यूपी के ग्रेटर नोएडा में भावुक कर देने वाला दृश्य, शहीद सुरेश सिंह भाटी की बेटी का कन्यादान करने पहुँची सेना

कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

ग्रेटर नोएडा (उप्र)। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित डाबरा गांव में मंगलवार की शाम एक ऐसा भावुक दृश्य देखने को मिला,
जिसने वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम कर दीं। गांव के शहीद सुरेश सिंह भाटी की बेटी की शादी थी। घर–परिवार उत्सव की
तैयारियों में मशगूल था कि अचानक सेना के लगभग 50 जवानों से भरी एक बस गांव में आकर रुकती है। कुछ ही मिनटों में यह साफ हो गया कि
यह आम आगमन नहीं, बल्कि शहादत के प्रति सम्मान और साथ निभाने की मिसाल बनने जा रहा है।

शहीद की शहादत और बेटी की शादी: खुशियों के बीच भावनाओं का सैलाब

डाबरा गांव के शहीद सुरेश सिंह भाटी ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। परिवार के लिए यह शहादत जितना गर्व का
विषय रही, उतनी ही पीड़ा का कारण भी बनी। बेटियों की शादी जैसे बड़े अवसरों पर पिता की कमी सबसे ज्यादा खलती है। यही वजह थी कि
जब गांव में शादी की तैयारियां चल रहीं थीं, तब हर कोई मन ही मन सोच रहा था कि काश, आज सुरेश भाटी भी होते और अपनी बेटी का
हाथ थामकर उसे विदा करते।

लेकिन किसे पता था कि सेना उनके इस अधूरे सपने को इतने भावुक अंदाज में पूरा करने आ रही है। जब शादी वाले घर के सामने सेना के
जवानों की बस आकर रुकी, तो पहले तो लोगों को लगा कि शायद सुरक्षा या किसी औपचारिक कार्यक्रम के लिए अधिकारी आए होंगे।
मगर जैसे–जैसे जवान एक–एक कर बस से नीचे उतरते गए और शादी वाले घर की ओर बढ़ने लगे, उत्सुकता के साथ–साथ भावनाओं का भी
माहौल बनने लगा।

डाबरा गांव पहुँची सेना की बस, 50 जवानों ने लिया साथ निभाने का संकल्प

गांव के मुख्य मार्ग से गुजरते हुए जवान जब विवाह स्थल के प्रवेश द्वार तक पहुंचे, तो पूरा गांव उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ा।
शादी का संगीत कुछ देर के लिए थम गया और ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंजने लगे। जवानों का अनुशासन, वर्दी की चमक और चेहरे पर
भावनाओं की संयमित गहराई, सब कुछ मिलकर एक अद्भुत दृश्य बना रहे थे।

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परिवार के सदस्यों से मिलते हुए सेना के अधिकारियों ने बताया कि वे शहीद सुरेश सिंह भाटी के साथ पहले भी कई अभियानों में रहे हैं।
वे सिर्फ औपचारिक शोक संदेश देकर आगे नहीं बढ़ना चाहते थे, बल्कि अपनी जिम्मेदारी को शहादत के बाद भी निभाना चाहते थे।
इसलिए रेजिमेंट के जवानों ने तय किया कि वे मिलकर शहीद की बेटी का कन्यादान करेंगे।

मंडप में जब पहुंचे जवान, शहीद की बेटी का हुआ सैन्य ‘कन्यादान’

जैसे ही सेना के अधिकारी और जवान शादी के मंडप तक पहुंचे, पंडाल में बैठा हर व्यक्ति खड़ा हो गया। दूल्हा–दुल्हन के पास पहुंचकर
सबसे पहले शहीद की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किए गए। उसके बाद वरिष्ठ अधिकारी ने परिवार से मुखातिब होते हुए कहा,
“आज हम सब मिलकर अपने साथी की बेटी का कन्यादान करेंगे। सुरेश भाटी हमारे लिए सिर्फ एक जवान नहीं, परिवार का हिस्सा थे। उनकी
बेटी हमारी बेटी है।”

