मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण: बीएलओ पर बढ़ते दबाव और मुक़दमों से देशभर में चिंता तेज

संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर भारत निर्वाचन आयोग पूरे देश में व्यापक अभियान चला रहा है।
मतदाता सूची को अद्यतन, पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने के उद्देश्य से भारत निर्वाचन आयोग ने नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में
4 नवंबर से मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन इसी बीच
बीएलओ पर भारी काम का दबाव, थकान, मानसिक तनाव, मुक़दमे और
मौत जैसी खबरों ने राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है।

इस एसआईआर अभियान के तहत उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, गोवा और छत्तीसगढ़ के साथ
लक्षद्वीप, पुद्दुचेरी और निकोबार में मतदाता सूची की घर-घर सत्यापन प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है।
देशभर में 5.3 लाख से अधिक बीएलओ इस अभियान में जुड़े हैं।

मतदाता सूची पुनरीक्षण क्यों जरूरी?

भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में मतदाता सूची की सटीकता चुनाव प्रक्रिया की बुनियाद है।
नक़ली वोटर, मृत मतदाता, दोहरी प्रविष्टि, गलत पते और अप्रूव न हुए नए वोटरों की समस्या लगातार सामने आती रही है।
इसीलिए भारत निर्वाचन आयोग ने इस बार मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को और सख़्ती से लागू किया है,
ताकि 2026 के आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची पूरी तरह अपडेट हो सके।

321 जिलों में एसआईआर जारी — 51 करोड़ मतदाता जांच के दायरे में

आयोग द्वारा जारी आधिकारिक जानकारी के मुताबिक,
मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 321 जिलों के 843 विधानसभा क्षेत्रों में चल रहा है।
इस दौरान 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं की पहचान, पता, आयु और पात्रता की जांच की जा रही है।
4 नवंबर से 4 दिसंबर तक घर-घर जाकर मतदान संबंधी एन्यूमरेशन फॉर्म भरवाए जाएंगे।

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बीएलओ पर काम का बढ़ता बोझ — विपक्ष ने उठाए सवाल

हालांकि एसआईआर का उद्देश्य लोकतांत्रिक सुधार है, लेकिन इस अभियान ने
बीएलओ की कार्य-स्थिति, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मानव संसाधन प्रबंधन पर गंभीर बहस छेड़ दी है।
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी और कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि
सिस्टमेटिक प्लानिंग के बिना अधूरे संसाधनों के साथ
बीएलओ पर अत्यधिक दबाव डाला जा रहा है।

मौतों और आत्महत्याओं की खबर ने बढ़ाई चिंता

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अब तक देशभर में कम से कम
15 बीएलओ की मौतों को मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान से जोड़ा जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में तीन, गुजरात और मध्य प्रदेश में चार-चार,
राजस्थान में दो और केरल व तमिलनाडु में एक-एक मौत की रिपोर्ट सामने आई है।
मध्य प्रदेश में तो 48 घंटों के भीतर दो बीएलओ के निधन का दावा किया गया है।


हालांकि बीबीसी और अन्य मीडिया संस्थान इन मौतों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं कर सके हैं।

उत्तर प्रदेश में FIR — दूसरी बड़ी बहस

उत्तर प्रदेश में मामला और विवादास्पद हो गया है।
गौतम बुद्ध नगर, बरेली और बहराइच में 60 से अधिक बीएलओ और सुपरवाइज़र्स पर
लापरवाही, आदेशों की अवहेलना और काम पूरा न करने के आरोप में
एफआईआर दर्ज की गई हैं।
ये मुक़दमे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत दर्ज हुए हैं।

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कई शिक्षिका-बीएलओ ने बताया कि बीमारी, पारिवारिक परिस्थितियों और
अत्यधिक कार्यभार के बावजूद छुट्टियां मंज़ूर नहीं की जा रहीं,
बल्कि मुक़दमे दर्ज किए जा रहे हैं।

‘रात 1 बजे तक डाटा फीड… ऐप काम नहीं कर रहा’

शिक्षक संगठनों का दावा है कि ग्रामीण इलाकों में लोग
मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया में रुचि नहीं ले रहे,
फॉर्म वापस नहीं कर रहे, और चुनाव आयोग का मोबाइल ऐप
तकनीकी समस्याओं से जूझ रहा है।

व्हाट्सऐप ग्रुपों में साझा किए गए संदेशों में दिखा है कि
कई जिलों में बीएलओ से आधी रात के बाद भी अपडेट मांगा जा रहा है
और OTP वेरिफिकेशन में घंटों लग रहे हैं।

शिक्षक संगठन बोले — यह अपमान है

टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेताओं ने आरोप लगाया है कि
शिक्षक पहले ही पढ़ाई, प्रशासनिक और चुनावी कार्य संभाल रहे हैं,
फिर भी मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण में देरी होने पर
उन्हें अपराधियों की तरह मुक़दमे झेलने पड़ रहे हैं।

शिक्षक संगठनों ने कहा —
बीएलओ को दंड नहीं, सहानुभूति, प्रशिक्षण, काउंसलिंग और तकनीकी सहायता की जरूरत है।

चुनाव आयोग की चुप्पी सवालों के घेरे में

अब तक भारत निर्वाचन आयोग ने
बीएलओ की मौतों, काम के दबाव या FIR के मुद्दे पर
कोई आधिकारिक सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है।
उत्तर प्रदेश निर्वाचन कार्यालय से भी मीडिया को स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं मिली।

क्या यह लोकतंत्र की मजबूत नींव या प्रशासनिक दुरुपयोग?

निश्चित रूप से मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण
लोकतंत्र को मजबूत बनाता है,
लेकिन वह तभी जब प्रक्रिया मानव-केन्द्रित, संरचनात्मक और संतुलित हो।
अगर बीएलओ ही थककर टूट जाएंगे, तनाव में आएंगे, इस्तीफे देंगे,
तो मतदाता सूची सुधार अभियान का उद्देश्य कमजोर हो सकता है।

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निष्कर्ष

मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया है।
परंतु इस अभियान को सफल बनाने के लिए
बीएलओ को सम्मान, संसाधन, प्रशिक्षण, मद्द, सुरक्षा और संवेदनशील व्यवस्थाएं देना आवश्यक है।
सरकार, चुनाव आयोग और विपक्ष — तीनों को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे।


✅ क्लिक करें और सवाल–जवाब देखें

मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) क्या है?

यह भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चलाया जा रहा वह अभियान है, जिसके तहत देशभर में मतदाता सूचियों की घर-घर जांच, सत्यापन और अपडेट किया जाता है।

बीएलओ कौन होते हैं?

बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर वे सरकारी कर्मचारी हैं, जिन्हें अपने क्षेत्र में मतदाता सूची की सत्यापन और अपडेट की जिम्मेदारी दी जाती है।

एफआईआर किस कानून के तहत दर्ज की जा रही है?

एफआईआर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 32 के तहत दर्ज हो रही है।

एसआईआर का उद्देश्य क्या है?

मतदाता सूची को सही, अद्यतन, त्रुटिरहित और पारदर्शी बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है।

क्या बीएलओ को अतिरिक्त सहायता मिल रही है?

कई राज्यों के बीएलओ का दावा है कि उन्हें तकनीकी, मानव संसाधन और स्वास्थ्य सहायता पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है।


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