लंदन में बैठकर 4 साल तक यूपी सरकार से ‘सैलरी’ ले रहा था मौलाना — एटीएस की रिपोर्ट ने मचाई हलचल

जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

क्या है पूरा मामला — लंदन नागरिकता लेकर वेतन का खुलासा

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में मदरसा शिक्षक मौलाना शमशुल हुदा खान के खिलाफ हुए बड़े खुलासे ने प्रशासन और समाज दोनों को चौंका दिया है। मौलाना ने 19 दिसंबर 2013 को भारतीय नागरिकता छोड़कर लंदन की नागरिकता ली, फिर भी जुलाई 2017 तक सरकारी वेतन, पेंशन और GPF का लाभ लेते रहे — यही वह सीधा मामला है जिसे हम लंदन नागरिकता लेकर वेतन के नाम से पहचानते हैं।

कब और कैसे पता चला — जांच की रूपरेखा

मामला तब प्रकाश में आया जब विभागीय और एटीएस की जाँच में यह पाया गया कि मौलाना ने विदेशी यात्राओं के दौरान भी सरकारी वेतन प्राप्त किया — यानी उसने लंदन नागरिकता लेकर वेतन लिया। जांच ने इस अवधि में तैनात कुछ अधिकारियों की मिलीभगत की भी आशंका जताई।

कौन-कौन निलंबित हुए — विभागीय सख्ती

सरकार ने इसे गंभीर अनियमितता मानते हुए चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया — शेषनाथ पांडे (ज्वाइंट डायरेक्टर, अल्पसंख्यक कल्याण), साहित्य निकश सिंह (जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, गाजियाबाद), प्रभात कुमार (जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, अमेठी) और लालमन (जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, बरेली)। इनकी परिनियोजन अवधि के दौरान ही लंदन नागरिकता लेकर वेतन जारी रहा।

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एटीएस रिपोर्ट में क्या आया — संदिग्ध यात्राएं और पाक संपर्क

यूपी एटीएस (वाराणसी यूनिट) की रिपोर्ट में मौलाना की कई अंतरराष्ट्रीय यात्राओं का हवाला दिया गया — ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, सिंगापुर, श्रीलंका सहित कई देशों की यात्राएँ और 3-4 बार पाकिस्तान जाना भी शामिल है। एटीएस ने बताया कि कुछ संदिग्ध संपर्क पाकिस्तान और कश्मीर के लोगों से मिले, जिससे लंदन नागरिकता लेकर वेतन वाला मामला और संवेदनशील हो गया।

रिकवरी और प्रशासनिक कार्रवाई

ADM आजमगढ़ ने जनवरी 2022 में इस मामले पर 16.59 लाख रुपये की रिकवरी का आदेश जारी किया — यह राशि उस अवधि के दौरान दिए गए वेतन, पेंशन और GPF के अनुचित लाभ से जुड़ी है। सरकार ने कहा है कि जहां-जहाँ प्रमाण मिले, वहाँ विभागीय व कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ाई जाएगी ताकि लंदन नागरिकता लेकर वेतन जैसे अन्य मामलों को रोका जा सके।

स्थानीय और राष्ट्रीय निहायत — प्रभाव और सवाल

यह मामला न केवल आजमगढ़ तक सीमित है; ये सवाल उठाता है कि आखिर सरकारी रिकॉर्ड और पहचान प्रणालियों में इतनी छूट कैसे रह गयी कि कोई व्यक्ति लंदन नागरिकता लेकर वेतन प्राप्त करता रहा। इस लंदन नागरिकता लेकर वेतन की घटना ने पारदर्शिता और ऑडिट तंत्र की जरूरत को उजागर कर दिया है।

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कानूनी और नैतिक परिप्रेक्ष्य

कानूनी दृष्टि से, भारतीय नागरिकता छोड़ने के बाद सरकारी सेवाओं का लाभ लेना अपराध व मानव संसाधन नियमों का उललंघन है। नैतिक रूप से भी शिक्षा संस्थाओं में विश्वसनीयता कम हुई — ऐसे में लंदन नागरिकता लेकर वेतन जैसे मुकदमों की कड़ी जांच जरूरी है।

क्या कहता है प्रशासन — आगे की प्रक्रिया

विभाग का कहना है कि दोषियों के विरुद्ध रिकवरी के साथ-साथ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई व आवश्यकतानुसार फोरेंसिक ऑडिट होगा। एटीएस और पुलिस की जांच जारी है ताकि लंदन नागरिकता लेकर वेतन के पीछे की गुत्थी सुलझे और अन्य जुड़े नाम सामने आ सकें।

खास विश्लेषण — रोकथाम के कदम

ऐसे मामलों से निपटने के लिए नियमित सत्यापन, डिजिटल KYC, बैक-एंड एप्लिकेशन लॉग्स की मॉनिटरिंग और बार-बार होने वाली पोस्ट-डिप्लॉयमेंट ऑडिट्स जरूरी हैं — तभी भविष्य में कोई दूसरा व्यक्ति लंदन नागरिकता लेकर वेतन जैसा घोटाला कर पाएगा तो पकड़ा जा सकेगा।

खास बात: यह लंदन नागरिकता लेकर वेतन का मामला सिर्फ व्यक्तिगत धोखाधड़ी नहीं है — इससे सिस्टम की कमियाँ दिखती हैं और आवश्यकता है कि प्रशासन ऐसे मामलों की जाँच तेज करे और जवाबदेही सुदृढ़ करे।

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