धोखाधड़ी व जालसाजी से हड़पी गई बीमा धनराशि का खुलासा, संतोष सिंह आत्महत्या केस में उठे नए सवाल

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

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चित्रकूट (गढ़चपा). मानिकपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत गढ़चपा में सामने आया धोखाधड़ी व जालसाजी का हैरान करने वाला मामला अब पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया है। संतोष सिंह आत्महत्या केस में बीमा धनराशि हड़पने का षड्यंत्र, सामाजिक चर्चा और प्रशासनिक जांच का केंद्र बन चुका है। सूत्रों की मानें तो इस पूरे बीमा धनराशि हड़पने के मामले में कई चौंकाने वाले तथ्य और साजिशें सामने आने वाली हैं।

संतोष सिंह की आत्महत्या और बीमा धनराशि का रहस्य

मार्च 2016 में मानिकपुर ब्लॉक के गढ़चपा निवासी संतोष सिंह पुत्र शिवनायक सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। परिवार ने प्रारंभिक तौर पर आत्महत्या का कारण पारिवारिक तनाव बताया था, लेकिन अब धोखाधड़ी व जालसाजी का नया एंगल सामने आया है। जांच में पता चला है कि संतोष सिंह की मौत के बाद परिजनों ने चालाकी से उसे स्वाभाविक मौत बताकर बीमा धनराशि प्राप्त की थी।

रिपोर्ट के अनुसार, आत्महत्या के तुरंत बाद संतोष सिंह का शव उनके पुत्रों ने इलाज कराने के बहाने अन्य स्थान पर ले जाकर मृत्यु की कहानी बदली। जबकि मौके पर ही संतोष सिंह की मौत हो चुकी थी। इसी कहानी की बुनियाद पर बीमा कंपनियों के अधिकारियों से साठगांठ करके बीमा दावा पास करवाया गया।

पुत्र अर्जुन सिंह और अरुण सिंह उर्फ मिंटू पर शक की सुई

मामले की तह में जाने पर चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। संतोष सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह और अरुण उर्फ मिंटू सिंह ने ही कथित रूप से बीमा कंपनी से संपर्क कर बीमा धनराशि का दावा किया। स्थानीय सूत्रों और शिकायतकर्ता के अनुसार, इन दोनों ने धोखाधड़ी व जालसाजी करके लाखों रुपये की बीमा धनराशि हड़पी।

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जानकार बताते हैं कि बीमा कंपनी में कुछ अधिकारियों की भी भूमिका संदिग्ध है जिन्होंने सच्चाई की जांच किए बिना क्लेम पास कर दिया। अब यह पूरा बीमा धनराशि हड़पने का मामला गंभीर जांच के घेरे में है।

सामाजिक कार्यकर्ता के पत्र से मच गई हलचल

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने जब इस पूरी धोखाधड़ी व जालसाजी की परतें उजागर कीं, तो प्रशासनिक अमले में हड़कंप मच गया। कार्यकर्ता ने वित्त मंत्री को पत्र भेजकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की है ताकि बीमा कंपनियों, अधिकारियों और परिजनों की भूमिका को स्पष्ट किया जा सके।

पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि संतोष सिंह के आत्महत्या के बाद बीमा दावा दाखिल करने के लिए झूठे दस्तावेज़ों का सहारा लिया गया। इस तरह की जालसाजी न केवल कानूनन अपराध है बल्कि बीमा क्षेत्र की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाती है।

प्रशासनिक जांच से खुल सकते हैं कई रहस्य

अब यह पूरा बीमा धनराशि हड़पने का मामला जिला प्रशासन की नज़र में है। सूत्रों के अनुसार, पुलिस जल्द ही संबंधित बीमा कंपनी के अधिकारियों से पूछताछ कर सकती है। मामले की फाइल पुनः खोली जा रही है ताकि आत्महत्या के बाद बीमा क्लेम फाइलिंग के समय किए गए धोखाधड़ी के सभी सबूतों की जांच की जा सके।

वित्त मंत्रालय से संकेत हैं कि यदि अनियमितता साबित होती है तो दोषियों पर एफआईआर के साथ-साथ संपत्ति ज़ब्त करने जैसी गंभीर कार्रवाई की जा सकती है।

