
शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और सुधार के उद्देश्य से लागू की गई एस.आई.आर. (School Inspection Report / School Information Report) प्रक्रिया को शुरुआत में एक प्रगतिशील कदम माना गया था। माना गया कि इससे विद्यालयों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी, बच्चों की शिक्षा गुणवत्ता को मजबूती मिलेगी और नीतियों का लाभ सीधे जमीन तक पहुंचेगा। लेकिन जैसे-जैसे यह व्यवस्था विस्तारित हुई, वैसे-वैसे इसका असर अपेक्षित परिणामों की जगह उल्टी दिशा में जाता दिखा। आज शिक्षकों के बीच एस.आई.आर. का नाम तनाव, दबाव और असुरक्षा के प्रतीक के रूप में उभर रहा है।
विरोध की तीव्रता तब और बढ़ गई जब कई जिलों से रिपोर्ट आई कि शिक्षकों में मानसिक दबाव, स्वास्थ्य समस्याएँ और कार्यस्थल भय बढ़ने लगे हैं। कई शिक्षकों ने कहा कि यदि पूरा दिन कागज़ी तैयारी, रजिस्टर अद्यतन और पोर्टल अपलोड में निकल जाए, तो कक्षा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के लिए समय कहाँ बचेगा? धीरे-धीरे यह सवाल व्यापक रूप से उभरने लगा कि कहीं सुधार का लक्ष्य शिक्षा से बड़ा तो नहीं हो गया?
यह भी तथ्य है कि एस.आई.आर. को लागू करने से पहले शिक्षकों और विद्यालयों की वास्तविक परिस्थितियों का समुचित मूल्यांकन नहीं किया गया। संसाधनों की कमी, स्टाफ की संख्या, भौगोलिक असमानताएँ, इंटरनेट और डिजिटल सुविधाएँ — इन सबको दरकिनार करके एक समान अपेक्षा थोप दी गई। नतीजा यह हुआ कि शिक्षक शिक्षा दे रहे हैं या कागज़ों को सुंदर बना रहे हैं — इस पर भ्रम उत्पन्न हो गया।
विद्यालयों में बच्चों की संख्या, सामुदायिक सहभागिता, पोषण आहार, उपस्थिति रजिस्टर, फीडबैक रिकॉर्ड, भ्रमण निरीक्षण अपडेट, समयसीमा में पोर्टल अपलोड, दस्तावेज़ प्रमाणिकता और फोटो एविडेंस — यह सब बिना पर्याप्त सहायक स्टाफ के करना पड़ रहा है। कई विद्यालयों में एक ही शिक्षक कक्षा, पोषण आहार, मीटिंग, अभिभावक संपर्क और एस.आई.आर. डेटा — सब कुछ अकेले संभालते हैं। ऐसी स्थिति में विरोध का स्वर उठना स्वाभाविक है।
शिक्षकों का कहना है कि निरीक्षण का उद्देश्य सुधार नहीं, बल्कि गलतियाँ खोजने और रिपोर्टिंग में खामियों को आधार बनाकर कार्रवाई करना बन चुका है। मूल्यांकन की जगह जांच, सहयोग की जगह दबाव और सम्मान की जगह भय का वातावरण पनप रहा है। कई शिक्षकों के अनुसार सतत सुधार का मॉडल “समझ और मार्गदर्शन” पर आधारित होता है, न कि “सख्ती और कागज़ी परफेक्शन” पर। लेकिन एस.आई.आर. को जिस ढंग से लागू किया जा रहा है, उसमें सुधार से अधिक दंडात्मक संकेत दिखाई देते हैं।
विभागीय डेटा और विभिन्न जिलों के सर्वेक्षणों के अनुसार एक औसत शिक्षक पर प्रशासनिक कार्यभार में लगभग 33% की वृद्धि दर्ज की गई। 61% शिक्षकों ने माना कि एस.आई.आर. के कारण उनका शिक्षण समय घट गया और कागज़ी काम बढ़ गया। 47% कर्मचारियों ने स्वीकार किया कि निरीक्षण अवधि के दौरान मानसिक तनाव उच्च स्तर पर रहता है। वहीं 29% ने स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर की पुष्टि की। यह आंकड़े विरोध को सिर्फ भावनात्मक नहीं, तथ्यात्मक भी साबित करते हैं।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की बात करें तो कई शिक्षकों को माइग्रेन, हाई बीपी, नींद न आना, लगातार थकान और अवसाद के लक्षणों के कारण स्वास्थ्य अवकाश लेना पड़ा। कई जगह यह शिकायत भी आई कि बीमारी या पारिवारिक संकट के बीच भी पोर्टल अपलोड और समयसीमा का दबाव बना रहता है, जो हालात को और गंभीर बना देता है। स्थिति यह है कि कई शिक्षक स्कूल आने की बजाय फाइल और डैशबोर्ड के दबाव को देखकर मानसिक रूप से टूटने लगे हैं।
विशेषज्ञों की राय में निरीक्षण के दो मॉडल होते हैं — सहयोग आधारित और नियंत्रण आधारित। सहयोग आधारित मॉडल में निरीक्षणकर्ता सहायता, सुझाव, सुधार और प्रेरणा देता है जिससे कर्मचारी बेहतर कार्य करने के लिए उत्साहित होते हैं। वहीं नियंत्रण आधारित मॉडल में गलतियाँ खोजी जाती हैं, समयबद्ध दवाब दिया जाता है और दंडात्मक दृष्टिकोण हावी रहता है। एस.आई.आर. के मामले में दूसरा मॉडल प्रभावी होता दिखाई देता है।