इसके साथ ही वैदिक मंत्रोच्चार के बीच कन्यादान की पवित्र रस्म शुरू हुई। सेना के अधिकारी ने परंपरा के अनुरूप जल, पुष्प और
कन्या के हाथों को दूल्हे के हाथों में सौंपते हुए संकल्प दोहराया। बाकी जवान शांत भाव से खड़े होकर इस क्षण के साक्षी बने रहे।
माहौल इतना भावुक था कि दुल्हन की मां से लेकर पंडाल में बैठे बुजुर्गों की आंखें भी भर आईं।

कन्यादान के बाद पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। गांव के युवाओं ने सेना के जवानों का जयकारों के साथ स्वागत किया,
वहीं छोटे–छोटे बच्चे सैनिकों के पास जाकर उनसे हाथ मिलाने लगे। दूल्हे पक्ष के लोगों ने भी इस अनोखे सम्मान के लिए सेना के
प्रति आभार जताया।

“सुरेश आज होते तो यही करते” – साथियों की नम हुई आंखें

समारोह के बाद बातचीत के दौरान एक जवान ने भावुक स्वर में कहा,
“सुरेश भाटी ने आखिरी सांस तक ड्यूटी निभाई। आज अगर वे होते तो अपनी बेटी का कन्यादान खुद करते। हम सब यहां इसलिए आए हैं
कि उन्हें यह महसूस हो कि वे आज भी हमारे बीच हैं, बस रूप बदल गया है।”

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि यूनिट में हमेशा यह परंपरा रही है कि किसी जवान के परिवार को अकेला महसूस न होने दिया जाए।
शहादत के बाद भी उनकी जिम्मेदारियां सिर्फ कागज़ी नहीं, भावनात्मक रूप से भी निभाई जाती हैं। डाबरा गांव में किया गया यह कदम
उसी सोच की मजबूत मिसाल है।

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दुल्हन ने भी नम आंखों के साथ कहा कि उन्हें आज लगा जैसे पिता सचमुच उनके साथ हैं। उन्होंने कहा,
“मुझे हमेशा लगता था कि मेरी शादी की घड़ी पर पापा बहुत याद आएंगे, लेकिन आज जब पापा के यूनिट के इतने सारे अंकल आए और
उन्होंने मेरा कन्यादान किया, तो मुझे लगा कि मैं अकेली नहीं हूं।”

गांव में छाया गर्व का माहौल, सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई कहानी

जैसे–जैसे यह खबर आसपास के क्षेत्रों और सोशल मीडिया तक पहुँची, लोग डाबरा गांव के इस प्रेरक घटना क्रम की तारीफ करने लगे।
कई लोगों ने इसे भारत की सैन्य परंपरा, भाईचारे और मानवीय संवेदना का अनूठा उदाहरण बताया। शादी में मौजूद मेहमानों ने
मोबाइल से तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड कर सोशल प्लेटफॉर्म पर साझा किए, जो तेजी से वायरल होते चले गए।

गांव के बुजुर्गों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कई शादियां देखी हैं, लेकिन इस तरह का कन्यादान पहली बार देखा।
वहीं युवाओं के बीच यह चर्चा का विषय रहा कि देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर करने वाले शहीदों के परिवारों को समाज किस प्रकार
वास्तविक सम्मान दे सकता है।

शहीद परिवारों के सम्मान की मिसाल, समाज के लिए सीख

डाबरा गांव में हुई यह शादी सिर्फ एक पारिवारिक आयोजन नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए संदेश बन गई। अक्सर शहीदों के नाम
स्मारकों और फलक पर दर्ज हो जाते हैं, लेकिन उनके परिवार रोज़मर्रा की जिंदगी में अकेलेपन और संघर्ष से जूझते हैं।
ऐसे में जब सेना के जवान किसी बेटी की शादी में पिता की जगह खड़े होकर कन्यादान करते हैं, तो यह कदम शहादत को जीती-जागती
परंपरा में बदल देता है।

