्योहार माना जाता है। यह हर साल बद्रपद अमावस्या से लेकर अश्वयुज शुक्ल अष्टमी तक पूरे नौ दिनों तक बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दौरान तेलंगाना की ग्रामीण और शहरी महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर एक साथ मिलकर फूलों से बने बतुकम्मा की पूजा करती हैं।
इस उत्सव का सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। इसे तेलंगाना की महिला शक्ति, सामाजिक एकता और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक भी कहा जाता है। यही कारण है कि इसे राज्य का फूलों का त्योहार भी कहा जाता है।
बतुकम्मा उत्सव की परंपराएँ और रीति-रिवाज़
बतुकम्मा उत्सव की सबसे खास बात यह है कि इसमें प्रकृति के साथ गहरा जुड़ाव देखने को मिलता है। हर सुबह महिलाएँ और बच्चे मिलकर खेतों और बाग-बगीचों से अलग-अलग किस्म के फूल इकट्ठा करते हैं। इन फूलों में मुख्यतः गुनगुनी, तंगेडु, बंटि, गुम्मडी, और कसू फूल शामिल होते हैं।

इन फूलों को गोल आकार में सजाकर बतुकम्मा तैयार किया जाता है। यह सजावट एक तरह से पिरामिड जैसी दिखती है। इसके बाद महिलाएँ बतुकम्मा के चारों ओर एक साथ बैठकर गीत गाती हैं और पारंपरिक खेल खेलती हैं। नौ दिनों तक यह क्रम चलता है और अंत में नदी या तालाब में बतुकम्मा का विसर्जन किया जाता है।
बतुकम्मा उत्सव के नौ दिन
बतुकम्मा उत्सव कुल नौ दिनों तक चलता है और हर दिन का नाम और महत्व अलग होता है।
1. एंगिलिपुला बतुकम्मा
2. अटुकुला बतुकम्मा
3. मुद्दप्पु बतुकम्मा
4. नानाबिय्यम बतुकम्मा
5. अतला बतुकम्मा
6. अलीगिना बतुकम्मा
7. नीपाकायला बतुकम्मा
8. एन्ना मुद्दला बतुकम्मा
9. सद्दुला बतुकम्मा
इन नौ दिनों के अलग-अलग नाम इस बात का प्रतीक हैं कि यह त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि जीवन की विविधता और खुशियों का उत्सव है।
बतुकम्मा उत्सव और औषधीय महत्व
इस त्योहार का एक और खास पहलू है — फूलों का औषधीय गुण। माना जाता है कि जिन फूलों से बतुकम्मा सजाया जाता है, उनमें प्राकृतिक औषधीय तत्व मौजूद होते हैं। यह फूल वातावरण को शुद्ध करने और मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
यानी बतुकम्मा उत्सव केवल परंपरा ही नहीं बल्कि विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि यह त्योहार आज भी उतनी ही आस्था और महत्व के साथ मनाया जाता है।
सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव का पर्व
बतुकम्मा उत्सव सामाजिक रिश्तों को मजबूत करने का भी माध्यम है। इस दौरान नवविवाहित महिलाएँ अपने मायके आती हैं और अपनी सहेलियों व परिजनों के साथ समय बिताती हैं। इससे न केवल पारिवारिक रिश्तों में मिठास आती है बल्कि सामाजिक एकता भी बढ़ती है।
इसके अलावा, तेलंगाना राज्य में इस त्योहार पर स्कूल और कॉलेजों में छुट्टियाँ दी जाती हैं। ऐसे में बच्चे भी अपने घर लौटते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और इस रंगीन त्योहार की खुशी में शामिल होते हैं।
बतुकम्मा उत्सव और तेलंगाना राज्य की पहचान
तेलंगाना राज्य के गठन के बाद बतुकम्मा उत्सव को और भी ज्यादा महत्व मिला। सरकार ने इसे राज्य के आधिकारिक त्योहारों में शामिल किया और इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
आज यह त्योहार केवल तेलंगाना तक सीमित नहीं है। देश के अन्य राज्यों में रहने वाले तेलुगु लोग और विदेशों में बसे तेलुगु समुदाय भी इस उत्सव को पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इस प्रकार यह त्योहार संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु का काम करता है।
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संक्षेप में, बतुकम्मा उत्सव तेलंगाना की आत्मा है। यह न केवल महिलाओं की शक्ति और प्रकृति के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि समाज में एकता और स्वास्थ्य के महत्व को भी उजागर करता है।
इस त्योहार को मनाने से हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन को और अधिक सुंदर, स्वस्थ और खुशहाल बनाया जा सकता है। यही कारण है कि बतुकम्मा उत्सव आज केवल तेलंगाना ही नहीं बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी पहचान बना चुका है।