
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा, चित्रकूट जिला मुख्यालय से सटे सदर ब्लॉक कर्वी की ग्राम पंचायत कालूपुर (पाही) में आजकल सबसे बड़ी चर्चा का विषय है सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा। गांव के दबंगों ने न केवल सार्वजनिक हैंडपंप को अपनी बाउंड्री वॉल के भीतर घेर लिया है बल्कि अनुसूचित जाति की बस्ती को जाने वाले रास्ते पर भी कंटीली तारें डाल दी हैं।
नतीजा यह है कि बस्ती के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं और रोज़मर्रा का आना-जाना भी मुश्किल हो गया है।
पानी का अधिकार छीनने वाली दबंगई
पेयजल इंसान की बुनियादी ज़रूरत है। लेकिन जब सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा हो जाता है तो यह सिर्फ पानी छीनना नहीं बल्कि जीवन का अधिकार छीनना है। अनुसूचित जाति की बस्ती में पहले से ही हैंडपंपों की कमी थी। ऐसे में जब एकमात्र सरकारी हैंडपंप पर कब्जा कर लिया गया, तो समस्या और भी गंभीर हो गई।
गांव की महिलाएं और बच्चे अब रोज़ कई किलोमीटर दूर से पानी ढोने को मजबूर हैं। यह स्थिति उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका तीनों को प्रभावित कर रही है।
सार्वजनिक रास्ते पर अतिक्रमण : गांव की नाकाबंदी
सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा के साथ ही दबंगों ने सार्वजनिक रास्ते पर भी अतिक्रमण कर दिया है। अनुसूचित जाति की बस्ती को जोड़ने वाले इस मुख्य मार्ग पर कंटीली तारें डालकर आवाजाही रोक दी गई है।
ग्रामीणों का कहना है कि अब उन्हें खेतों, बाजार और स्कूल जाने के लिए लंबा चक्कर काटना पड़ता है। बीमार लोगों को समय पर इलाज तक नहीं मिल पा रहा है। यह अतिक्रमण सामाजिक बहिष्कार और असमानता की ओर इशारा करता है।
ग्रामीणों की पीड़ा : “हमसे पानी और रास्ता दोनों छीना गया”
एक वृद्ध महिला कहती हैं,
“पहले हम पास के हैंडपंप से आसानी से पानी भर लेते थे। अब हमें मीलों दूर जाना पड़ता है। छोटे बच्चे और बुजुर्ग प्यास से बेहाल हैं।”
वहीं एक किसान का कहना है,
“रास्ता बंद कर दिया गया है। खेतों तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। दबंगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही।”
इन बयानों से साफ है कि सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा और रास्ते पर अतिक्रमण ने बस्ती के लोगों की ज़िंदगी दुश्वार कर दी है।
प्रशासन की खामोशी पर उठते सवाल
यह सबसे बड़ा सवाल है कि जब सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा और सार्वजनिक रास्ते पर अतिक्रमण जैसे गैरकानूनी काम खुलेआम हो रहे हैं, तो प्रशासन मौन क्यों है?
भारतीय कानून के अनुसार, किसी भी सरकारी संपत्ति—चाहे वह हैंडपंप हो या सड़क—पर निजी कब्जा करना अपराध है। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई न होना प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है।

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार शिकायत की, लेकिन अफसरों ने केवल आश्वासन देकर फाइल दबा दी।
स्वास्थ्य और स्वच्छता पर संकट
पानी की कमी केवल प्यास का मामला नहीं है। जब ग्रामीण साफ पानी से वंचित होते हैं, तो उन्हें तालाबों और नालों से गंदा पानी लाना पड़ता है। इससे हैजा, डायरिया और त्वचा रोग जैसी बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा के चलते अनुसूचित जाति की बस्ती के लोग सीधे-सीधे स्वास्थ्य जोखिम का सामना कर रहे हैं।
सामाजिक न्याय पर गहरी चोट
यह मामला सिर्फ पानी और रास्ते तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक न्याय पर भी गहरी चोट है। अनुसूचित जाति की बस्ती को लक्षित कर दबंगों द्वारा इस तरह का अतिक्रमण करना साफ तौर पर भेदभाव और असमानता को बढ़ावा देता है।
सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा करना एक वर्ग को जीवन की मूलभूत सुविधा से वंचित करना है, जो भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
समाधान की उम्मीद : ग्रामीणों की मांग
ग्रामीणों ने मांग की है कि जिला प्रशासन तुरंत दबंगों से सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा और रास्ते का अतिक्रमण हटवाए। साथ ही, बस्ती में नए हैंडपंप लगाए जाएं ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो।
लोगों ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाया, तो वे सामूहिक आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।
कालूपुर (पाही) की यह घटना दिखाती है कि कैसे दबंगई और प्रशासनिक चुप्पी मिलकर गरीब और पिछड़े वर्गों की ज़िंदगी को नर्क बना देती है। सरकारी हैंडपंप पर अवैध कब्जा और रास्ते पर अतिक्रमण जैसी घटनाएं न केवल बुनियादी अधिकारों का हनन हैं बल्कि समाज में असमानता की जड़ें और गहरी कर रही हैं।
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अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह पीड़ित बस्ती को उनका हक दिलाए और दबंगई के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। तभी ग्रामीणों का भरोसा शासन और व्यवस्था पर बहाल हो पाएगा।