यह घटना बताती है कि —

  • शहीद सिर्फ एक यूनिट या रेजिमेंट के नहीं, पूरे देश के होते हैं।
  • उनके परिवार की खुशियों और कठिनाइयों में साझेदारी समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
  • सम्मान केवल आर्थिक मदद या शहीद स्मारक तक सीमित नहीं, बल्कि भावनात्मक साथ और रिश्तों की निरंतरता भी आवश्यक है।

अगर हर स्तर पर ऐसे संवेदनशील प्रयास बढ़ें, तो शहीद परिवार खुद को वास्तविक अर्थों में ‘राष्ट्र का परिवार’ महसूस कर सकेंगे।
डाबरा गांव की यह घटना उसी बेहतर समाज की झलक है, जहां वर्दी उतर जाने के बाद भी रिश्तों की डोर टूटती नहीं।

एक शादी, जिसने ‘शहादत’ को नए अर्थ दिए

ग्रेटर नोएडा के डाबरा गांव में शहीद सुरेश सिंह भाटी की बेटी की शादी ने यह साबित कर दिया कि भारतीय सेना केवल सीमा की
सुरक्षा तक सीमित संस्था नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं पर टिकी एक बड़ी परिवार व्यवस्था भी है। अपने साथी की बेटी के
कन्यादान के लिए 50 जवानों का एक साथ पहुंचना, वर्दी के पीछे छिपे उस सच्चे भाव को सामने लाता है, जिसमें दोस्ती,
जिम्मेदारी और त्याग का गहरा रिश्ता बसा होता है।

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यह कहानी सिर्फ आज के सोशल मीडिया ट्रेंड की खबर भर नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण है कि कैसे
हम शहीदों के परिवारों को सम्मान दे सकते हैं। जब भी शहीदों की चर्चा होगी, डाबरा गांव का यह भावुक दृश्य,
शहीद सुरेश सिंह भाटी का नाम और उनकी बेटी का यह ‘सैन्य कन्यादान’ हमेशा याद किया जाएगा।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

सवाल 1: डाबरा गांव में किसकी शादी में सेना के जवान कन्यादान करने पहुंचे?

यह शादी शहीद सुरेश सिंह भाटी की बेटी की थी। सुरेश भाटी ने देश की रक्षा करते हुए शहादत पाई थी। उनकी याद में और
परिवार के सम्मान के लिए सेना के जवान बड़ी संख्या में शादी समारोह में पहुंचे और मिलकर कन्यादान की रस्म निभाई।

सवाल 2: सेना के कितने जवान शादी में शामिल हुए थे?

जानकारी के अनुसार, लगभग 50 जवानों से भरी सेना की एक बस डाबरा गांव पहुंची। सभी जवान वर्दी में, अनुशासन के साथ
विवाह स्थल आए और पूरे सम्मान के साथ शहीद की बेटी के विवाह समारोह में सहभागी बने।

सवाल 3: सेना के इस कदम को लेकर गांव और सोशल मीडिया पर कैसी प्रतिक्रिया देखने को मिली?

गांव के लोगों ने इसे शहादत के प्रति सम्मान और मानवीय संवेदना की अनोखी मिसाल बताया। शादी में मौजूद लोगों ने भावुक
होकर सेना के जवानों का स्वागत किया। वहीं सोशल मीडिया पर भी इस खबर को खूब सराहना मिली और लोग इसे प्रेरक उदाहरण
के रूप में साझा करते रहे।

सवाल 4: इस घटना से समाज को क्या संदेश मिलता है?

इस घटना से साफ संदेश मिलता है कि शहीदों का परिवार कहीं से भी अकेला नहीं है। सेना अपने साथियों के परिवार को
जीवनभर अपना मानती है और समाज को भी यही सीख मिलती है कि शहीदों के परिजनों का सम्मान केवल आर्थिक मदद से नहीं,
बल्कि भावनात्मक साथ और रिश्तों की निरंतरता से होता है।

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