बीमार सिस्टम या बीमार कर्मचारी? SIR प्रक्रिया की असली कहानी सामने आई





बीमार सिस्टम या बीमार कर्मचारी? SIR प्रक्रिया की असली कहानी सामने आई


📰 संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

शिक्षा विभाग में लागू की गई SIR (School Inspection Report) प्रक्रिया का उद्देश्य पारदर्शिता और गुणवत्ता सुधार बताया गया है,
लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। कर्मचारी मानो सिस्टम के ‘डाटा-भंवर’ में फंस चुके हैं,
जहां सुधार की जगह डर, दबाव और दंड का शासन है। सवाल यह है — क्या वाकई सिस्टम बीमार है या फिर कर्मचारी?

“SIR अब ‘School Inspection Report’ नहीं, ‘Stress Inducing Routine’ बन चुका है — हर रोज़ का तनाव, हर हफ्ते की चेतावनी और हर महीने की नई मांगें।”

📘 कागज़ों पर सुधार — हकीकत में बोझ

SIR के तहत हर विद्यालय को अपने कामकाज से लेकर भवन, छात्रों की उपस्थिति, मिड-डे मील, शिक्षकों के प्रदर्शन,
और यहाँ तक कि अधिगम स्तर तक का पूरा डेटा ऑनलाइन अपलोड करना पड़ता है।
कक्षा के समय में ही यह डेटा फीड करना होता है, जिससे शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है।
शिक्षक अब बच्चों से ज़्यादा मोबाइल स्क्रीन पर दिख रहे हैं।

🔥 विरोध क्यों बढ़ रहा है?

जब किसी प्रक्रिया का विरोध सामूहिक हो जाए, तो उसे टालना नहीं, समझना चाहिए।
SIR को लेकर कर्मचारियों के भीतर असंतोष के पाँच बड़े कारण सामने आए हैं।

असंभव समयसीमा और हर हालत में रिपोर्ट भरने का दबाव

हर दिन नई रिपोर्ट, हर सप्ताह निरीक्षण, और हर माह संपूर्ण मूल्यांकन —
यह सब कुछ एक ही शिक्षक से उम्मीद की जाती है जो पहले ही दस तरह की जिम्मेदारियाँ निभा रहा है।
नतीजा, मानसिक दबाव और लगातार थकावट।

डिजिटल सिस्टम पर डिजिटल संसाधन नहीं

  • कई स्कूलों में टैबलेट या स्मार्टफोन नहीं हैं।
  • इंटरनेट या नेटवर्क कई बार बंद रहता है।
  • डेटा अपलोड के समय सर्वर क्रैश होना आम है।

इसके बावजूद ऊपर से आदेश है — “रिपोर्ट हर हाल में चाहिए।” यह मजबूरी नहीं, विडंबना है।

‘शून्य गलती’ की मांग लेकिन ‘शून्य सुविधा’ की हकीकत

प्रशासन से आदेश आते हैं — “एक गलती बर्दाश्त नहीं होगी।”
लेकिन प्रशिक्षण, तकनीकी मदद या अतिरिक्त समय देने की कोई व्यवस्था नहीं।
परिणाम — कर्मचारी गलती से नहीं, थकान से टूट रहे हैं।

“कर्मचारी चाहते हैं कि वे काम करें, लेकिन सिस्टम चाहता है कि वे सिर्फ़ क्लिक करें।”

शिक्षा से ज़्यादा डेटा पर ज़ोर

अब शिक्षा नहीं, रिपोर्ट ही सबकुछ है।
कक्षा के बच्चों की बजाय एक्सेल शीट पर टिकमार्क अधिक मायने रखती है।
यह मानसिक रूप से थका देने वाला है और शिक्षक का मूल उद्देश्य ही खो रहा है।

दंडात्मक रवैया और भय का वातावरण

  • रिपोर्ट देरी से भरने पर नोटिस
  • गलत आंकड़ों पर स्पष्टीकरण
  • वेतन रोकने और निलंबन की चेतावनी

इस भय ने कर्मचारियों के भीतर रचनात्मकता को खत्म कर दिया है।
अब सिर्फ़ “औपचारिक अनुपालन” बचा है, “वास्तविक सुधार” नहीं।

💊 बीमारी सच में SIR की वजह से?

कई शिक्षक और कर्मचारी अब खुले में कह रहे हैं —
“SIR के कारण बीमार हो गया हूं।”
यह वाक्य मज़ाक नहीं, बल्कि चेतावनी है कि
सिस्टम का दबाव शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।

  • ब्लड प्रेशर और माइग्रेन
  • नींद की कमी
  • भूख में कमी और चिड़चिड़ापन
  • तनावजन्य अवसाद

ऐसे में सवाल उठना लाज़िमी है — क्या बीमारी कर्मचारियों को लगी या सिस्टम को?
सिस्टम के भीतर मानवीयता मरती जा रही है और कर्मचारी ‘डेटा के गुलाम’ बन रहे हैं।

⚖️ प्रशासन का पक्ष: सुधार का दबाव या जवाबदेही?

