अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
बसपा का नया सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला: 2027 से पहले बड़ा दांव
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती आगामी 1 नवंबर को लखनऊ में पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटी की बैठक बुला रही हैं। यह एक महीने में उनकी चौथी बड़ी राजनीतिक बैठक होगी। इस बैठक को सपा के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की सीधी चुनौती माना जा रहा है।
मायावती का लक्ष्य अब सिर्फ दलित वोटरों तक सीमित नहीं है, बल्कि ओबीसी और मुस्लिम समाज पर अपनी पकड़ मजबूत करना है। विश्लेषक इसे 2007 के जीत वाले “सोशल इंजीनियरिंग मॉडल” की पुनरावृत्ति के रूप में देख रहे हैं, जिसने बसपा को उस वर्ष पूर्ण बहुमत दिलाया था।
ओबीसी समाज पर बसपा की नई नजर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी वर्ग की संख्या 50% से अधिक है। इनमें यादव समाज जहां सपा के साथ जुटा रहता है, वहीं कुर्मी, मौर्य, निषाद, राजभर, लोध, बिंद, कश्यप जैसे समुदाय निर्णायक हैं। बसपा अब इन्हीं जातियों पर फोकस कर रही है।
विश्वनाथ पाल को दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष बनाना इसी दिशा में बड़ा संकेत है। बसपा का उद्देश्य अति पिछड़ी जातियों तक पहुंच बनाकर और उन्हें मजबूत राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना है।
मायावती की चौथी बड़ी बैठक — सपा के PDA की काट
पिछले एक महीने में मायावती ने चार बड़ी बैठकें की हैं:
- 9 अक्टूबर – दलित और ओबीसी संयुक्त सभा
- 16 अक्टूबर – यूपी–उत्तराखंड कार्यकारिणी बैठक
- 19 अक्टूबर – राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक
- 1 नवंबर – पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटी की प्रस्तावित बैठक
इनका उद्देश्य सपा के PDA फॉर्मूले का सीधा जवाब देना है। बसपा का नया फॉर्मूला “PDM” यानी पिछड़ा, दलित, मुस्लिम गठजोड़ के रूप में सामने आया है।
ओबीसी को साधने की रणनीति
इस बैठक में हर जिले से पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटी के प्रभारी और मंडल संयोजक शामिल होंगे। मायावती उनसे अपील करेंगी कि वे अपने क्षेत्रों में जाकर ओबीसी समाज के बीच बसपा की नीतियों को प्रचारित करें।
जल्द ही बसपा मंडल स्तर पर ओबीसी सम्मेलन भी आयोजित करेगी ताकि 2027 के चुनाव से पहले इस वर्ग में एकता बनाई जा सके।
मुस्लिम भाईचारा कमेटियों का गठन — नया संकेत
बसपा मुस्लिम नेताओं की नई टीम भी तैयार कर रही है। अयोध्या में मोहम्मद असद और लखनऊ में सरवर मलिक को मुस्लिम भाईचारा कमेटी का संयोजक बनाया गया है। पूरे प्रदेश में इसी तरह मंडल, जिला और विधानसभा स्तर तक कमेटियां बन रही हैं।
मायावती ने निर्देश दिया है कि जनवरी 2026 तक सभी भाईचारा कमेटियों — दलित, पिछड़ा और मुस्लिम — का गठन पूरा कर लिया जाए।
2007 जैसी सोशल इंजीनियरिंग दोहराने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती 2007 के जातीय गठजोड़ को फिर से सक्रिय कर रही हैं। उस समय ओबीसी नेताओं जैसे बाबू कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर की बड़ी भूमिका थी। अब मायावती उसी मॉडल को “भाईचारा कमेटियों” के जरिये दोहराना चाहती हैं।
सपा के PDA के सामने बसपा का PDM फॉर्मूला
2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले से बढ़त हासिल की थी। अब बसपा ने इसके जवाब में PDM (पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) की नई रणनीति अपनाई है।
“बसपा की यह रणनीति सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मायावती सामाजिक संतुलन साध रही हैं, जिससे सपा के PDA की धार कमजोर हो सकती है।” — वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल
मुस्लिम वोटबैंक पर दोबारा दावा
2007 के दौर में बसपा के साथ कई प्रभावशाली मुस्लिम नेता जुड़े थे, जिनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी प्रमुख थे। 2012 के बाद यह वोट बैंक सपा की ओर खिसक गया। अब मायावती भाईचारा कमेटियों के माध्यम से मुस्लिम समाज को दोबारा जोड़ने की कोशिश कर रही हैं।
बसपा की रणनीति के 5 प्रमुख पॉइंट
- ओबीसी वोटरों तक पहुंचने के लिए पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटियां
- मुस्लिम भाईचारा कमेटियों से अल्पसंख्यक जुड़ाव मजबूत करना
- दलित वोट बैंक को कोर शक्ति के रूप में एकजुट रखना
- 2007 जैसी सोशल इंजीनियरिंग को दोहराना
- सपा के PDA फॉर्मूले को कमजोर करने की दिशा में ठोस कदम उठाना
सपा–बसपा में नया जातीय समीकरण युद्ध
2027 के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की राजनीति में जातीय गठजोड़ सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है। सपा PDA के जरिए मैदान में है, वहीं मायावती PDM रणनीति से उसी सामाजिक आधार को साधने प्रयासरत हैं।
यदि बसपा अपने संगठन नेटवर्क को जमीनी स्तर पर मजबूत कर लेती है, तो 2027 का चुनाव निश्चित रूप से त्रिकोणीय और दिलचस्प साबित हो सकता है।
सामान्य प्रश्न (FAQs)
मायावती की 1 नवंबर की बैठक का उद्देश्य क्या है?
इस बैठक का उद्देश्य ओबीसी समाज को बसपा के साथ मजबूती से जोड़ना और सपा के PDA फॉर्मूले का जवाब देना है।
PDM फॉर्मूला क्या है?
PDM यानी पिछड़ा, दलित और मुस्लिम गठजोड़ — बसपा की नई सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीति है।
मायावती की रणनीति से किसे सबसे बड़ा नुकसान होगा?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इसका सबसे बड़ा असर सपा के परंपरागत वोट बैंक पर पड़ सकता है।
मुस्लिम समाज में बसपा का नया फोकस क्या है?
बसपा मुस्लिम भाईचारा कमेटियों के जरिये संगठनात्मक स्तर पर मुस्लिम प्रतिनिधित्व को मजबूत कर रही है।







