मध्य प्रदेश के देवास जिले के धोबघट्टा गांव में बेटे के साथ भागी काकी के कारण एक परिवार ने ज़हर खा लिया। पति-पत्नी और दो बेटियों की मौत हो गई। सामाजिक दबाव को बताया जा रहा है आत्महत्या की वजह। पढ़ें पूरी खबर।
सुहानी परिहार की रिपोर्ट
घटना का दर्दनाक सिलसिला
मध्य प्रदेश के देवास जिले के उदयनगर थाना क्षेत्र स्थित धोबघट्टा गांव में एक ही परिवार के चार सदस्यों ने ज़हर खाकर खुदकुशी कर ली।
यह हृदयविदारक घटना 21 जून को सामने आई, जब राधेश्याम (50), उनकी पत्नी रंगूबाई (48), बड़ी बेटी आशा बाई (23) और छोटी बेटी रेखा बाई (15) ने खेत पर जाकर जहरीला पदार्थ खा लिया।
राधेश्याम की उसी दिन मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी और बड़ी बेटी ने अगली सुबह दम तोड़ दिया। सबसे छोटी बेटी रेखा 48 घंटे से ज्यादा तक जीवन से संघर्ष करती रही, लेकिन अंततः उसकी भी मौत हो गई।
बेटे के कदम से टूटा परिवार
जांच के बाद जो तथ्य सामने आए, उन्होंने मामले को पूरी तरह बदल दिया।
परिवार के एक नज़दीकी ने बताया कि राधेश्याम का बेटा सोहन, अपनी काकी (चाची) गायत्री और उसके तीन बच्चों को साथ लेकर दिसंबर-जनवरी में घर छोड़कर चला गया था।
यह रिश्ता गांव और समाज में अस्वीकार्य माना गया, जिसके चलते राधेश्याम और उनका परिवार सामाजिक बहिष्कार का शिकार हो गया।
स्थानीय लोगों और समाज के कथित दबाव ने परिवार पर अत्यधिक मानसिक तनाव पैदा कर दिया।
“समाज बना रहा था दबाव” – राधेश्याम का भाई
राधेश्याम के छोटे भाई कमल कन्नौज ने बताया,
“सोहन की हरकत के बाद समाज के कुछ लोग राधेश्याम पर लगातार दबाव बना रहे थे। उसे तिरस्कृत कर दिया गया था। इसी तनाव में पूरे परिवार ने सामूहिक आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाया।”
परिजन ने यह भी बताया कि परिवार बेहद मेहनती था और गांव में ही दो बीघा ज़मीन पर खेती करके जीवनयापन कर रहा था। दोनों बेटियां भी खेती में हाथ बंटाती थीं।
जहर खाने की जगह और समय
परिवार ने यह घातक कदम अपने खेत पर उठाया, जहां पर उन्होंने ज़हरीला पदार्थ खाया।
सूचना मिलने पर परिजनों ने चारों को तत्काल इंडेक्स अस्पताल पहुंचाया, लेकिन राधेश्याम की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई।
उसी शाम पत्नी और बड़ी बेटी की मौत हो गई, और आखिरकार छोटी बेटी ने भी मंगलवार सुबह अंतिम सांस ली।
चारों का अंतिम संस्कार अलग-अलग दिन किया गया।
पुलिस जांच जारी, पर अब तक नाम नहीं आए सामने
फिलहाल, पुलिस ने आत्महत्या का मामला दर्ज कर लिया है और जांच जारी है।
हालांकि परिजनों ने उन लोगों के नाम नहीं बताए हैं, जो राधेश्याम पर सामाजिक दबाव बना रहे थे।
परिजन मांग कर रहे हैं कि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए, जिन्होंने मानसिक प्रताड़ना देकर इस त्रासदी को जन्म दिया।
देवास की यह घटना ना सिर्फ एक पारिवारिक बिखराव की त्रासदी है, बल्कि यह समाज में मानसिक दबाव और सामाजिक बहिष्कार की भयावहता को भी उजागर करती है।
यह मामला यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या समाज को अपने ठप्पे से ज़िंदगियों का अंत करने का अधिकार मिलना चाहिए?