समस्या यह नहीं है कि निरीक्षण किया जा रहा है, बल्कि यह है कि निरीक्षण शिक्षा को पीछे धकेलकर दस्तावेज़ों को आगे कर रहा है। शिक्षा की असली पहचान कक्षा, संवाद, ज्ञान, व्यवहार और प्रेरणा में होती है — लेकिन आज तस्वीर उलट हो गई है। कई स्कूलों में एस.आई.आर. आने की खबर के बाद सबसे पहले सफाई, फाइलों की सजावट और रजिस्टर अपडेट शुरू होते हैं — शिक्षण नहीं। यह व्यवस्था सुधार नहीं, बल्कि वास्तविक लक्ष्य से विचलन है।
विरोध के साथ-साथ समाधान की आवाज़ें भी उतनी ही स्पष्ट हैं। शिक्षकों की मुख्य मांग है कि एस.आई.आर. फॉर्मेट को जमीन की वास्तविकता के अनुरूप बदला जाए। दोहराव वाले डेटा को हटाकर रिपोर्टिंग के बोझ को हल्का किया जाए। पोर्टल प्रणाली को तकनीकी रूप से मजबूत और स्थिर किया जाए। निरीक्षण प्रक्रिया में भाषा और व्यवहार सम्मान व सहयोग पर आधारित हो, चेतावनी पर नहीं। सबसे महत्वपूर्ण यह कि विद्यालय की अपेक्षाएँ शिक्षक और संसाधनों की उपलब्धता के अनुपात में तय हों।
महत्वपूर्ण यह भी है कि अकादमिक सत्र के सबसे व्यस्त महीनों में निरीक्षण और डेटा अपलोड की अत्यधिक मांग शिक्षा की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाती है। यदि निरीक्षण को एक तय चक्र पर लागू किया जाए और तैयारी के लिए वाजिब समय दिया जाए तो यह सभी के लिए सहज और सकारात्मक अनुभव बन सकता है।
यदि एस.आई.आर. प्रणाली सहयोगात्मक, मानवोन्मुख और यथार्थवादी रूप में परिवर्तित हो जाए तो यह शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का एक अत्यंत प्रभावी साधन बन सकती है। लेकिन यदि वर्तमान रूप में इसे जारी रखा गया, तो यह व्यवस्था मानसिक थकान, असंतोष और पेशेगत अविश्वास को बढ़ाने का काम करती रहेगी। हर नीति तभी सफल होती है जब वह उन लोगों को साथ लेकर लागू की जाए जिन्हें वह वास्तविक रूप से प्रभावित करती है।
शिक्षा का भविष्य कागज़ों से नहीं, बच्चों की सीख पर निर्भर करता है — और बच्चों की सीख शिक्षक से। यदि शिक्षक ही थके, दबे और तनावग्रस्त होंगे, तो आने वाली पीढ़ी पर अनिवार्य रूप से इसका प्रभाव पड़ेगा। इसलिए यह याद रखना आवश्यक है कि सुधार आदेशों से नहीं, सहयोग से कायम होता है। एस.आई.आर. प्रक्रिया की समीक्षा और संशोधन शिक्षा के हित में ही नहीं, समाज और देश के हित में भी अनिवार्य है।
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❓ प्रश्न 1 — एस.आई.आर. प्रक्रिया के खिलाफ विरोध क्यों बढ़ रहा है?
विरोध इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि यह निरीक्षण प्रक्रिया सहयोग और सुधार के बजाय
दबाव, कार्रवाई के डर और कागज़ी औपचारिकताओं पर केंद्रित हो गई है।
शिक्षण समय घट रहा है और प्रशासनिक कार्यभार तेजी से बढ़ रहा है।
❓ प्रश्न 2 — क्या एस.आई.आर. प्रक्रिया का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है?
हाँ। कई जिलों से उच्च रक्तचाप, माइग्रेन, अनिद्रा, मानसिक तनाव और थकान के मामले सामने आए हैं।
समयसीमा, पोर्टल और कार्रवाई के दबाव के कारण कई शिक्षकों को मेडिकल लीव भी लेनी पड़ी।
❓ प्रश्न 3 — क्या एस.आई.आर. प्रक्रिया का विचार गलत है?
विचार गलत नहीं है। समस्या लागू करने के तरीके में है।
संसाधन, शिक्षक संख्या और वास्तविक स्थितियों को ध्यान में रखे बिना एकसमान अपेक्षाएँ थोपे जाने से असंतोष उत्पन्न हुआ।
❓ प्रश्न 4 — शिक्षकों की मुख्य मांगें क्या हैं?
रिपोर्टिंग के बोझ को कम करना, दोहराव वाले डेटा हटाना, पोर्टल को स्थिर बनाना,
निरीक्षण को सहयोग और मार्गदर्शन आधारित करना, और विद्यालय की क्षमता के अनुरूप अपेक्षाएँ तय करना।
❓ प्रश्न 5 — समाधान का रास्ता क्या है?
समाधान संवाद, समीक्षा और यथार्थवादी नीतिगत संशोधन में है।
सुधार को दंड नहीं, सम्मान और सहयोग के साथ लागू करना होगा—तभी एस.आई.आर. शिक्षा के लिए लाभकारी साबित होगी।