प्रशासन का तर्क है कि वर्षों से शिक्षा में लापरवाही रही है।
जवाबदेही तय करने के लिए डेटा आधारित निरीक्षण आवश्यक है।
लेकिन कर्मचारियों की दलील है — “सुधार हाँ, पर अमानवीय तरीका नहीं।”
दोनों पक्ष सही हैं, पर तालमेल गायब है।

“सुधार तब सफल होता है जब सिस्टम ‘मानव’ को समझे, न कि उसे मशीन माने।”

🔧 समाधान की दिशा

✔ रिपोर्टिंग की आवृत्ति घटे, प्रारूप सरल हो

हर हफ्ते की बजाय त्रैमासिक रिपोर्ट अधिक यथार्थवादी है।

✔ तकनीकी संसाधन और प्रशिक्षण उपलब्ध हों

हर विद्यालय को न्यूनतम डिजिटल सुविधा मिलनी चाहिए।

✔ कक्षा समय में रिपोर्टिंग पर रोक

शिक्षण समय में किसी प्रकार का डेटा फीडिंग कार्य न कराया जाए।

✔ प्रोत्साहन आधारित सिस्टम लागू हो

सकारात्मक रिपोर्टिंग वाले विद्यालयों को सम्मान और अतिरिक्त संसाधन मिले।

✔ संवाद बढ़े, भय घटे

कर्मचारियों की राय लिए बिना कोई सुधार स्थायी नहीं हो सकता।

🏁विरोध सुधार का नहीं, कुप्रबंधन का है

यह विरोध आलस्य या अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि
व्यवस्था अगर अमानवीय हो जाए तो सुधार भी शोषण बन जाता है।
कर्मचारी चाहते हैं कि बच्चे सीखें, शिक्षा सशक्त बने —
पर वे यह भी चाहते हैं कि उनका मानसिक संतुलन और गरिमा बनी रहे।

सरकार और विभाग अगर इस विरोध को समझें, तो SIR एक उत्कृष्ट उपकरण बन सकता है;
लेकिन अगर इसे डर और दंड का औजार बनाए रखा गया,
तो सवाल फिर वही रहेगा — “बीमार सिस्टम या बीमार कर्मचारी?”

क्लिक करके सवाल–जवाब पढ़ें
प्रश्न 1: SIR प्रक्रिया का मूल उद्देश्य क्या बताया जाता है?
SIR का घोषित उद्देश्य स्कूलों के कामकाज को पारदर्शी बनाना, नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करना,
सरकारी धन के उपयोग की निगरानी करना और बच्चों के अधिगम स्तर पर सटीक डेटा जुटाना है।
यानी कागज़ों पर यह गुणवत्ता सुधार और जवाबदेही बढ़ाने का एक डिजिटल औज़ार बताया जाता है।

प्रश्न 2: कर्मचारी SIR को बोझ और तनाव क्यों मान रहे हैं?
कर्मचारियों का कहना है कि पहले से ही पढ़ाई, मिड-डे मील, रजिस्टर और अन्य प्रशासनिक कार्यों का दबाव है।
ऐसे में हर छोटी-बड़ी जानकारी रोज़ ऑनलाइन भरने की मजबूरी, सीमित समय, कम स्टाफ और
तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण SIR प्रक्रिया बोझ और तनाव की मुख्य वजह बन रही है।

प्रश्न 3: क्या SIR की वजह से स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है?
हाँ, कई कर्मचारी यह अनुभव कर रहे हैं कि लगातार दबाव और डर के माहौल की वजह से
ब्लड प्रेशर, माइग्रेन, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और मानसिक थकावट जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
वे मानते हैं कि काम का यह असंतुलित ढांचा उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत दोनों को नुकसान पहुँचा रहा है।

प्रश्न 4: प्रशासन SIR को क्यों ज़रूरी मानता है?
प्रशासन की दलील है कि बिना मजबूत डेटा के स्कूलों में अनियमितता पर नियंत्रण नहीं हो सकता,
न ही लर्निंग आउटकम का सही आकलन किया जा सकता है।
SIR के माध्यम से वे यह देख पाते हैं कि कहाँ उपस्थिति कम है, कहाँ संसाधन बेकार पड़े हैं
और किन स्कूलों में अतिरिक्त मदद की ज़रूरत है।

प्रश्न 5: कर्मचारियों की प्रमुख मांग क्या है?
कर्मचारी चाहते हैं कि SIR प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त न हो, बल्कि उसे व्यावहारिक और मानवीय बनाया जाए।
उनकी मुख्य माँगें हैं—रिपोर्टिंग की आवृत्ति घटे, प्रारूप सरल हो,
आवश्यक डिजिटल संसाधन और प्रशिक्षण मिले तथा दंडात्मक रवैये की जगह संवाद और प्रोत्साहन की संस्कृति विकसित हो।



इसे भी पढें  बीएलओ शिक्षकों का मानसिक तनाव बढ़ा, आत्महत्या और हृदयाघात की घटनाओं ने उठाए सवाल

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language »
Scroll to Top