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स्थानीय स्तर पर चर्चाओं का दौर जारी

गढ़चपा और मानिकपुर ब्लॉक के लोग इस पूरा मामला लेकर लगातार चर्चा कर रहे हैं। गाँव के बुजुर्गों का कहना है कि संतोष सिंह मेहनती और ईमानदार व्यक्ति थे, जिन्हें पारिवारिक दबाव ने परेशान किया। लेकिन उनके नाम पर धोखाधड़ी व जालसाजी कर बीमा धनराशि हड़पना निंदनीय कृत्य है।

कई ग्रामवासियों ने भी मांग की है कि इस बीमा धनराशि हड़पने के मामले में दोषियों को सख्त सजा दी जाए ताकि भविष्य में कोई इस तरह से बीमा योजना का दुरुपयोग न करे।

वित्त मंत्री कार्यालय में पहुंची शिकायत

सामाजिक कार्यकर्ता का पत्र अब वित्त मंत्री कार्यालय तक पहुंच चुका है। मंत्रालय के गलियारों में इस पर गहन चर्चा चल रही है। सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय ने प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी है और जल्द ही उच्च स्तरीय जांच समिति गठित हो सकती है।

अगर जांच में सच्चाई सामने आती है, तो यह मामला राज्य स्तर पर एक बड़ा बीमा घोटाला साबित हो सकता है।

मामले से प्रशासन पर सवाल

स्थानीय पुलिस और प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इतने वर्षों तक यह धोखाधड़ी व जालसाजी कैसे दबाई गई? क्या यह स्थानीय प्रभावशाली लोगों की सांठगांठ का परिणाम था? फिलहाल, अधिकारी जांच में पारदर्शिता का दावा कर रहे हैं लेकिन जनता को परिणामों का इंतजार है।

क्या होगी अगली कार्रवाई?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बीमा कंपनी और परिवार की मिलीभगत साबित होती है तो यह न केवल धोखाधड़ी व जालसाजी बल्कि दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएगा। ऐसे में संबंधित अधिकारियों के साथ-साथ कंपनी पर भी कार्रवाई हो सकती है।

इतिहास गवाह है कि बीमा घोटालों में कई बार प्रशासनिक स्तर तक की गड़बड़ियां सामने आती हैं। इसलिए यह बीमा धनराशि हड़पने का मामला राज्य स्तर पर एक उदाहरण बन सकता है।

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निष्कर्ष

गढ़चपा के संतोष सिंह आत्महत्या केस से जुड़ा यह धोखाधड़ी व जालसाजी का मामला अब गंभीर मोड़ ले चुका है। एक ओर ग्रामीण न्याय और पारदर्शिता की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन पर पूरी सच्चाई सामने लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। अगर जांच ईमानदारी से हुई, तो यह बीमा क्षेत्र के लिए एक बड़ी मिसाल साबित होगी।

सवाल-जवाब (FAQ)

सवाल 1: संतोष सिंह आत्महत्या मामला क्या है?

यह मामला मानिकपुर ब्लॉक के गढ़चपा गांव का है, जहां संतोष सिंह ने 2016 में आत्महत्या की थी। बाद में उनके परिजनों ने इसे स्वाभाविक मौत दिखाकर बीमा धनराशि हड़पने की कोशिश की।

सवाल 2: बीमा धनराशि हड़पने का आरोप किन पर है?

संतोष सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह और अरुण उर्फ मिंटू सिंह पर धोखाधड़ी व जालसाजी कर बीमा धनराशि प्राप्त करने का आरोप है।

सवाल 3: जांच की स्थिति क्या है?

सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा वित्त मंत्री को भेजे गए पत्र के बाद उच्च स्तरीय जांच की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। संभावना है कि जल्द ही दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

सवाल 4: बीमा कंपनी की क्या भूमिका रही?

जांच में यह बात सामने आई है कि कुछ बीमा कंपनी अधिकारियों की मिलीभगत से बीमा धनराशि पास की गई थी। उन पर भी गंभीर आरोप हैं।

सवाल 5: क्या यह मामला न्यायालय में जा सकता है?

यदि जांच में धोखाधड़ी व जालसाजी के पुख्ता सबूत मिलते हैं, तो प्रशासन यह मामला न्यायालय में भेज सकता है।

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