छांगुर बाबा का मामला केवल एक फर्जी पीर की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि भारत में पनपते देशविरोधी नेटवर्क और सांस्कृतिक युद्ध की भयावह कहानी है। पढ़ें विस्तृत संपादकीय विश्लेषण।
–अनिल अनूप
जिस मुल्क की न्याय व्यवस्था और प्रशासनिक ढांचा किसी धर्मांध, कट्टर और राष्ट्रविरोधी गिरोह के सामने सिर झुका दे, उस देश के नागरिकों के लिए खतरे की घंटी बज चुकी होती है। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से पकड़े गए छांगुर उर्फ जमालुद्दीन का मामला केवल एक फर्जी पीर की गिरफ्तारी का मामला नहीं है — यह एक गहरे और अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र की परतों को खोलता है, जिसका उद्देश्य भारत को भीतर से तोड़ना और धीरे-धीरे इस्लामी चरमपंथ की छाया में लपेट लेना है।
▪️ छांगुर कौन है और क्यों यह नाम प्रतीक बन गया है?
छांगुर कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था का नाम है। भीख मांगते हुए शुरू हुआ उसका सफर, मुंबई की गलियों में पीर बनने का ढोंग रचता हुआ भारत-नेपाल सीमा पर एक कथित धार्मिक केंद्र और फिर एक आतंकी अड्डे में बदल जाता है। छांगुर का गिरोह न केवल मतांतरण जैसे संवेदनशील विषय से जुड़ा है, बल्कि यह देह व्यापार, हवाला, फर्जी दस्तावेज़, विदेशी फंडिंग और आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों से भी गहरे तौर पर जुड़ा है।
उसने हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर न केवल उनका धर्मांतरण कराया, बल्कि उनसे निकाह कर ब्लैकमेलिंग और अंततः उन्हें बेचने तक की श्रृंखला विकसित की। और यह सब कुछ भारत की ज़मीन पर, सरकारी अफसरों की चुप्पी और संरक्षण में होता रहा।
▪️ मतांतरण: मिशन या माध्यम?
छांगुर गैंग का असल मिशन भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक आत्मा पर हमला था। लड़कियों को बहला-फुसलाकर, प्रेम के नाम पर लव जिहाद का जाल बिछाकर और फिर उनका जबरन मजहब परिवर्तन कराना इस नेटवर्क की मुख्य रणनीति थी। और यह सब केवल कुछ “धार्मिक आत्मा की मुक्ति” के नाम पर नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक और सामरिक लक्ष्य के तहत हो रहा था — भारत को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने की परिकल्पना, जो ‘गजवा-ए-हिंद’ का हिस्सा है।
▪️ आर्थिक जड़ें और विदेशी फंडिंग का खुलासा
छांगुर का नेटवर्क केवल स्थानीय चंदों या श्रद्धालुओं की अंधभक्ति से नहीं, बल्कि अरब देशों, पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया, कनाडा और यहां तक कि अमेरिका जैसे देशों से आने वाले हवाला धन से चलता था। ये पैसा केवल धर्म परिवर्तन के प्रचार में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी स्लीपर सेल्स, आतंकी प्रशिक्षण और देह व्यापार के रैकेट में भी लगाया जाता था।
छांगुर की बेनामी संपत्तियां, उसके महलनुमा ‘दरगाह’, उसकी महंगी गाड़ियां और राजसी जीवनशैली इस फंडिंग की गवाही देते हैं। सवाल उठता है कि भारत में कितने और ‘छांगुर’ हैं जो विदेशी पैसे से अपने ‘राज्य’ चला रहे हैं?
▪️ प्रशासन और तंत्र की मौन सहमति – सबसे बड़ा अपराध
छांगुर का तंत्र वर्षों तक फलता-फूलता रहा, बलरामपुर की सरकारी ज़मीन पर उसकी अड्डेबाजी चलती रही, स्थानीय पुलिस से लेकर प्रशासनिक अधिकारी उसके चरणों में नतमस्तक होते रहे — यह किसकी विफलता है?
जिन अधिकारियों की आंखों के सामने यह देशविरोधी खेल चलता रहा, क्या वे वास्तव में अक्षम थे या फिर जानबूझकर मौन सहमति दे रहे थे? और यदि हां, तो क्या वे स्वयं इस षड्यंत्र का हिस्सा नहीं बन जाते?
▪️ सांस्कृतिक चेतना पर हमला और राष्ट्र की अस्मिता का संकट
छांगुरवाद केवल एक अपराध की कहानी नहीं, यह भारत की सांस्कृतिक अस्मिता पर किया गया आघात है। यह हिन्दू समाज की आस्था, उसकी बहन-बेटियों की गरिमा और उसकी सांस्कृतिक निरंतरता के विरुद्ध चलाया गया एक सुनियोजित और सधा हुआ युद्ध है।
लड़कियों को फुसलाकर पहले उन्हें अपने धर्म से तोड़ना और फिर उनका इस्तेमाल आतंकवादी नेटवर्क में करना — यह एक ऐसा मॉडल बन चुका है जिसे छांगुर जैसे लोग देश भर में दोहराना चाह रहे हैं।
▪️ समाधान क्या है?
1. राष्ट्रीय स्तर पर जांच आयोग बने – इस केस को एनआईए और ईडी जैसे केंद्रीय एजेंसियों को सौंपा जाए, ताकि पूरी फंडिंग, नेटवर्क और राजनीतिक संरक्षण की परतें उजागर हो सकें।
2. ‘फर्जी पीर’ एक्ट लाया जाए – जिस तरह फर्जी बाबाओं के खिलाफ एक्ट बना है, उसी तरह छद्म धार्मिक पहचान बनाकर लोगों को भ्रमित करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हेतु क़ानून बनाया जाए।
3. सोशल मीडिया निगरानी तंत्र – लड़कियों को फंसाने में जिस तरह इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे माध्यमों का दुरुपयोग हो रहा है, उस पर एक स्वतंत्र प्रौद्योगिकी विंग से निगरानी रखी जाए।
4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग की समीक्षा – उन देशों से सवाल पूछा जाए जिनसे लगातार इस प्रकार के फंड आ रहे हैं, साथ ही भारत विरोधी संगठनों की सूची बनाकर उन पर कार्रवाई हो।
5. सरकारी अधिकारियों की भूमिका की जांच – उन अधिकारियों को चिन्हित किया जाए जिनकी लापरवाही या भागीदारी ने इस षड्यंत्र को पोषित किया।
🔻 एक छांगुर गिरा है, प्रणाली अभी खड़ी है…
छांगुर जैसे पीर या बाबा केवल एक चेहरा हैं — असली खतरा उस तंत्र से है जो उन्हें जन्म देता है, संरक्षण देता है और पनपने की खुली छूट देता है। इस समय देश के कोने-कोने में ऐसे छांगुरों के डेरे खड़े हो चुके हैं। ये डेरे न केवल सामाजिक जहर फैला रहे हैं, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और भविष्य को निगलने की तैयारी कर रहे हैं।
समय आ गया है कि भारत ऐसी ताकतों के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़े। यह केवल कानून का मामला नहीं — यह राष्ट्र की आत्मा की रक्षा का प्रश्न है। हमें इस ‘छांगुरवाद’ से न केवल कानूनन लड़ना है, बल्कि समाज और संस्कृति के स्तर पर भी इसे उखाड़ फेंकना होगा।