Sunday, July 20, 2025
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जन आंदोलन या चुनावी रणनीति? कांग्रेस का हल्ला बोल: ‘न्याय पदयात्रा’ से अडानी और सरकार पर सीधा वार

छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने बस्तर की जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदा की रक्षा के लिए दंतेवाड़ा से किरंदुल तक ‘न्याय पदयात्रा’ शुरू की। दीपक बैज के नेतृत्व में यह आंदोलन राज्य सरकार की खनन नीतियों के खिलाफ है।

हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ की राजनीति एक बार फिर बस्तर के जल, जंगल और जमीन को लेकर गर्मा गई है। कांग्रेस पार्टी ने इस बार सीधे तौर पर खनिज संपदाओं की लूट का आरोप लगाते हुए दंतेवाड़ा जिले से एक चार दिवसीय ‘न्याय पदयात्रा’ की शुरुआत की है।

यह पदयात्रा 27 मई को किरंदुल से शुरू होकर 29 मई को दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में समाप्त होगी, जहां पार्टी कार्यकर्ता कलेक्टर कार्यालय का घेराव करेंगे। इस अभियान का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कर रहे हैं, जिनका दावा है कि राज्य की भाजपा सरकार आदिवासी क्षेत्रों के संसाधनों को कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर रही है।

प्रमुख आरोप और चिंताएं

दीपक बैज ने साफ कहा, “छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार ने राज्य को कॉरपोरेट्स के लिए चारागाह बना दिया है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बस्तर क्षेत्र की प्रमुख लौह अयस्क खदानें—बैलाडीला की 1ए, 1बी, 1सी (दंतेवाड़ा) और हाहालदी (कांकेर)—को पचास वर्षों के लिए निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है।

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इसके साथ ही, उन्होंने अडानी समूह पर निशाना साधते हुए कहा कि “बस्तर के खनिज संसाधनों को अडानी को सौंपने की पूरी तैयारी हो चुकी है और उनके स्वागत के लिए लाल कालीन बिछाया जा रहा है।”

उद्देश्य और संदेश

कांग्रेस का यह मार्च न सिर्फ राजनीतिक विरोध का जरिया है, बल्कि बस्तर की जनता को यह संदेश देने का प्रयास भी है कि उनके जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए पार्टी प्रतिबद्ध है।

इसके माध्यम से राज्य सरकार की खनन नीति, वन अधिकार कानून की अनदेखी और आदिवासी हितों की उपेक्षा जैसे मुद्दों को उजागर किया जाएगा।

बस्तर का सामाजिक और भौगोलिक परिदृश्य

गौरतलब है कि बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ का एक आदिवासी बहुल इलाका है, जिसमें कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जैसे सात जिले शामिल हैं। यहां खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में मौजूद है, और इसी कारण यह इलाका कॉरपोरेट्स की नजरों में है।

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कांग्रेस की यह न्याय पदयात्रा न सिर्फ एक राजनैतिक आंदोलन है, बल्कि बस्तर क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों और आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक जनचेतना अभियान भी बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस आंदोलन का राज्य की राजनीति पर क्या असर पड़ता है।

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